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Explainer: ईरान-इजरायल युद्ध क्या रूस, चीन Vs अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस होगा? एक्सपर्ट से समझिए

ईरान में मौजूदा हालात को देखते हुए तेहरान स्थित भारतीय दूतावास ने वहां रह रहे सभी भारतीय नागरिकों और भारतीय मूल के लोगों के लिए एक अहम एडवाइजरी जारी की है. दूतावास ने लोगों से अपील की है कि वे अनावश्यक यात्रा या आवाजाही से बचें और दूतावास के संपर्क में रहें.

बृहस्पतिवार को इजरायल ने ईरान पर ताबड़तोड़ भीषण हमला कर वहां की सेना के कई टॉप कमांडरों समेत कई परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी. यह हमला तब हुआ, जब अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु कार्यक्रम को लेकर अगले दौर की बातचीत होने वाली थी. दोनों देशों के बीच छठे दौर की बातचीत आज (संडे को) होनी थी, लेकिन अब तो बातचीत बेपटरी हो गई है. इजरायली हमले में सैकड़ों ईरानी भी मारे गए हैं तो ईरान की जवाबी कार्रवाई में इजरायली भी मारे गए हैं.अब आशंका यह जताई जा रही है कि अगर जंग ज्यादा लंबी खींची तो इसका दायरा और भी फैलेगा. फिर आगे क्या होगा? दुनिया समेत भारत पर इसका क्या असर होगा? इस बारे में एनडीटीवी ने ईरान में स्कॉलर रहे मौलाना असलम रिजवी और सामरिक मामलों के जानकार मेजर जनरल संजय मेस्टन से बातचीत कर मामले को समझने की कोशिश की.

इजरायल ने ईरान पर क्यों किया हमला

मेजर जनरल संजय मेस्टन ने कहा कि इजरायल ने खुद ही बताया है कि इस हमले की प्लानिंग तकरीबन डेढ़ दो साल से चल रही थी. हमला क्यों किया तो इसका कारण ये है कि इजरायल को पता है कि ईरान का स्टेटेड ऑब्जेक्टिव है और खुद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई ने भी इसे कई बार दोहराया है कि वो इजरायल का नाम दुनिया के मैप से मिटाना चाहते हैं. 1979 के बाद से इजरायल को ईरान ने हमेशा नंबर वन एनिमी माना और तब से उनका फोकस रहा है कि इजरायल को डिस्ट्रॉय करना. अब इजरायल को बेसिकली डर ये है कि अगर ईरान ने न्यूक्लियर वेपन्स बना लिए तो ये उनके लिए खतरा हो जाएगा. अब पीस टॉक्स के बीच इजरायल ने हमला क्यों किया तो इसका जवाब है कि इजरायल को पता है कि अगर यह पीस टॉक सक्सेसफुल हो गई तो फिर उसके हाथ में कुछ नहीं रहेगा तो इन्होंने ये स्ट्राइक कर दिया. इजरायल का बेसिक पॉलिटिकल मिलिट्री ऑब्जेक्टिव यही है कि ईरान को न्यूक्लियर वेपनाइजेशन से रोकना. साथ में अगर ईरान में रिजीम चेंज हो जाए तो वह वो भी करना चाहेगा. अमेरिका का भी इसमें इनडायरेक्ट सपोर्ट या डायरेक्ट सपोर्ट है. अमेरिका अभी इस लड़ाई में शामिल नहीं हुआ है, लेकिन अमेरिका के बिना इजराइल शायद ये काम नहीं कर सकता था.

ईरान में कैसे घुसी मोसाद

मौलाना असलम रिजवी ने कहा कि ईरान ने अभी कल ही एक इल्जाम यह लगाया है कि असल में टॉक के जरिए ईरान के ध्यान को भटकाया गया और इसमें अमेरिका और इजरायल की मिलीभगत है.  इधर, टॉक के जरिए ईरान को बिल्कुल से लापरवाह कर दिया गया और नतीजा ये हुआ कि इजरायल ने एक बहुत ही बड़ा हमला ईरान पर किया. मैं आपको बताऊं कि हमले में जो ईरान के बड़े-बड़े फौजी ऑफिसर्स मारे गए तो वो बाहर से हमला नहीं हुआ है, बल्कि खुद ईरान के अंदर से हमला किया है और इसमें पुरानी जो रिजीम थी, मोहम्मद रजा पहलवी जिन्हें मोहम्मद रजा शाह भी कहा जाता है के लोग शामिल थे. उनके जरिए से ये काम कराया गया है. असल में मोहम्मद रजा पहलवी के वो लोग ईरान में अब भी हैं. पहले वो बड़ी-बड़ी पोस्ट पर थे. अब तो ज्यादातर लोग ईरान छोड़कर चले गए हैं, लेकिन उनके बच्चे इस वक्त ईरान में कोशिश कर रहे हैं कि हालात को खराब करें. उन्हें मालूम है कि ये काम या तो अमेरिका या इजरायल जैसे दो ताकतवर मुल्क ही कर सकते हैं. लिहाजा जो लोग कहते हैं कि मोसाद ईरान में है. असल में वो मोसाद नहीं है, बल्कि वो मोहम्मद रजा पहलवी के चाहने वाले हैं, जो मुश्किल से 5% हैं, जो ईरान का तख्ता पलटने की कोशिश कर रहे हैं. ईरान का तख्तापलट करने की इजरायल ने कई बार कोशिश की, लेकिन उसको मालूम है कि वहां पर अयातुल्लाह खामेनेई के चाहने वालों की जो तादाद है, वो बहुत ज्यादा है. दरअसल, इजरायल मायूस हो गया था कि वो ईरान की रिजीम को चेंज नहीं कर सकता है तो उसने ये सोचा कि चलो अब एक नया दूसरा भी तजुर्बा कर लिया जाए और उसने ईरान पर बड़ा
हमला किया, लेकिन मैं आपको बताऊं कि कल रात में जो इजरायल पर बहुत ही खतरनाक हमला ईरान ने किया है, उसमें काफी इजरायल का भी काफी नुकसान हुआ है.

पहलवी वाला एंगल कितना सही

मेजर जनरल संजय मेस्टन ने बताया कि इजरायल ने ईरान की टॉप लीडरशिप, मिलिट्री लीडरशिप और टॉप साइंटिस्ट तकरीबन डिस्ट्रॉय कर दिए गए हैं और यह बहुत ही पिन पॉइंटेड स्ट्राइक थे और इसमें इंटरनल हैंड तो था ही और खासकर ये जो क्राउन प्रिंस है रजा पहलवी आपको पता है ये इजरायल में 2023 में इनवाइटेड थे और प्राइम मिनिस्टर नेतन्याहू ने इनको होस्ट भी किया था तो मैं एग्री करता हूं यह मौलाना जी से कि यह इसमें पहलवी का रोल है और उनकी भी काफी फॉलोइंग है और वो अमेरिका में बेस्ड हैं और यूके वगैरह में कई बार ट्रैवल करके वो ये भाषण देते हैं रिजीम चेंज की तो जाहिर है कि इजरायल को यूनाइटेड स्टेट और यूके का सपोर्ट है, लेकिन वो कर पाएंगे कि नहीं, कहना बड़ा मुश्किल है क्योंकि खामेनेई की भी जो फॉलोइंग है, वो काफी लार्ज है, लेकिन हां वहां पर वुमेन राइट्स का काफी बड़ा इशू है और हां एनआरआई ईरानियन को भी अमेरिका-इजरायल अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही उनकी एक और कोशिश है कि आईआरजीसी में और ईरानियन लीडरशिप के अंदर विवाद कराया जाए. 

क्या ईरान में तख्तापलट होगा

मौलाना रिजवी ने कहा कि ईरानी दुनिया में एक ऐसी कौम है जो पहले ईरानी हैं, बाद में वो धार्मिक हैं. यानी उनको ईरानी होने पर बहुत ज्यादा नाज है और जब दो दिन पहले इजरायल ने जुमे की सुबह को जो हमला किया था तो होता ये है कि जब हमला होता है तो लोग घर के अंदर रहते हैं या बंकर में चले जाते हैं लेकिन हुआ ये था कि पूरा ईरान रोड पे आ गया था और सबकी जुबान पर एक ही नारा था कि हमको रिवेंज चाहिए. अब ईरान अगर चाहे भी तो इस जंग को नहीं रोक सकता है इसलिए ईरानी लोगों का हर तरफ से एक ही नारा है के ये इंतकाम होना चाहिए और इसी इंतकाम की आग की वजह से कल आपने देखा कि इजरायल में बहुत ही खतरनाक हमला हुआ. फरवरी 79 के बाद से अब तक कम से कम 25-30 मर्तबा अमेरिका और इजरायल ने मिलकर कोशिश की है कि वहां के रिजीम को चेंज करने की, लेकिन ईरानी कौम बड़ी नेशनलिस्ट होती है. बाहर की ताकत अगर इन्वॉल्व होती है तो ये और ज्यादा नाराज हो जाती हैं. लिहाजा मेरे हिसाब से और बल्कि जितने भी समझदार लोग हैं, जो एनालिसिस कर रहे हैं ईरान के बारे में वो जानते हैं कि अभी 50 साल और चाहिए ईरान की रिजीम को चेंज करने के लिए. इससे पहले रिजीम चेंज नहीं हो सकती है. 

अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन युद्ध में आएंगे

मेजर जनरल संजय मेस्टन ने कहा कि अमेरिका ने तो अपनी फ्लिट ऑलरेडी डिप्लॉय कर रखी है अरेबियन सी में. यूके अपने एसेट्स को और बढ़ा रहा है, जितने भी उसके बेसेस हैं गल्फ में, वहां वो एयर एसेट्स को बढ़ा रहा है. उसके पास दो एक एयरक्राफ्ट करियर हैं, उन्हें वो मूव कर रहा है और फ्रांस भी पूरी कोशिश कर रहा है कि अरेबियन सी में ये उसकी फ्लिट आ जाए. ये बेसिकली ईरान के ऊपर एक दबाव डालने के लिए ऐसा कर रहे हैं कि हम इजरायल के साथ खड़े हैं. मगर, अभी ये लड़ाई में शामिल नहीं हैं. अगर ईरान ने समुद्री व्यापार में दखल डालने की कोशिश की तो ये लड़ाई में शामिल हो जाएंगे. फिर अरब देश भी ईरान के खिलाफ हो जाएंगे.ईरान को भी पता है कि इससे ये युद्ध एनलार्ज हो जाएगा तो आज की तारीख में ईरान नहीं चाहता है ये युद्ध बढ़े. अमेरिका भी नहीं चाहता ये युद्ध बढ़े, लेकिन इजरायल चाहता है कि युद्ध बढ़े क्योंकि वो चाहता है कि यह युद्ध अगर बढ़गे तो उसमें अमेरिका का डायरेक्ट सपोर्ट आ जाएगा. वो भी यूके और फ्रांस के साथ और फिर एक दूसरा फ्रंट खुल जाएगा और फिर उस उस समय हालात ये भी हो सकते हैं कि पाकिस्तान की एयर फील्ड का अमेरिकी वायुसेना इस्तेमाल करे. अभी आपने सुना था यूएस के सेंट्रल कमांड जनरल को. उसने क्या बोला था कि पाकिस्तान हमारा स्ट्रेटेजिक पार्टनर है और हमेशा उसने मदद की है. ऐसी हालात में अमेरिकन फोर्सेस मतलब एयरफोर्स वो पाकिस्तान के एयर फील्ड में भी डिप्लॉय हो सकता है, क्योंकि पाकिस्तान किसी का सगा है नहीं तो पॉसिबिलिटी है वो वहां पर भी अमेरिकन एयर फोर्स डिप्लॉय हो सकती है. 

क्या रूस और चीन देंगे ईरान का साथ

मौलाना रिजवी ने कहा कि देखिए यह एक सच्चाई है कि ईरान के साथ खुलकर कोई मुस्लिम देश नहीं है, लेकिन ये भी एक सच्चाई है कि जो सरकारें हैं वहां, वो ईरान के साथ तो नहीं हैं, लेकिन वहां की जो जनता है वो ईरान के साथ है. आप देखिए कि इजिप्ट और जॉर्डन जैसे कंट्रीज में ईरान के पक्ष में प्रोटेस्ट हुए हैं. वो आप सब देखते रहते हैं. मुझे वहां नहीं जाना है. जितने भी मुस्लिम मुल्क हैं, ये ज्यादातर खुद पर निर्भर नहीं है. ये अमेरिका और वेस्टर्न कंट्रीज पर निर्भर हैं. यानी अगर अमेरिका इनसे अपना सपोर्ट खिंच ले तो वहां की जनता इनका तख्ता पलट देगी. लिहाजा इन्हें इस बात का यकीन है कि अगर हमने बहुत ज्यादा ईरान का सपोर्ट किया तो ये ताकतें हमारे खिलाफ हो जाएंगी. जहां तक रूस और चीन की बात है तो ये लोग भी ओरली मदद करते हैं. कभी भी ऐसा नहीं है कि इनकी फौज मदद के लिए आएगी और बिल्कुल लड़ना शुरू कर देगी तो ईरान ने पहले ये सोच लिया है कि हम अकेले हैं और हमको अकेले ही लड़ना है. मेजर जनरल संजय मेस्टन ने भी मौलाना की बात को सपोर्ट किया कि रूस-चीन इस युद्ध में नहीं आएंगे. रूस खुद यूक्रेन से युद्ध में फंसा हुआ है और चीन अपनी ताकत ताइवान के लिए बचाकर रखना चाहता है. 

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