लंदन:
ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा मे को उस वक्त बड़ा झटका लगा जब ब्रिटिश उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को आदेश दिया कि वह ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर निकालने की प्रक्रिया एकतरफा ढंग से शुरू नहीं कर सकतीं और इसके लिए उन्हें संसद की मंजूरी लेनी होगी. इस फैसले का अर्थ यह है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री ब्रिटेन के सांसदों की मंजूरी हासिल किए बिना आधिकारिक रूप से ब्रेक्जिट करार पर यूरोपीय संघ के साथ वार्ता शुरू करने के लिए लिस्बन संधि के अनुच्छेद 50 को प्रभाव में नहीं ला सकतीं. सरकार ने यह तर्क दिया था कि उसके पास अनुच्छेद 50 को प्रभाव में लाने के लिए कार्यकारी शक्तियां हैं लेकिन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने तीन के मुकाबले आठ के बहुमत से इसे नामंजूर कर दिया.
उच्चतम न्यायालय के अध्यक्ष लॉर्ड न्यूबर्गर ने कहा, ‘तीन के मुकाबले के आठ के बहुमत से उच्चतम न्यायालय आदेश देता है कि सरकार संसद की मंजूरी के बिना अनच्छुद 50 को प्रभाव में नहीं ला सकती.’ मामले के आधिकारिक आदेश में इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया है, ‘जनमत संग्रह के नतीजे को क्रियान्वित करने के लिए कानून में जरूरी बदलाव ब्रिटिश संविधान में दिए गए प्रावधान यानी विधेयक के जरिए होना चाहिए.’
ब्रिटेन के अटॉर्नी जनरल जेरेमी राइट ने कहा कि सरकार ‘निराश’ है लेकिन वह इसका ‘अनुपालन’ करेगी और अदालत के फैसले को लागू कराने के लिए ‘सभी जरूरी कदम उठाएगी.’’ ब्रिटिश सरकार पिछले साल नवंबर में ब्रेग्जिट विरोधी कार्यकर्ताओं की ओर से उच्च न्यायालय में लाए गए मामले में हार गई थी. इसके बाद उसने उच्चतम न्यायालय में अपील की थी.
सुनवाई में स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड की दलीलों को उन्हें मामले में पक्षकार मानते हुए शामिल किया गया. ब्रिटेन की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि ब्रेग्जिट की आधिकारिक प्रक्रिया में स्कॉटिश संसद और वेल्स एवं उत्तरी आयरलैंड की एसेंबलियों को भूमिका की जरूरत नहीं है. उम्मीद की जा रही है कि न्यायालय से झटका मिलने के बाद यूरोपीय संघ से हटने के मामलों के ब्रिटिश विदेश मंत्री डेविड डेविस हाउस आफ कामन्स में बयान देंगे.
डाउनिंग स्ट्रीट कई सप्ताह से फैसले की तैयारी कर रहा था और समझा जाता है कि उसने अनुच्छेद 50 को लागू कराने की संसदीय मंजूरी हासिल करने के लिए एक छोटे विधेयक का मसौदा तैयार कर लिया था. प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने कहा था कि वह मार्च के अंत तक ब्रेक्जिट से बाहर होने की अपनी योजना पर कायम रहेंगी. यूरोपीय संघ से ब्रिटेन की वापसी को ब्रेक्जिट के तौर पर जाना जाता है. पिछले वर्ष 23 जून को हुए एक जनमत संग्रह के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा मार्च 2017 तक अनुच्छेद 50 को लागू करने की प्रक्रिया शुरू किए जाने की संभावना थी.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
उच्चतम न्यायालय के अध्यक्ष लॉर्ड न्यूबर्गर ने कहा, ‘तीन के मुकाबले के आठ के बहुमत से उच्चतम न्यायालय आदेश देता है कि सरकार संसद की मंजूरी के बिना अनच्छुद 50 को प्रभाव में नहीं ला सकती.’ मामले के आधिकारिक आदेश में इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया है, ‘जनमत संग्रह के नतीजे को क्रियान्वित करने के लिए कानून में जरूरी बदलाव ब्रिटिश संविधान में दिए गए प्रावधान यानी विधेयक के जरिए होना चाहिए.’
ब्रिटेन के अटॉर्नी जनरल जेरेमी राइट ने कहा कि सरकार ‘निराश’ है लेकिन वह इसका ‘अनुपालन’ करेगी और अदालत के फैसले को लागू कराने के लिए ‘सभी जरूरी कदम उठाएगी.’’ ब्रिटिश सरकार पिछले साल नवंबर में ब्रेग्जिट विरोधी कार्यकर्ताओं की ओर से उच्च न्यायालय में लाए गए मामले में हार गई थी. इसके बाद उसने उच्चतम न्यायालय में अपील की थी.
सुनवाई में स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड की दलीलों को उन्हें मामले में पक्षकार मानते हुए शामिल किया गया. ब्रिटेन की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि ब्रेग्जिट की आधिकारिक प्रक्रिया में स्कॉटिश संसद और वेल्स एवं उत्तरी आयरलैंड की एसेंबलियों को भूमिका की जरूरत नहीं है. उम्मीद की जा रही है कि न्यायालय से झटका मिलने के बाद यूरोपीय संघ से हटने के मामलों के ब्रिटिश विदेश मंत्री डेविड डेविस हाउस आफ कामन्स में बयान देंगे.
डाउनिंग स्ट्रीट कई सप्ताह से फैसले की तैयारी कर रहा था और समझा जाता है कि उसने अनुच्छेद 50 को लागू कराने की संसदीय मंजूरी हासिल करने के लिए एक छोटे विधेयक का मसौदा तैयार कर लिया था. प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने कहा था कि वह मार्च के अंत तक ब्रेक्जिट से बाहर होने की अपनी योजना पर कायम रहेंगी. यूरोपीय संघ से ब्रिटेन की वापसी को ब्रेक्जिट के तौर पर जाना जाता है. पिछले वर्ष 23 जून को हुए एक जनमत संग्रह के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा मार्च 2017 तक अनुच्छेद 50 को लागू करने की प्रक्रिया शुरू किए जाने की संभावना थी.
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