अनुसंधानकर्ताओं ने पहली बार हल्का और साथ ले जा सकने वाला एक ऐसा त्रिआयामी (थ्रीडी) स्किन प्रिंटर विकसित किया है जो जख्मों को ढंकने और चंद मिनटों में भरने के लिए उत्तकों की परतें उनपर चढ़ा सकता है. जिन मरीजों के जख्म बहुत गहरे होते हैं उनकी त्वचा की तीनों परतें - एपिडर्मिस (बाहरी परत), डर्मिस (एपिडर्मिस और हाइपोडर्मिस के बीच की परत) और हाइपोडर्मिस (अंदरूनी परत) बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो सकती हैं.
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ऐसे जख्मों के लिए अभी जो इलाज किया जाता है उसे स्प्लिट- थिकनैस स्किन ग्राफ्टिंग (एसटीएसजी) बोला जाता है. इसमें किसी सेहतमंद डोनर की त्वचा को एपिडर्मिस की सतह और उसके नीचे मौजूद परत डर्मिस के कुछ हिस्सों पर प्रतिरोपित किया जाता है. बड़े जख्मों पर इस प्रक्रिया को अपनाने के लिए बेहद सेहतमंद त्वचा की जरूरत पड़ती है जो तीनों परतों के पार तक पहुंच सके और इसके लिए पर्याप्त त्वचा बहुत मुश्किल से मिलती है. इससे एक बड़े हिस्से पर परत नहीं चढ़ पाती और जख्म भरने के बेहतर परिणाम सामने नहीं आते.
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कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ टोरोंटो के एक्सेल गुएंथेर बताते हैं , “सबसे नए बायोप्रिंटर बहुत भारी होते हैं. कम गति से काम करते हैं. बहुत महंगे हैं और क्लिनिकल अनु प्रयोगों के साथ मेल नहीं खाते. ’’उनकी अनुसंधान टीम का मानना है कि उनका स्किन प्रिंटर एक ऐसी तकनीक है जो इन रुकावटों से पार पा सकता है और जख्म भरने की प्रक्रिया में सुधार कर सकता है.
(इनपुट-भाषा)
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ऐसे जख्मों के लिए अभी जो इलाज किया जाता है उसे स्प्लिट- थिकनैस स्किन ग्राफ्टिंग (एसटीएसजी) बोला जाता है. इसमें किसी सेहतमंद डोनर की त्वचा को एपिडर्मिस की सतह और उसके नीचे मौजूद परत डर्मिस के कुछ हिस्सों पर प्रतिरोपित किया जाता है. बड़े जख्मों पर इस प्रक्रिया को अपनाने के लिए बेहद सेहतमंद त्वचा की जरूरत पड़ती है जो तीनों परतों के पार तक पहुंच सके और इसके लिए पर्याप्त त्वचा बहुत मुश्किल से मिलती है. इससे एक बड़े हिस्से पर परत नहीं चढ़ पाती और जख्म भरने के बेहतर परिणाम सामने नहीं आते.
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(इनपुट-भाषा)
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