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This Article is From Sep 14, 2014

नालंदा विश्वविद्यालय के बाद अब प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय का गौरव भी लौटेगा!

नालंदा विश्वविद्यालय के बाद अब प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय का गौरव भी लौटेगा!
नालंदा विश्वविद्यालय में 800 वर्ष बाद फिर पढ़ाई शुरू हुई है
भागलपुर:

शिक्षा जगत में प्राचीन काल में अपनी वैश्विक पहचान रखने वाले नालंदा विश्वविद्यालय को एक बार फिर जीवंत करने में मिली सफलता के बाद बिहार सरकार ने राज्य में ही अस्तित्व में रहे विक्रमशिला विश्वविद्यालय को भी यथार्थ में लौटाने की कोशिश शुरू कर दी है।

विक्रमशिला विश्वविद्यालय के भग्नावशेष राज्य के भागलपुर जिले में हैं। बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय को भी जीवित करने की घोषणा की। मुख्यमंत्री ने भागलपुर में कहा, "नालंदा की तर्ज पर विक्रमशिला को भी विकसित किया जाएगा। विक्रमशिला प्राचीन काल में मशहूर विश्वविद्यालय था। इसका गौरव फिर से वापस लाया जाएगा।"

इसके लिए उन्होंने एक समिति बनाने की बात कही, जिसकी रिपोर्ट मिलने के बाद इसका काम प्रारंभ किया जाएगा।  इस घोषणा के बाद यह कयास लगने लगे हैं कि अब विक्रमशिला के दिन भी बहुरने वाले हैं।

जानकार बताते हैं कि भागलपुर के आंटीचक स्थित विक्रमशिला के संवर्धन और संरक्षण, विकास के लिए कई बार प्रयास किए गए हैं। वर्ष 2009 में राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) द्वारा प्रदान की गई राशि राष्ट्रीय संस्कृति निधि (एनसीएफ) के तहत विक्रमशिला के संवर्धन और संरक्षण, विकास के लिए कई चरणों में खर्च के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के साथ समझौता हुआ था। इसके तहत कई कार्य भी हुए हैं।

उल्लेखनीय है कि भागलपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना पालवंश के राजा धर्मपाल ने 775-800 ईस्वी में की थी। इस विश्वविद्यालय के प्रतिभाशाली छात्रों की सूची काफी लंबी है। इतिहास के अनुसार विक्रमशिला से अनेक विद्वान तिब्बत गए थे और वहां उन्होंने कई ग्रंथों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया था।

इस विश्वविद्यालय में छात्रों की संख्या की स्पष्ट जानकारी तो नहीं मिलती है, परंतु यहां 3,000 अध्यापक कार्यरत थे। यहां सभागार के जो खंडहर मिले हैं, उनसे पता चलता है कि सभागार में 8,000 व्यक्तियों को बिठाने की व्यवस्था थी। विदेशी छात्रों में तिब्बती छात्रों की संख्या में अधिक थी। एक छात्रावास केवल तिब्बती छात्रों के लिया था।

इस विश्वविद्यालय के सबसे प्रतिभाशाली भिक्षु दीपांकर को माना जाता है, जिन्होंने करीब 200 पुस्तकों की रचना की। विक्रमशिला स्थल पर छात्रावास के 208 कमरों में से 62 कमरों को खोजा गया है तथा अन्य के खोजने का कार्य जारी है। यह विश्वविद्यालय अपने समय में व्याकरण, तर्कशास्त्र, औषधि, मानव शरीर रचना विज्ञान, शब्द ज्ञान, चित्रकला समेत अनेक विधाओं का एक अंतरराष्ट्रीय केंद्र था। यहां तंत्र की शिक्षा भी दी जाती थी, जिस कारण इसका महत्व और ज्यादा था।

इतिहास की पुस्तक 'तबकाते नासिरी' के मुताबिक 12वीं सदी में मुगलकाल में बख्तियार खिलजी ने इस महाविहार को दुर्ग समझकर हमला किया, जिसमें महाविहार पूरी तरह तहस-नहस हो गया था। उल्लेखनीय है कि पांचवीं सदी में संपूर्ण विश्व में शिक्षा और ज्ञान के केंद्र के रूप में परचम लहराने वाले बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय में करीब 800 वर्ष बाद एक बार फिर पढ़ाई शुरू हुई है। वर्ष 2006 में इस प्राचीन विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण की परिकल्पना की गई थी।

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