कोलकाता:
पश्चिम बंगाल के सुंदरबन डेल्टा क्षेत्र में पिछले एक साल में 14000 से भी ज्यादा लोग लापता हो गए हैं। यह आंकड़ा पिछले महीने गृह राज्यमंत्री ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में दिया है।
कोलकाता से सुंदरबन के इस इलाके में पहुंचने के लिए रोड से दो घंटे का सफर करना पड़ता है और फिर नाव का सहारा लेना पड़ता है। यहां पर एक गांव संदेशखली आपका तमाम मुसीबतों के साथ स्वागत करने को तैयार है। यहां लोगों एक तरफ बाघों के हमले से दो-चार होना पड़ता है वहीं गरीबी ने मानव तस्करी की ओर ढकेल दिया है।
लापता लोगों में आठ हजार से भी ज्यादा लड़कियां शामिल हैं और साढ़े पांच हजार पुरुष भी परिवार को छोड़ लापता बताए जा रहे हैं। मानव तस्करी करने वाले दलालों के लिए संदेशखली इलाका काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस गांव को शायद ही एक भी ऐसा होगा जहां एक मजबूर मां अपनी लापता बेटी का इंतजार न कर रही हो।
तमाम समस्याओं से घिरे इस संदेशखली गांव को 'ऐला' नाम के तूफान ने वर्ष 2009 में काफी नुकसान पहुंचाया था। सालों से यहां गरीबी ने पांव पसार रखे हैं। हालात यह है कि मां को ममता का गला घोंट कर अपने बच्चों को सैकड़ों मील दूर काम करने के लिए भेजना पड़ता है।
एनडीटीवी के किशलय भट्टाचार्य ने जब इलाके का दौरा किया तब एक 16 वर्षीय लापता बच्ची की मां ने बताया कि छह वर्ष पहले उसे हैदराबाद में एक नौकरी के वादे पर ले जाया गया था। दलाल ने परिवार को बताया था कि लड़की के वेतन का कुछ हिस्सा हर महीने उन्हें दिया जाएगा। लेकिन एक बार बच्ची क्या गई आज तक न तो बच्ची की कोई खबर है और न ही दलाल द्वारा किए गए वादे को कभी पूरा किया गया।
एक छप्पर के छोटे से घर में रह रही इस मां का कहना है कि एक साल के वादे के साथ बच्ची को लेकर गए थे लेकिन हर साल दुर्गा पूजा, काली पूजा आई मगर बच्ची कभी वापस नहीं आई। इस मां के पास दो लड़कियों के साथ चार बच्चे हैं और इनकी मासिक आय मात्र एक हजार रुपये हैं। इसी से इस बाद का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब अगली बार दलाल आएगा तब भी यह दुखियारी उसे मना नहीं कर पाएगी।
ऐसा नहीं कि गांव में कोई भी चला जाएगा और काम करके निकल जाएगा। यहां, मानव तस्करी करने वालों का एक सरगना भी है जिसे हरी के नाम से गांव वाले जानते हैं। यह हरी लड़कियों के मंडियों तक पहुंचाने वालों और शहरों में नौकर के काम दिलाने वाली एजेंसियों के बीच कड़ी का काम करता है।
जब एनडीटीवी ने हरी इस बारे में जानना चाहा तो उसे न केवल धमकी दी बल्कि कैमरा छीनने का प्रयास भी किया। हरी नजदीक शहर में लड़कियां बेच देता है। यहां से शहर तक पहुंचने में लड़कियों तमाम हाथों से गुजरना पड़ता है। जो लड़कियां चकलाघर तक नहीं पहुंचती वह किसी नौकर सप्लाई करने वाली एजेंसी पर पहुंच जाती है।
इस तरह की लड़कियों के व्यापार में शामिल एजेंसी इस बात को पक्का कर लेती हैं कि उन्हें समय पर काम का पैसा मिल जाए लेकिन वेतन के असली हकदार तक मेहनताना कभी नहीं पहुंचता। ऐसे हालातों में फंसी लड़कियों के लिए अपने घरों तक की वापसी का रास्ता लगभग बंद ही रहता है। ऐसे में एक आम आदमी की जिंदगी इन्हें कैसे मिले यह तो भगवान भी नहीं बता सकता है।
गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि हर जिले में मानव तस्करी के विरोध में ईकाइयां तैयार की जाएं। पश्चिम बंगाल में तीन साल पहले इस पर अमल करने का काम शुरू किया गया। हर यूनिट में पांच सदस्य के साथ कैमरा, सेलफोन और एक गाड़ी की व्यवस्था होनी चाहिए। इस तरह की ईकाई की जरूरत तब सबसे पहले महसूस की गई जब वर्ष 2006 में मानवाधिकार आयोग द्वारा यह रिपोर्ट पेश की गई कि देश में हर साल 45 हजार बच्चे लापता हो जाते हैं।
कोलकाता से सुंदरबन के इस इलाके में पहुंचने के लिए रोड से दो घंटे का सफर करना पड़ता है और फिर नाव का सहारा लेना पड़ता है। यहां पर एक गांव संदेशखली आपका तमाम मुसीबतों के साथ स्वागत करने को तैयार है। यहां लोगों एक तरफ बाघों के हमले से दो-चार होना पड़ता है वहीं गरीबी ने मानव तस्करी की ओर ढकेल दिया है।
लापता लोगों में आठ हजार से भी ज्यादा लड़कियां शामिल हैं और साढ़े पांच हजार पुरुष भी परिवार को छोड़ लापता बताए जा रहे हैं। मानव तस्करी करने वाले दलालों के लिए संदेशखली इलाका काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस गांव को शायद ही एक भी ऐसा होगा जहां एक मजबूर मां अपनी लापता बेटी का इंतजार न कर रही हो।
तमाम समस्याओं से घिरे इस संदेशखली गांव को 'ऐला' नाम के तूफान ने वर्ष 2009 में काफी नुकसान पहुंचाया था। सालों से यहां गरीबी ने पांव पसार रखे हैं। हालात यह है कि मां को ममता का गला घोंट कर अपने बच्चों को सैकड़ों मील दूर काम करने के लिए भेजना पड़ता है।
एनडीटीवी के किशलय भट्टाचार्य ने जब इलाके का दौरा किया तब एक 16 वर्षीय लापता बच्ची की मां ने बताया कि छह वर्ष पहले उसे हैदराबाद में एक नौकरी के वादे पर ले जाया गया था। दलाल ने परिवार को बताया था कि लड़की के वेतन का कुछ हिस्सा हर महीने उन्हें दिया जाएगा। लेकिन एक बार बच्ची क्या गई आज तक न तो बच्ची की कोई खबर है और न ही दलाल द्वारा किए गए वादे को कभी पूरा किया गया।
एक छप्पर के छोटे से घर में रह रही इस मां का कहना है कि एक साल के वादे के साथ बच्ची को लेकर गए थे लेकिन हर साल दुर्गा पूजा, काली पूजा आई मगर बच्ची कभी वापस नहीं आई। इस मां के पास दो लड़कियों के साथ चार बच्चे हैं और इनकी मासिक आय मात्र एक हजार रुपये हैं। इसी से इस बाद का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब अगली बार दलाल आएगा तब भी यह दुखियारी उसे मना नहीं कर पाएगी।
ऐसा नहीं कि गांव में कोई भी चला जाएगा और काम करके निकल जाएगा। यहां, मानव तस्करी करने वालों का एक सरगना भी है जिसे हरी के नाम से गांव वाले जानते हैं। यह हरी लड़कियों के मंडियों तक पहुंचाने वालों और शहरों में नौकर के काम दिलाने वाली एजेंसियों के बीच कड़ी का काम करता है।
जब एनडीटीवी ने हरी इस बारे में जानना चाहा तो उसे न केवल धमकी दी बल्कि कैमरा छीनने का प्रयास भी किया। हरी नजदीक शहर में लड़कियां बेच देता है। यहां से शहर तक पहुंचने में लड़कियों तमाम हाथों से गुजरना पड़ता है। जो लड़कियां चकलाघर तक नहीं पहुंचती वह किसी नौकर सप्लाई करने वाली एजेंसी पर पहुंच जाती है।
इस तरह की लड़कियों के व्यापार में शामिल एजेंसी इस बात को पक्का कर लेती हैं कि उन्हें समय पर काम का पैसा मिल जाए लेकिन वेतन के असली हकदार तक मेहनताना कभी नहीं पहुंचता। ऐसे हालातों में फंसी लड़कियों के लिए अपने घरों तक की वापसी का रास्ता लगभग बंद ही रहता है। ऐसे में एक आम आदमी की जिंदगी इन्हें कैसे मिले यह तो भगवान भी नहीं बता सकता है।
गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि हर जिले में मानव तस्करी के विरोध में ईकाइयां तैयार की जाएं। पश्चिम बंगाल में तीन साल पहले इस पर अमल करने का काम शुरू किया गया। हर यूनिट में पांच सदस्य के साथ कैमरा, सेलफोन और एक गाड़ी की व्यवस्था होनी चाहिए। इस तरह की ईकाई की जरूरत तब सबसे पहले महसूस की गई जब वर्ष 2006 में मानवाधिकार आयोग द्वारा यह रिपोर्ट पेश की गई कि देश में हर साल 45 हजार बच्चे लापता हो जाते हैं।
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