भोजपुरी बहुत ही प्यारी बोली है, जिसे देश और दुनिया भर में बड़े ही शान से बोली जाती है. भोजपुरी के प्रचार-प्रसार में लोक गायकों ने बहुत ही बड़ी भूमिका निभाई है. सामाजिक बदलाव हो, देशभक्ति की भावना हो, हर समय लोक गायक अपनी आवाज़ से जनमानस में एक अमिट छाप छोड़ने के लिए तैयार रहते हैं. आज भले ही भोजपुरी पर अश्लीलता का आरोप लग रहा है, मगर एक समय में भोजपुरी में बहुत ही अच्छे कंटेंट बनते रहे हैं. सीडी कैसेट, इंटरनेट के आने से हम कुछ भोजपुरी कलाकारों को तो जान पाते हैं, मगर कुछ ऐसे कलाकार हैं, जो आज भी नेपथ्य में रहकर अपनी ज़िंदगी गुजार रहे हैं. आइए, आज हम आपको एक ऐसे ही कलाकार के बारे में बताने जा रहे हैं. इनका नाम है जंग बहादुर सिंह. ये बिहार के सीवान जिले के रघुनाथपुर प्रखंड के कौसड़ गांव के रहने वाले हैं. इनके बारे में कहा जाता है कि जब ये अपनी आवाज़ में गाते थे तो ऐसा लगता था कि वो पल ठहर गया है. लोग इनकी आवाज़ से काफी प्रभावित होते थे.
ख़ुश्बू सिंह, इनकी पोती का नाम है. वो अपने दादाजी के साथ काफी ज़्यादा लगाव रखती हैं. वो बताती हैं कि मेरी पहचान मेरे दादाजी के कारण है. पूरे क्षेत्र में लोग दादाजी को जानते हैं. दादाजी एक अच्छे गायक होने के साथ-साथ एक अच्छे इंसान भी हैं. उन्होंने हमेशा मानवता के बारे में सोचा है. संगीत को उन्होंने सिद्धांत बनाया है, वो कहते हैं कि पइसा से हमरा मतलब नइखे, ताली से बा... यही हमर कमाई भी बा (हमें पैसे की ज़रूरत नहीं है, जनता का प्यार ही मेरी पहचान है)
भोजपुरी जगत के महान गायक भरत शर्मा ब्यास एक इंटरव्यू के दौरान बताते हैं कि जंग बहादुर सिंह ने भोजपुरी को वो सबकुछ दिया, जिससे भोजपुरी का विकास हुआ है. भैरवी जब वो गाते थे तो ऐसा लगता था कि ईश्वर से मिलन हो गया है.
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वर्तमान मेंआजादी का अमृत महोत्सव चल रहा है और देश भक्तों में जोश भरने वाले अपने समय के नामी भोजपुरी लोक गायक जंग बहादुर सिंह को कोई पूछने वाला नहीं हैं. बिहार में सिवान जिला के रघुनाथपुर प्रखण्ड के कौसड़ गांव के रहने वाले तथा रामायण, भैरवी व देशभक्ति गीतों के उस्ताद भोजपुरी लोक गायक जंग बहादुर सिंह साठ के दशक का ख्याति प्राप्त नाम था. लगभग दो दशकों तक अपने भोजपुरी गायन से बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में बिहार का नाम रौशन करने वाले व्यास शैली के बेजोड़ लोकगायक जंगबहादुर सिंह आज 102 वर्ष की आयु में गुमनामी के अंधेरे में जीने को विवश हैं.
10 दिसंबर 1920 ई. को सिवान, बिहार में जन्में जंगबहादुर पं.बंगाल के आसनसोल में सेनरेले साइकिल करखाने में नौकरी करते हुए भोजपुरी के व्यास शैली में गायन कर झरिया, धनबाद, दुर्गापुर, संबलपुर, रांची आदि क्षेत्रों में अपने गायन का परचम लहराते हुए अपने जिला व राज्य का मान बढ़ाया था. कहा जाता है कि जंग बहादुर सिंह जब गाते थे तो बिना माइक के ही कोसों दूर उनकी आवाज़ सुनी जा सकती थी. जंग बहादुर सिंह ने भोजपुरी जगत को नेपथ्य में रहकर बड़ा किया है. आज तमाम लोक गायक और गायिका हैं, मगर भोजपुरी की असली पहचान जंग बहादुर सिंह हैं.
भोजपुरी फिल्म के समीक्षक, कवि व लेखक, मनोज भावुक बताते हैं कि भोजपुरी जगत के बरगद हैं जंग बहादुर सिंह. इन्होंने भोजपुरी लोक कला के विकास में महान योगदान दिया है. भले ही लोग इनके काम को नहीं पहचान रहे हैं, मगर ये एक महान इंसान हैं.
कुश्ती भी कर चुके हैं जंग बहादुर सिंह
एक अच्छे गायक होने के साथ-साथ जंग बहादुर सिंह एक अच्छे पहलवान भी हुआ करते थे. जंग बहादुर सिंह की पोती कहती हैं कि 102 साल की उम्र में भी वो हिम्मत नहीं हारते हैं, कहते हैं कि अभी भी मैं लड़ सकता हूं. अपने समय में जंग बहादुर सिंह कुश्ती के क्षेत्र में भी एक योद्धा थे. कोयलांचल की धरती पर उन्होंने कई कुश्तियां लड़ीं और जीत हासिल कीं.
दूगोला कार्यक्रम से पहचान मिली
दूगोला के एक कार्यक्रम में तीन गायक एक साथ मिलकर एक गायक को हरा रहे थे, तब दर्शक के रूप में जंग बहादुर सिंह उस कार्यक्रम में शामिल थे. उन्होंने उस समय तीनों गायकों का विरोध किया और उसी दिन से गाना सीखने का मन मन बना लिया. तब से लेकर आजतक भोजपुरी लोक गायन के क्षेत्र में एक महान योद्धा बने.
देशभक्ति गीतों को गाकर जनता का दिल जीतते थे
देश और देशभक्तों के लिए गाते थे जंग बहादुर सिंह. उन्होंने अपने गायन के ज़रिए देश के वीर योद्धाओं की वीरता की कहानी को दुनिया के सामने रखा और लोगों को देश के प्रति जोड़ने का कार्य किया. चारों तरफ आजादी के लिए संघर्ष चल रहा था. युवा जंग बहादुर देश भक्तों में जोश जगाने के लिए घूम-घूमकर देश भक्ति के गीत गाने लगे. 1942-47 तक आजादी के तराने गाने के ब्रिटिश प्रताड़ना के शिकार भी हुए और जेल भी गए. पर जंग बहादुर रुकने वाले कहां थे.
102 वर्ष के होने के बावजूद उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं हारी है. उम्र के साथ-साथ शरीर में बहुत ही ज्यादा तकलीफ है. हार्ट पेशेंट होने के बावजूद जंग बहादुर सिंह आज भी कई घंटे देशभक्ति गाने गा सकते हैं. आज भी भोर में ‘' घास की रोटी खाई वतन के लिए / शान से मोंछ टेढ़ी घुमाते रहे ‘' ..‘' हम झुका देम दिल्ली के सुल्तान के ‘',‘' गाँधी खद्दर के बान्ह के पगरिया, ससुरिया चलले ना ‘'..सरीखे गीत गुनगुनाते हुए अपने दुआर पर टहलते हुए मिल जायेगें जंग बहादुर सिंह. अपनी गाय को निहारते हुए अक्सर गुनगुनाते हैं जंग बहादुर सिंह.
हमनी का हईं भोजपुरिया ए भाई जी
गइया चराइले, दही-दूध खाइले
कान्हवा प धई के लउरिया ए भाई जी ..
आखड़ा में जाइले, मेहनत बनाइले
कान्हवा प मली-मली धुरिया ए भाई जी ..
80 के दशक के नामी गायक मुन्ना सिंह व्यास अपने वरिष्ठ लोक गायक जंग बहादुर सिंह के लिए पद्मश्री की मांग करते हुए
मैं उन खुशनसीब लोगों में से हूँ जिन्होंने जंग बहादुर सिंह को लाइव सुना है - हरेन्द्र सिंह, पूर्व कोच भारतीय हॉकी टीम
जंग बहादुर सिंह से प्रेरित होकर कई लोग भोजपुरी गायन के क्षेत्र में आए. मुन्ना सिंह व्यास कहते हैं कि एक समय था, जब बाबू जंग बहादुर सिंह की तूती बोलती थी. उनके सामने कोई गायक नहीं था. वह एक साथ तीन-तीन गायकों से दूगोला की प्रतियोगिता रखते थे. झारखंड-बंगाल-बिहार में उनका नाम था और पंद्रह-बीस वर्षों तक एकछत्र राज् हुआ करता था. भोजपुरी लोक गायक के तौर पर पहचान बनाने वाले जंग बहादुर चैता, चैती, फगुआ, भैरवी के साथ-साथ देशभक्ति गाते थे.
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