तालिबान का असली रंग आया सामने, महिलाओं के खेल-कूद पर लगाई रोक, क्रिकेट खिलाड़ी छिपकर रहने को मजबूर

तालिबान के कथित सांस्कृतिक विभाग के उप प्रमुख अहमदुल्लाह वासिक ने एक इंटरव्यू में कहा है कि महिलाओं का क्रिकेट या ऐसा कोई खेल खेलना ज़रूरी नहीं जिससे उनका चेहरा और शरीर दिखे. मीडिया के जरिए भी उनकी तस्वीरें लोग देखते हैं, जिसकी इस्लाम इजाज़त नहीं देता.

तालिबान का असली रंग आया सामने, महिलाओं के खेल-कूद पर लगाई रोक, क्रिकेट खिलाड़ी छिपकर रहने को मजबूर

अफगानिस्तान में प्रदर्शन और महिलाओं के खेल-कूद पर लगा बैन

नई दिल्ली:

तालिबान (Taliban) की कार्यकारी सरकार ने अपने कारनामे दिखाने शुरू कर दिए हैं.  तालिबानी गृह मंत्रालय ने देश में प्रदर्शनों पर रोक लगा दी है. वहीं तालिबानी संस्कृति विभाग की तरफ से कहा गया है कि महिलाओं को खेलकूद (Women Sports Ban) में हिस्सा नहीं लेने दिया जाएगा. हाल ही में तालिबान ताबड़तोड़ हवाई फायरिंग करते रहे लेकिन काबुल की सड़कों पर अफगानिस्तान की महिलाएं अपनी आवाज़ बुलंद करती रहीं. कई जगह उन्होंने तालिबानी सिपाहियों का घेरा भी तोड़ दिया, लेकिन ये सब तालिबान को इतना नागवार गुजरा कि अब उसने प्रदर्शनों पर पाबंदी लगा दी है.आतंकी लिस्ट में शुमार सिराजुद्दीन हक्कानी के नेतृत्व वाले गृह मंत्रालय ने कहा है कि इस समय कोई भी शख़्स किसी तरह का प्रदर्शन न करे. प्रदर्शन करना है तो पहले न्याय मंत्रालय से इसकी अनुमति लें. प्रदर्शन की वजह, जगह, वक़्त, इसमें इस्तेमाल होने वाले बैनर और लगाए जाने वाले नारों की भी जानकारी दें.

तालिबान के मंत्री जबीबुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि अभी प्रदर्शन का समय और माहौल नहीं है. किसी को गलत मंशा के साथ प्रदर्शन नहीं करने दिया जाएगा. न्याय मंत्रालय से अनुमति के बगैर प्रदर्शन की इजाज़त नहीं होगी.

तालिबानी फरमान तो महिलाएं के खेलने पर भी रोक लगाने का है. तालिबान के कथित सांस्कृतिक विभाग के उप प्रमुख अहमदुल्लाह वासिक ने एक इंटरव्यू में कहा है कि महिलाओं का क्रिकेट या ऐसा कोई खेल खेलना ज़रूरी नहीं जिससे उनका चेहरा और शरीर दिखे. मीडिया के जरिए भी उनकी तस्वीरें लोग देखते हैं, जिसकी इस्लाम इजाज़त नहीं देता.तालिबान के आने के बाद ही अफग़ानिस्तान की तमाम महिला क्रिकेट खिलाड़ी छुप कर रहने को मजबूर हैं. बाक़ियों का भी यही हाल है. तालिबान फिर से महिलाओं को घर और बुर्के में कैद करने की अपनी मुहिम में जुट गया है.

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अफगानिस्तान में जिस तरह के हालात बने हुए हैं ऐसे में बहुत से लोग देश छोड़ने को बेताब हैं. पिछले एक महीने में करीब 70 सिख अफगानी भारत आए हैं, ज़्यादातर की क्वॉरंटीन अवधि खत्म हो चुकी है, लेकिन आज इन्हें सामने एक लंबा संघर्षपूर्ण जीवन है क्योंकि अब न इनके पास रहने के लिए छत है और न खर्चा चलाने के लिए कोई एकाम। वो करें तो क्या करें.