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This Article is From Nov 21, 2012

पिता ने नहीं दिलाए नए कपड़े तो घर से भाग गया था कसाब

पिता ने नहीं दिलाए नए कपड़े तो घर से भाग गया था कसाब
मुंबई: बेपरवाह सी कार्गो पैंट, ढीला-ढाला नीला स्वेटशर्ट, पीठ पर बैग और हाथों में असॉल्ट राइफल...यही था अजमल कसाब...मुंबई पर खौफनाक आतंकी हमले का काला चेहरा, जिसने पाकिस्तान में रची गई नापाक साजिश को अमली जामा पहनाने में अहम किरदार निभाया।

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर लगे कैमरों ने 26 नवंबर, 2008 की जानलेवा रात में कसाब की जो तस्वीरें खींचीं, उनमें वह कंधों पर झोला लटकाए ए के 47 असॉल्ट राइफल को लापरवाही से इधर-उधर झुलाता दिख रहा है, जो उसके बेरहम कृत्य की गवाही दे रही हैं, जिसकी वजह से उसे फांसी के फंदे पर झूलना पड़ा। कसाब उस समय 21 वर्ष का था।

वह देश की वाणिज्यिक राजधानी को 60 घंटे तक बंधक बनाए रखने वाले 10 आतंकवादियों का हिस्सा था, जो 26 नवंबर को पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के इशारे पर मंबई में कहर मचाने आया था। पाकिस्तान के पंजाब सूबे में ओकारा जिले के फरीदकोट गांव में रहने वाले कसाब ने कानूनी कार्यवाही के दौरान कई बार खुद को देशभक्त पाकिस्तानी बताया और उसे भारत के खिलाफ जंग छेड़ने का कोई मलाल नहीं था।

उसके हवाले से कई बार कहा गया, मैंने ठीक किया, मुझे कोई अफसोस नहीं है। कसाब ने हालांकि सजा में नरमी की गुहार की थी। उसका कहना था कि लश्कर-ए-तैयबा ने उसका ब्रेन वॉश किया और उसने उसके इशारे पर रोबोट की तरह काम किया। कसाब बेरोजगारी के दिनों में इस आतंकी संगठन के संपर्क में आया और उसे पाकिस्तान के कई सुदूरवर्ती प्रशिक्षण शिविरों में से एक में प्रशिक्षित करने के बाद मुंबई आतंकी हमले के लिए चुना गया।

मुंबई पर हमले की सोची समझी साजिश के तहत कसाब 26 नवंबर, 2008 को अपने नौ अन्य साथियों के साथ पाकिस्तान से समुद्र के रास्ते मुंबई पहुंचा। यह समूह जोड़ों में बंट गया और आलीशान होटलों-ताज महल और ओबेरॉय ट्राइडेंट, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, यहूदियों के धार्मिक केंद्र और दक्षिण मुंबई में लियोपोल्ड कैफे को निशाना बनाया। आतंकवादियों की अंधाधुंध गोलीबारी में 18 विदेशियों सहित कुल 166 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हुए।

ऐसी खबर थी कि पुलिस के हाथों पकड़े जाने पर कसाब ने कहा था कि उसे अंतिम सांस तक मारने का प्रशिक्षण दिया गया है, बाद में वह मेडिकल स्टाफ से यह गुहार लगाते देखा गया, मैं मरना नहीं चाहता। पुलिस ने अस्पताल में जब कसाब से पूछताछ की, तो उसने कहा, मैं अब जीना नहीं चाहता। उसने जांचकर्ताओं से कहा कि उसे पाकिस्तान में रहने वाले उसके परिवार की हिफाजत के लिए मार दिया जाए, क्योंकि भारतीय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने पर उसके परिवार को यातना दी जाएगी अथवा मौत के घाट उतार दिया जाएगा।

ऐसी खबर है कि कसाब ने पुलिस को बताया था कि उसने और उसके साथी इस्माइल खान ने आतंकवाद निरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे, मुठभेड़ विशेषज्ञ विजय सालस्कर और अतिरिक्त आयुक्त अशोक काम्टे को गोली मारी। मुंबई हमले से जुड़े मामले के न्यायाधीश एमएल टाहलियानी ने कहा, उसे (कसाब) गर्दन से तब तक लटकाया जाए, जब तक उसकी मौत न हो जाए। न्यायाधीश ने कहा था कि उसने 'मानवीय व्यवहार' का अधिकार खो दिया है।

कसाब ने 2005 में पिता के साथ झगड़े के बाद अपना घर छोड़ दिया था। उसने ईद पर नए कपड़े मांगे थे, लेकिन उसके पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह इसे नए कपड़े दिला पाते, लिहाजा उन्होंने मना कर दिया, जिससे कसाब नाराज हो गया और घर से चला गया। उसके बाद इसने अपने दोस्त मुजफ्फरलाल खान के साथ मिलकर छोटे मोटे अपराध करने शुरू किए और फिर सशस्त्र लूटपाट तक पहुंच गया।

21 दिसंबर, 2007 को वह ईद के दिन रावलपिंडी में था और हथियार खरीदने की कोशिश कर रहा था, जहां उसकी मुलाकात लश्कर-ए-तैयबा की राजनीतिक शाखा जमात-उद-दावा के सदस्यों से हुई, जो पर्चे बांट रहे थे। कुछ देर की बातचीत के बाद उनमें लश्कर-ए-तैयबा के आधार शिविर मरकज तैयबा में प्रशिक्षण लेने के बारे में सहमति बनी।

कसाब उन 24 लोगों के समूह का हिस्सा था, जिन्हें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के पर्वतीय इलाके में लड़ाका प्रशिक्षण दिया गया। इसी समूह में से बाद में कसाब सहित उन 10 आतंकवादियों का चयन किया गया, जिन्होंने मुंबई को निशाना बनाया। ऐसी खबर मिली थी कि लश्कर-ए-तैयबा के वरिष्ठ कमांडर जकी-उर-रहमान लखवी ने हमले में उसके शामिल होने पर उसके परिवार को डेढ़ लाख रुपये देने की पेशकश की थी।

ओकारा के ग्रामीणों ने कैमरे के सामने दावा किया कि मुंबई पर हमले के छह महीने पहले तक कसाब उनके गांव में था। उन्होंने बताया कि कसाब ने अपनी मां से कहा था कि वह जिहाद के लिए जा रहा है, इसलिए वह उसे आशीर्वाद दे। उन्होंने दावा किया कि कसाब ने उस दिन गांव के कुछ लड़कों के सामने अपनी पहलवानी के जौहर दिखाए थे।

शुरुआती खबरों में कसाब के अंग्रेजी ज्ञान और मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि पर परस्पर विरोधाभासी बातें कही गई थी। हालांकि मुंबई पुलिस के उपायुक्त और जांचकर्ता ने बताया कि वह टूटी-फूटी हिन्दी बोल पाता था, अंग्रेजी तो न के बराबर। कसाब को 80 अपराधों में दोषी पाया गया। इनमें भारत के खिलाफ जंग छेड़ने का आरोप भी शामिल था, जिसके लिए मौत की सजा का प्रावधान है। उसकी मौत की सजा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने 21 फरवरी, 2011 को बरकरार रखा। उच्चतम न्यायालय ने इसी साल 29 अगस्त को उसकी मौत की सजा पर अपनी मुहर लगाई।

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