दो हफ़्ते पहले असम के डिब्रूगढ़ में अभ्यास के दौरान 12 साल की तीरंदाज़ शिवांगिनी के गले में एक तीर फंस गया. शिवांगिनी जानलेवा तरीके से घायल हो गईं. क़रीब 40 घंटे ये तीर उनके गले में तब तक फंसा रहा जब तक कि AIIMS के डॉक्टरों ने उसे निकाल नहीं दिया. 15 दिनों के इलाज से ठीक होकर शिवांगिनी एक ओलिंपियन तीरंदाज़ बनने का सपना लेकर आज दिल्ली से वापस घर लौट गईं.
इसी महीने असम में खेलो इंडिया यूथ गेम्स के शुरू होने से ठीक पहले डिब्रूगढ़ के साई सेंटर में तीरंदाज़ शिवांगिनी के गले में अभ्यास के दौरान एक तीर आर-पार हो गया. 15 सेंटीमीटर लंबा ये तीर उनके गले में क़रीब दो दिनों तक फंसा रहा. शिवांगिनी बताती हैं, "एक साथी खिलाड़ी की ग़लती से तीर पीछे की तरफ़ निकल गया. मैं पीछे बैठी थी तो ये तीर मेरे गले के पार हो गया." वो बताती हैं कि तब उन्हें बड़ा दर्द हुआ और वो ये भी सोचती रहीं कि वो आगे खेल पाएंगी या नहीं. डिब्रूगढ़ के अस्पताल में लंबे तीर को काट दिया गया. लेकिन 15 सेंटीमीटर लंबा तीर फिर भी उनके गले में फंसा रहा.
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शिवांगिनी और उसके परिवार को असम सरकार ने डिब्रूगढ़ से दिल्ली भेजने का इंतज़ाम किया. दिल्ली पहुंचते ही शिवांगिनी का इलाज शुरू हो गया. एम्स ट्राउमा सेंटर के न्यूरो सर्जन डॉ. दीपक कुमार गुप्ता और उनकी टीम ने ऑपरेशन से एक दिन पहले एक तीरंदाज़ी कोच से वैसी ही एक दूसरी तीर मंगवाई ताकि ये जाना जा सके कि गले में किस कदर और तीर का कितना हिस्सा फंसा होगा. बारीक़ी से निरीक्षण के बाद अगले दिन क़रीब 4 घंटे के मुश्किल ऑपरेशन के ज़रिये ये तीर शिवांगिनी के गले से निकाल लिया गया.
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डॉक्टर दीपक कुमार गुप्ता कहते हैं, "शिवांगिनी बहुत बहादुर लड़की है. इनकी बहादुरी की वजह से ही इस तीर को निकालना मुमकिन हो पाया." वहीं शिवांगिनी और उसका पूरा परिवार डॉक्टर के प्रति शुक्रिया अदा कर रहा है. शिवांगिनी कहती हैं, "मैं डॉक्टर दीपक और उनकी पूरी टीम को थैंक्स कहना चाहती हूं. उन्हें कोई पुरस्कार भी ज़रूर मिलना चाहिए."
इस ऑपरेशन की कामयाबी ने शिवांगिनी के सपने और बड़े हो गए हैं. शिवांगिनी अब पूर्व वर्ल्ड नंबर 1 दीपिका कुमारी की तरह ओलिंपिक्स और वर्ल्ड चैंपियनशिप्स में तीरंदाज़ी करना चाहती हैं. हिम्मतवाली शिवानी भारतीय आर्मी में शामिल होने का ख़्वाब भी देखने लगी हैं.
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