मई 2018 में अफगानिस्तान में तालिबान ने केईसी के सात कर्मचारियों को अगवा कर लिया था. विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी है कि इनमें से दो को 31 जुलाई को छुड़ा लिया गया है और वे भारत लौट आए हैं. इसके पहले चार और को बंधकों को छुड़ाया जा चुका है. कुल मिलाकर अब तक छह लोगों को छुड़ाया जा चुका है और अब सिर्फ एक भारतीय नागरिक तालिबान के कब्ज़े में है.
ईद के पहले अफगानिस्तान में तालिबान और सरकार के सीज़फायर के कारण यह उम्मीद बंधी थी कि सभी तीनों को तालिबान के कब्ज़े से छुड़ाया जा सकता है. लेकिन फिलहाल दो को ही छुड़ाया जा सका है. मई 2018 में सात भारतीय और उनके अफगान ड्राइवर को तालिबान के एक गुट ने तब अगवा कर लिया था जब वे अफगानिस्तान के उत्तर बागलान प्रांत में एक पावर प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे. उनके बदले में फिरौती और अफगानिस्तान की जेलों में बंद कुछ तालिबानी बंदियों की रिहाई की मांग की गई थी. बातचीत के बाद एक अगवा भारतीय को मार्च 2019 में तालिबान ने रिहा किया जबकि अन्य तीन को बागराम जेल से अमेरिकी सेना के कब्ज़े से 11 तालिबानी आतंकियों को रिहा करने के बाद अक्टूबर 2019 में छोड़ा गया.
माना जा रहा है कि आखिरी भारतीय बंधक के रिहा होने में दिक्कत इसलिए आई क्योंकि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी ने 400 गंभीर अपराधों के आरोपी तालिबान बंदियों की रिहाई को यह कहकर रोक दिया कि देश का संविधान इसकी इजाज़त नहीं देता. हालांकि जानकारों के मुताबिक उन्होंने 7 अगस्त को इस मामले में फैसला लेने के लिए जो लोया जिरगा (सभा) बुलाई है. आखिरी भारतीय बंधक की रिहाई के लिए यह सभा अहम हो सकती है.
भारत के विदेश मंत्रालय ने भारतीय बंधकों को छुड़ाने में अफगानिस्तान सरकार को उनके लगातार समर्थन के लिए शुक्रिया कहा है.
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