तालिबान सरकार (Taliban rule) ने अपने प्रमुखों और मंत्रियों के नामों का ऐलान कर दिया है. इसमें हक्कानी नेटवर्क (Haqqani Network) समेत कई ऐसे आतंकी कमांडर शामिल हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक आतंकी घोषित (UN Blacklisted Terrorist) कर रखा है. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान ने 15 अगस्त तक कब्जा जमा लिया था और करीब एक महीने बाद उसकी नई सरकार सामने आई है. तालिबान की नई सरकार ऐसे वक्त बनी है, जब अफगानिस्तान में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं.
इसमें मजार-ए-शरीफ और हेरात में महिलाओं के विरोध प्रदर्शन शामिल हैं. इसके अलावा काबुल में पाकिस्तान दूतावास के बाहर मंगलवार को एक रैली हुई थी. इस प्रदर्शन में पाकिस्तान पर अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी करने का आरोप लगाते हुए पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगे थे. तालिबान की 1990 के दशक में रही पिछली सरकार में मंत्री रहे मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद (Mullah Mohammad Hassan Akhund) को प्रधानमंत्री बनाया गया है.
तालिबान ने एक समावेशी सरकार का वादा किया था, जिसमें सभी जातियों के नेताओं को जगह देने की बात कही गई थी. लेकिन नई अफगान सरकार के ज्यादातर पदों पर तालिबान को खड़ा करने वाले और हक्कानी नेटवर्क (Haqqani network) के कमांडरों को नियुक्त किया गया है. हक्कानी गुट पर अफगानिस्तान में कई बड़े आत्मघाती हमलों को अंजाम देने का आऱोप है. तालिबान सरकार में एक भी महिला को शामिल नहीं किया गया है.
तालिबान की अंतरिम सरकार पर प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि हम देश के अन्य हिस्सों से भी लोगों को सरकार में शामिल करने की कोशिश करेंगे. तालिबान की नई सरकार का ऐलान होते ही हिबातुल्ला अखूनजादा सामने आया. उसने कहा कि नई सरकार इस्लामिक नियमों औऱ शरिया कानून (sharia law) के तहत शासन चलाने के लिए भरपूर मेहनत करेगी. अमेरिकी थिंकटैंक लॉग वॉर जर्नल ने एक ट्वीट में कहा है कि नए और पुराने तालिबान शासन में कोई फर्क नहीं है.
तालिबान की पिछली सरकार के मुखिया मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब को रक्षा मंत्री बनाया गया है. जबकि गृह मंत्रालय हक्कानी गुट के नेता सिराजुद्दीन हक्कानी को दिया गया है. वुडरो विल्सन इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्कॉलर्स में दक्षिण एशिया मामलो ंके विशेषज्ञ माइकल कुगलमैन ने कहा कि यह सबकी नुमाइंदगी वाली सरकार नहीं है और सरकार में शामिल चेहरों को लेकर कोई हैरत नहीं है.
तालिबान के सह संस्थापक नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर (Taliban co-founder Abdul Ghani Baradar) को उप प्रधानमंत्री पद से संतोष करना पड़ा है. तालिबान ने कभी नहीं कहा था कि उनकी सरकार में संगठन के अलावा बाहर का भी कोई नेता होगा.
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