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सहकर्मियों के बीच बेहद लोकप्रिय रहे रवि निभानापुदी के इस तरह अकस्मात चले जाने से समूचा एनडीटीवी परिवार दुखी और व्यथित है, और उनकी यादों को शब्दों में पिरोते हुए मैंने एक कविता लिखी है, जो आपके सामने प्रस्तुत है...
सहकर्मियों के बीच बेहद लोकप्रिय रहे रवि निभानापुदी के इस तरह अकस्मात चले जाने से समूचा एनडीटीवी परिवार दुखी और व्यथित है, और उनकी यादों को शब्दों में पिरोते हुए मैंने एक कविता लिखी है, जो आपके सामने प्रस्तुत है...
हम राह देखते थे तेरी,
जाने क्यों हुई देरी।
कैसे ये चार महीने बीते,
हम आज हुए रीते-रीते।
हम सब उदास, तू चला गया,
मौसम के हाथों छला गया।
भागा नेचर से लड़ने को,
हमसे इस तरह बिछड़ने को।
तू राह अकेली लेता था,
खुद पर न ध्यान तू देता था।
सादा चप्पल, सादा कपड़े,
तू नहीं दिखा अकड़े अकड़े।
मुश्किल में कूल दिखा सबको,
सबके अनुकूल दिखा सबको।
बस अपनी घुन का गायक था,
सबका हर टाइम सहायक था।
सबकी चिंताएं करता था,
सबकी पीड़ाएं हरता था।
डूबी हूं दुख में गहरी मैं,
रवि अस्त हुआ दोपहरी में।
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