बेंगलुरु:
जयराम शेट्टी एक बेहद जिंदादिल शख्स हुआ करते थे। उनके पास सब कुछ था- एक अच्छी नौकरी और एक शानदार जिंदगी। 21 साल की उम्र में इस शख्स के लिए जिंदगी काफी खुशनुमा थी। लेकिन उनकी जिंदगी तब एक घातक मोड़ पर आ गई जब 1992 में वह एक खतरनाक हादसे का शिकार हो गए, जिसने उनके आधे शरीर को पंगु बना दिया।
इस हादसे के बाद जयराम शेट्टी ने अपनी जिंदगी के 23 साल बिस्तर पर औंधे मुंह लेटे-लेटे बिताए हैं। लेकिन कर्नाटक में दक्षिण कन्नड़ के कुंदापुर के इस शख्स का साहस और अदम्य उत्साह प्रेरणादायक है। एनडीटीवी से बात करते हुए शेट्टी ने उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन को याद करते हुए कहा, मैं कोंकण रेलवे के टनल बना रही एक कंपनी में सुपरवाइजर के तौर पर काम करता था। उस दिन एक बड़ा पत्थर मेरे सिर पर गिर गया और चोट ने मेरी रीढ़ की हड्डी को क्षतिग्रस्त कर दिया।
सरकार से लेकर उनके नियोक्ता तक सबने उनकी मदद की। कुछ साल पहले मीडिया में खबरें आने से भी उन्हें कुछ आर्थिक मदद प्राप्त हुई। लेकिन अस्पताल में हो रहा लगातार खर्च एक समस्या है। इस अग्निपरीक्षा में हमेशा उनके साथ खड़े रहने वाले उनके परिवार को अस्पताल के खर्चों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त पैसों की जरूरत है।
अपने संघर्ष के बारे में बात करते हुए जयराम ने कहा, हर महीने मैं दवाई और जांच के लिए मणिपाल जाता हूं। पहले करीब 8,000 रुपये का खर्च आता था, लेकिन अब यह खर्च 9,000 बैठता है। आने-जाने में उनके परिवार के लोग हमेशा मदद करते हैं। इसके अलावा उनके पड़ोसी भी इस बहादुर इंसान की मदद करते हैं। उनके पड़ोस में रहने वाले नागेश कहते हैं, मैं उनके लिए दवाएं लाता हूं। अगर लोग उनकी मदद करें तो अच्छा होगा। लेकिन जयराम शेट्टी किसी से खैरात नहीं लेना चाहते। वह किसी वाहन को किराये पर देकर 5,000 रुपये महीने की कमाई की उम्मीद करते हैं। लेकिन सबसे सस्ती गाड़ी- मारुति ओम्नी भी करीब 3 लाख रुपये की बैठेगी।
तमाम बाधाओं के बावजूद जयराम बड़ा सोचने से नहीं हिचकते। भविष्य के बारे में पूछे जाने पर वह कहते हैं, मैं एक गाड़ी खरीदने के बारे में सोच रहा हूं, ताकि मैं इसे किराये पर देकर खुद की मदद कर सकूं। जयराम दूसरे लोगों की तरह यह नहीं सोचते कि उनके पास यह नहीं है, बल्कि वह यह सोचते हैं कि उनके पास क्या है। जयराम शेट्टी के लिए जिंदगी बिल्कुल हमेशा की तरह मजबूत है।
इस हादसे के बाद जयराम शेट्टी ने अपनी जिंदगी के 23 साल बिस्तर पर औंधे मुंह लेटे-लेटे बिताए हैं। लेकिन कर्नाटक में दक्षिण कन्नड़ के कुंदापुर के इस शख्स का साहस और अदम्य उत्साह प्रेरणादायक है। एनडीटीवी से बात करते हुए शेट्टी ने उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन को याद करते हुए कहा, मैं कोंकण रेलवे के टनल बना रही एक कंपनी में सुपरवाइजर के तौर पर काम करता था। उस दिन एक बड़ा पत्थर मेरे सिर पर गिर गया और चोट ने मेरी रीढ़ की हड्डी को क्षतिग्रस्त कर दिया।
सरकार से लेकर उनके नियोक्ता तक सबने उनकी मदद की। कुछ साल पहले मीडिया में खबरें आने से भी उन्हें कुछ आर्थिक मदद प्राप्त हुई। लेकिन अस्पताल में हो रहा लगातार खर्च एक समस्या है। इस अग्निपरीक्षा में हमेशा उनके साथ खड़े रहने वाले उनके परिवार को अस्पताल के खर्चों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त पैसों की जरूरत है।
अपने संघर्ष के बारे में बात करते हुए जयराम ने कहा, हर महीने मैं दवाई और जांच के लिए मणिपाल जाता हूं। पहले करीब 8,000 रुपये का खर्च आता था, लेकिन अब यह खर्च 9,000 बैठता है। आने-जाने में उनके परिवार के लोग हमेशा मदद करते हैं। इसके अलावा उनके पड़ोसी भी इस बहादुर इंसान की मदद करते हैं। उनके पड़ोस में रहने वाले नागेश कहते हैं, मैं उनके लिए दवाएं लाता हूं। अगर लोग उनकी मदद करें तो अच्छा होगा। लेकिन जयराम शेट्टी किसी से खैरात नहीं लेना चाहते। वह किसी वाहन को किराये पर देकर 5,000 रुपये महीने की कमाई की उम्मीद करते हैं। लेकिन सबसे सस्ती गाड़ी- मारुति ओम्नी भी करीब 3 लाख रुपये की बैठेगी।
तमाम बाधाओं के बावजूद जयराम बड़ा सोचने से नहीं हिचकते। भविष्य के बारे में पूछे जाने पर वह कहते हैं, मैं एक गाड़ी खरीदने के बारे में सोच रहा हूं, ताकि मैं इसे किराये पर देकर खुद की मदद कर सकूं। जयराम दूसरे लोगों की तरह यह नहीं सोचते कि उनके पास यह नहीं है, बल्कि वह यह सोचते हैं कि उनके पास क्या है। जयराम शेट्टी के लिए जिंदगी बिल्कुल हमेशा की तरह मजबूत है।
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