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This Article is From Mar 02, 2018

बांग्लादेश: खतरे में खेती तो अपनाया केकड़ा पालन का रास्ता

जलवायु परिवर्तन यानी बदलती आबोहवा की सबसे बड़ी चोट कमज़ोर लोगों पर ही पड़ती है. भारत और बांग्लादेश की सीमा पर सुंदरवन के इलाके में इसका असर साफ दिखता है.

बांग्लादेश: खतरे में खेती तो अपनाया केकड़ा पालन का रास्ता
लोगों ने अपनाया केकड़ा पालन का रास्ता
दक्षिण बांग्लादेश, सुंदरवन: जलवायु परिवर्तन यानी बदलती आबोहवा की सबसे बड़ी चोट कमज़ोर लोगों पर ही पड़ती है. भारत और बांग्लादेश की सीमा पर सुंदरवन के इलाके में इसका असर साफ दिखता है. लेकिन बांग्लादेश के लोगों जलवायु परिवर्तन की मार को झेलने के लिये नये तरीके इजाद किये हैं. बांग्लादेश के मोंगला ज़िले के जयमोनी दक्षिण पाड़ा गांव में हमारी मुलाकात 46 साल के अब्दुल मीर से होती है जो अपने 9 साल के बच्चे को वो हुनर सिखाते हैं जो आने वाले दिनों में उसे जलवायु परिवर्तन के असर से लड़ने में मदद करेगा. मीर का परिवार मड क्रैब फार्मिंग यानी कीचड़ से भरे तालाबों में केकड़ा पालन करता है. अब्दुल मीर ने अपने घर के आसपास ऐसे कई तालाब बना रखे हैं जहां पर वह केकड़ों को पालते हैं उन्हें दाना खिलाते हैं और बाजार में बेचने से पहले उन्हें बड़ा करते हैं. केकड़ा पालन पिछले कुछ सालों में बांग्लादेश के इस गांव में काफी लोकप्रिय हुआ है. सुंदरवन की तरह इन तमाम तटीय इलाकों की मिट्टी में समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण खारापन बढ़ रहा है.

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मीर हमें बताते हैं, "2009 में आई आइला तूफान के बाद यहां समंदर का पानी काफी भीतर तक अंदर आ गया वैसे भी समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और इन तमाम वजहों से मिट्टी में खारापन आ गया है इसलिए किसी तरह की खेती करना संभव नहीं है." ऐसे में अब्दुल मीर की तरह यहां सैकड़ों परिवारों ने केकड़ा को रोज़गार का ज़रिया बना लिया है. कुछ किलोमीटर दूर एक दूसरे टापू में अब्दुल मीर की तरह अर्चना मंडल ने भी केकड़ा पालन में जीने की राह तलाश की है. अर्चना ने अपने घर के पास ही एक तालाब में कुछ विशेष प्रकार के डिब्बों में केकड़ों को पालना शुरू किया है जिसमें वह उनके लिए दाना डालती हैं और धीरे-धीरे केकड़े तगड़े होते जाते हैं और उनका कवच कठोर हो जाता है. अर्चना का कहना है कि इस तरह से वह बाजार में केकड़ों को बेचकर 3000 से 4000 महीना कमा लेती हैं.

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crab rearing

ढाका के पत्रकार शोएब कहते हैं की मिट्टी में खारापन आने के बाद यहां धान या किसी भी तरह की फसल उगाना नामुमकिन है इसलिए किसान केकड़ा पालन की ओर झुके हैं. आज बांग्लादेश आज केकड़ा उत्पादन का बड़ा केंद्र बन गया है. बांग्लादेश के तटीय ज़िलों सतखिरा, खुलना और बागिरहाट जैसे ज़िलों में केकड़ा बाज़ार खूब पनप रहे हैं. जलवायु परिवर्तन के जानकार और एक्शन एड के ग्लोबल लीड हरजीत सिंह कहते हैं कि यह अनुकूलन का एक नया उदाहरण है यहां किसानों ने खेती बर्बाद होने के बाद भी हार नहीं मानी और केकड़ा और मछली पालन के जरिए अपनी जीविका ढूंढ ली है. भारत के इलाके के सुंदरवन में भी यही समस्या देखने में आ रही है. दोनों ओर के किसान एक दूसरे से बहुत कुछ सीख  सकते हैं लेकिन सरकारों को इस दिशा में पहल करनी होगी क्योंकि यह लड़ाई काफी बड़ी है. 

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आज बांग्लादेश से दुनिया में सालाना 1200 टन केकड़ा निर्यात होता है जो यूरोप, चीन, हांगकांग, ताइवान और मलेशिया समेट पूर्वी और दक्षिण - पूर्वी एशियाई देशों को भेजा जाता है. तेज़ी से बढ़ता ये कारोबार 160 करोड़ रुपये सालाना का है. लेकिन स्थानीय लोगों को कीमत कम ही मिल पाती है मोगरा के बाजार में हमें बताया गया कि यहां ₹3000 किलो केकड़ा खरीद कर उसे सिर्फ 100 या 200 रुपये के मुनाफे में बाहर भेजा जाता है.

VIDEO: जैविक खेती ने बदल दी किसानों की किस्मत
आने वाले दिनों में समुद्र के तटीय इलाकों में जलवायु परिवर्तन का असर और तेजी से देखने को मिलेगा. बांग्लादेश के कई हिस्से डूबने की कगार में हैं. लोग पलायन कर रहे हैं और जो लोग इन इलाकों में रह रहे हैं उनके जीविका के साधन खत्म हो रहे हैं इसलिए भारत और बांग्लादेश दोनों देशों की सरकारों को ऐसे लोगों की मदद करने की जरूरत है जो जलवायु परिवर्तन के खतरे से लड़ने के नए-नए तरीके ढूंढ रहे हैं.

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