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'तीसरी दुनिया' के देश कौन हैं, जिनपर ट्रंप लगा रहे बैन? शीतयुद्ध से कहानी हुई थी शुरू

अमेरिका में व्हाइट हाउस के पास नेशनल गार्ड के दो सैनिकों पर गोलीबारी हुई है जिसमें एक की मौत हो गई है और दूसरे की हालत गंभीर है. इस आतंकी हमले के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलान किया कि वह 'तीसरी दुनिया' के देशों से लोगों को अमेरिका नहीं आने देंगे.

'तीसरी दुनिया' के देश कौन हैं, जिनपर ट्रंप लगा रहे बैन? शीतयुद्ध से कहानी हुई थी शुरू
  • डोनाल्ड ट्रंप ने तीसरी दुनिया के सभी देशों के लोगों के अमेरिका आने पर स्थायी प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है
  • तीसरी दुनिया शब्द शीत युद्ध के दौरान फ्रांसीसी जनसांख्यिकीविद् अल्फ्रेड सॉवी ने 1952 में दिया था
  • आज तीसरी दुनिया शब्द आउटडेटेड है. विकासशील या कम विकसित देशों के लिए UN एलडीसी शब्द का उपयोग करता है
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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक अफगान नागरिक द्वारा नेशनल गार्ड के दो सैनिकों पर गोलीबारी की घटना के बाद बड़ा फैसला लिया है. उन्होंने कहा है कि वह तीसरी दुनिया के सभी देशों के लोगों के अमेरिका में आने पर हमेशा के लिए बैन लगाएंगे ताकि अमेरिका का सिस्टम पूरी तरह रिकवर कर सके. ट्रंप ने इस हमले को आतंकी हमला बताया है और एक सैनिक की मौत की पुष्टि भी की है. ऐसे में सवाल है कि आखिर किन देशों को तीसरी दुनिया का देश कहा जाता है. क्या इसके लिए कोई मानदंड या कसौटी है?

"तीसरी दुनिया" शब्द कब और कैसे सबसे पहले सामने आया?

पहली, दूसरी और तीसरी दुनिया का विचार शीत युद्ध (कोल्ड वॉर) से आया है. यह टर्म मूल रूप से शीत युद्ध के दौरान 1952 में फ्रांसीसी जनसांख्यिकीविद् अल्फ्रेड सॉवी ने दिया था. शीत युद्ध में दुनिया दो फाड में बंट गई थी- एक तरफ अमेरिका के गठबंधन वाला पश्चिमी ब्लॉक था तो दूसरी तरफ सोवियत रूस के गठबंधन वाला पूर्वी ब्लॉक. इसमें जो तटस्थ देश थे और जो बाकी बचे देश थे, उनको तीसरी दुनिया के रूप में एक साथ किया गया. दरअसल कुल मिलाकर अक्सर गरीब या "अविकसित" देशों के लिए 'तीसरी दुनिया के देश' टर्म का उपयोग किया जाता था लेकिन आज यह शब्द व्यापक रूप से पुराना (आउटडेटेड) माना जाता है.

ऐतिहासिक रूप से, पहली दुनिया का मतलब अमेरिका के साथ जुड़े लोकतांत्रिक, औद्योगिक देशों से था. वहीं श्रमिकों और किसानों के नेतृत्व वाले साम्यवादी-समाजवादी देशों को दूसरी दुनिया कहा गया. और जो किसी भी गुट से जुड़ें नहीं थे, उन अधिकांश देशों को तीसरी दुनिया.

पहली दुनिया में उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया शामिल थे. पश्चिमी देशों से जुड़े होने के कारण कई अफ्रीकी क्षेत्रों को भी इस समूह में डाला गया , जैसे कि स्पेन के उपनिवेश के रूप में पश्चिमी सहारा, रंगभेद के युग वाला दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण पश्चिम अफ्रीका (नामीबिया). अंगोला और मोजाम्बिक भी 1975 में कम्युनिस्ट बनने तक पुर्तगाल के कंट्रोल में थे. स्विट्जरलैंड, स्वीडन, ऑस्ट्रिया, आयरलैंड और फिनलैंड जैसे तटस्थ देशों को भी प्रभावी रूप से पहली दुनिया के देश के रूप में माना जाता था.

अब बात दूसरी दुनिया के देशों की. इसमें पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया और बाल्कन सहित सोवियत गणराज्यों और पूर्वी यूरोप से लेकर चीन से जुड़े एशियाई कम्युनिस्ट देशों जैसे मंगोलिया, उत्तर कोरिया, वियतनाम, लाओस और कंबोडिया तक शामिल थे.

तीसरी दुनिया में अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के अन्य सभी देश शामिल थे जो बड़े पैमाने पर अविकसित कृषि देश थे.

आज किसी देश को तीसरी दुनिया के देश कहने का मतलब क्या है?

अब देशों को पहली, दूसरी और तीसरी दुनिया में नहीं बांटा जाता है क्योंकि यह टर्म अब आउटडेटेड हो चुका है.1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद, 'तीसरी दुनिया' शब्द ने अपना मूल राजनीतिक मतलब खो दिया है. इसका आधुनिक उपयोग आमतौर पर उन देशों के लिए किया जाता है जो आर्थिक रूप से वंचित हैं या अभी भी विकसित हो रहे हैं. दरअसल किसी देश को आज के वक्त में तीसरी दुनिया का देश कहना अक्सर अपमानजनक माना जाता है, इस तरह कुछ देशों को निम्नतर या कम वैश्विक मूल्य के रूप में चित्रित किया जाता है.

अब "तीसरी दुनिया" का उपयोग करने के बजाय, लोग अक्सर "विकासशील देश," "कम विकसित देश," या "कम आय वाले देश" टर्म का उपयोग करते हैं. संयुक्त राष्ट्र वर्तमान में 44 देशों को अल्प विकसित देशों (एलडीसी) के रूप में नामित करता है. संयुक्त राष्ट्र इन अर्थव्यवस्थाओं को विशेष प्रकार की सहायता, बाजारों तक पहुंच, क्षमता निर्माण और तकनीकी सहायता प्रदान करता है.

दिसंबर 2024 तक, एलडीसी सूची में अफ्रीका में 32 देश (जैसे अंगोला, इथियोपिया, मलावी, रवांडा, युगांडा और जाम्बिया), एशिया में 8 देश (अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और यमन सहित), कैरेबियन (हैती) में 1 देश और प्रशांत क्षेत्र में 3 देश (किरिबाती, सोलोमन द्वीप और तुवालु) शामिल हैं. भारत शीत युद्ध में एक तटस्थ देश रहा था और आज यह एक विकासशील देश है. भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और यह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.

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