दिल्ली के इंडिया गेट से करीब 40 किमी दूर नरेला और बवाना में बन रहे दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के शानदार फ्लैटों के नजदीक पड़े सुनसान इलाके मे लाल रंग का बड़ा टीन शेड आपको दिखाई देगा। यहां बने-बनाए बीम, छत, दीवारें यहां तक कि बनी-बनाई कंक्रीट की सीढ़ियां तक आपको दिखाई दे जाएंगी।
कंप्यूटराइज्ड सिस्टम से लगी मिक्सिंग मशीन से दिन-रात कंक्रीट के ढांचे बनाए जा रहे हैं। जैसे फैक्ट्री में गाड़ियों के कलपुर्जे तैयार कर उन्हें एक जगह ले जाकर जोड़ दिया जाता है। उसी तरह इस कारखाने में फ्लैट्स से संबंधित छत, दीवार, बीम को यहां रेडीमेड बनाकर फिर फ्लैट बनाने वाली साइट्स पर जोड़ दिया जाता है। इसको प्री फैब्रिकेटेड तकनीक कहते हैं। डीडीए के फ्लैट्स बनाने में इस तकनीक का पहली बार इस्तेमाल किया जा रहा है।
कंक्रीट के कलपुर्जे बनाने वाली यह फैक्ट्री इतनी आधुनिक है कि आमतौर पर कंक्रीट को लगातार पानी देकर मजबूत करने में 28 दिन का वक्त लगता है, लेकिन यहां के चैंबर में कंक्रीट का सामान महज 12 से 15 दिन में उसी तरह मजबूत बन जाता है।
यहां काम करने वाले इंजीनियर साठे बताते हैं कि इस तरह की मशीनें आ जाने से अब हजारों मजदूरों की जरूरत नहीं पड़ती और अगर पूरी क्षमता से यह कारखाना काम करे, तो एक दिन में 28 फ्लैट्स बनाने की इसकी क्षमता है। उनकी इस बात में दम इसलिए भी है, क्योंकि इसी कंपनी ने दिल्ली में डीडीए के लिए तीन साल के भीतर 20 हजार फ्लैट बनाए हैं यानी करीब 20 फ्लैट रोजाना।
आरओ का पानी होता है इस्तेमाल
दिल्ली का भूमिगत पानी इंसानों की सेहत के लिए तो खराब है, यह बात जगजाहिर है, लेकिन इसे इमारत बनाने में भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए... हो सकता है कि यह बात कम लोगों को मालूम हो। जी हां, डीडीए के फ्लैट्स बनाने में आरओ के पानी का ही इस्तेमाल किया जाता है। नरेला के इस कारखाने में 6-7 आरओ प्लांट लगे हैं और सीमेंट-बालू मिक्सिंग से लेकर कंक्रीट को गीला तक करने में आरओ यानी फिल्टर्ड पानी का ही इस्तेमाल हो रहा है।
इंजीनियर साठे बताते हैं कि दिल्ली के भूमिगत जल में सल्फर ज्यादा पाया जाता है, इसी के चलते कंक्रीट में इस्तेमाल होने वाले लोहे के फ्रेम को यह कमजोर करता है। साथ ही कच्चे पानी में मौजूद दूसरे तत्व कैमिकल रिएक्शन करके कंक्रीट पर बुरा असर डालता है। भूमिगत जल के सीधे इस्तेमाल से हमें वह क्वालिटी नहीं मिल सकती, जिसकी हमें जरूरत है।
पहले सरकारी इमारतों को देखते ही घटिया निर्माण की बात पहले जेहन में आती थी, लेकिन प्रीफैब्रिकेटेड तकनीक के आने से अब दीवार में कील ठोंकने से दीवार गिरने का खतरा नहीं रहेगा, क्योंकि पूरी तरह कंप्यूटराइज्ड प्लांट में बने कंक्रीट के भाग्य के फैसला अब ज्यादा पैसा कमाने की फिराक में रहने वाले ठेकेदारों, इंजीनियरों के हाथ में नहीं रहता है। यही वजह रही कि डीडीए ने अच्छी गुणवत्ता से 1,000 दिन में 20,000 फ्लैट्स बनाए हैं, यानी रोजाना 20 फ्लैट, ...है ना चमत्कार।
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