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This Article is From Dec 31, 2014

बीड, जहां खाली कुएं में बाल्टी नहीं, बच्चे डालकर निकालना पड़ता है पानी...

बीड:

आमतौर पर कुओं में से पानी निकालने के लिए रस्सी से बंधी बाल्टी कुएं में उतारी जाती है, लेकिन बीड में कुएं इतने सूख गए हैं कि पानी बाल्टियों से नहीं निकलता, इसे निकालने के लिए बच्चों को रस्सी से बांधकर कुएं में भेजा जाता है।

यह हाल बीड के उस इलाके का है, जहां की विधायक पंकजा मुंडे खुद महाराष्ट्र ग्रामसुधार मंत्री हैं। उन्ही के इलाके में बच्चों को स्कूल जाना छोड़ जान पर खेलकर पानी का इंतज़ाम करना पड़ता है। 12 साल की प्रियंका मुरकुटे को रस्सी से झूलकर कुएं की गहराई में जाते देख डर लगता है, लेकिन खुद प्रियंका के चेहरे पर डर की शिकन तक नहीं, मानो वह इसकी आदी हो।

यह खासा खतरनाक है, क्योंकि कुएं पचास फुट तक गहरे हैं, और अंदर से पूरे पथरीले हैं। बच्चे जिन रस्सों के सहारे अंदर जाते हैं, वे भी कब जवाब दे देंगे, कह पाना मुश्किल है। इतनी मेहनत कर एक वक्त में आठ से 10 मटके पानी निकाला जाता है।

यह सिलसिला तीन साल से चलता आ रहा है, क्योंकि बीड जिले का भूजल स्तर 300 फुट तक गिर गया है। कभी यहां 50 या 60 फुट खोदने पर ही पानी मिलता था, लेकिन गर्मी के हर मौसम में लोग बोरवेल अंधाधुंध तरीके से खोदने को मजबूर हैं, क्योंकि गर्मी में यहां की नदियां और तालाब सूख जाते हैं।

बीड जिले के देहाती इलाके गर्मियों में पड़ोस के अहमदनगर जिले से पानी के टैंकर लाते हैं, लेकिन ऐसी नौबत पड़ोसी जिले पर आए तो आगे की योजना न जिला प्रशासन के पास है, न नेताओं के पास। बीड जिला परिषद की उपाध्यक्ष आशा दौंड से जब इस बारे में पूछा गया, तो और टैंकर पहुंचाने के रटे-रटाए जवाब से ज़्यादा वह कुछ नहीं कह पाईं।

मराठवाड़ा में जनवरी से पहले यह हाल है, और गर्मियों के चरम पर हालात और बेबस होते हैं।

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