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PM मोदी से मिले श्रीलंकाई राष्ट्रपति दिसानायके, इस तस्वीर से चीन को क्यों लगी होगी मिर्ची? जरा समझिए

श्रीलंका में चुनाव जीतने के बाद राष्ट्रपति अपने पड़ोसी देश भारत की यात्रा को प्राथमिकता देते रहे हैं. दिसानायके ने भी इस अलिखित परंपरा को जारी रखा. दिसानायके ने जहां भारत की चिंता को दूर करने की कोशिश की, वहीं, PM मोदी ने आश्वासन दिया कि भारत इस मुश्किल घड़ी से उबरने के लिए श्रीलंका का साथ देगा.

PM मोदी से मिले श्रीलंकाई राष्ट्रपति दिसानायके, इस तस्वीर से चीन को क्यों लगी होगी मिर्ची? जरा समझिए
PM मोदी और श्रीलंकाई राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके की दिल्ली के हैदराबाद हाउस में मुलाकात हुई.
नई दिल्ली/कोलंबो:

श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके (Anura Kumara Dissanayake) पदभार संभालने के बाद अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा पर भारत आए हैं. वह रविवार को भारत पहुंचे और मंगलवार तक रहेंगे. दिल्ली के हैदराबाद हाउस में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और दिसानायके की मुलाकात हुई. श्रीलंका में इसी साल 22 सितंबर को वामपंथी नेता दिसानायके ने राष्ट्रपति चुनावों में जीत दर्ज की, उसके बाद से भारत की मीडिया में चिंता ज़ाहिर की गई थी. उन्होंने वामपंथी पार्टियों के गठबंधन नेशनल पीपल्स पावर (NPP) की तरफ से राष्ट्रपति चुनाव लड़ा था. इसकी राजनीति को भारत विरोधी माना जाता रहा है. 

भारतीय मीडिया में ये जाहिर किया गया था कि राष्ट्रपति बनने के बाद अपनी पहली यात्रा के लिए दिसानायके चीन को चुनेंगे. माना जा रहा था कि श्रीलंका की मार्क्सवाद-लेनिनवाद विचारधारा वाली वामपंथी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना की शुरुआती भारत विरोधी नीति और चीन से नजदीकियों के कारण दिसानायके भारत के प्रति श्रीलंका का रवैया बदल सकते हैं.

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हालांकि, इन अटकलों और चिंताओं को विराम लगाते हुए दिसानायके ने चीन से पहले भारत की यात्रा की. दिसानायके और PM मोदी से मुलाकात की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर हो रही हैं. ऐसे में साफ है कि दिसानायके के बयान और PM मोदी के साथ उनकी तस्वीरों को देखकर चीन को श्रीलंका के साथ अपने रिश्तों को लेकर चिंता तो जरूर हुई होगी.

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दरअसल, ऐसा होता आया है कि श्रीलंका में चुनाव जीतने के बाद राष्ट्रपति अपने पड़ोसी देश भारत की यात्रा को प्राथमिकता देते रहे हैं. दिसानायके ने भी इस अलिखित परंपरा को जारी रखा. PM मोदी से मुलाकात के बाद श्रीलंकाई राष्ट्रपति दिसानायके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ज्वॉइंट स्टेटमेंट जारी किया. दिसानायके ने जहां भारत की चिंता को दूर करने की कोशिश की, वहीं, PM मोदी ने आश्वासन दिया कि भारत इस मुश्किल घड़ी से उबरने के लिए श्रीलंका का साथ देगा.

अपनी जमीन को भारत के हितों के खिलाफ नहीं होने देंगे इस्तेमाल
दिसानायके ने कहा, "मैंने भारत के प्रधानमंत्री को यह आश्वासन दिया है कि हम अपनी जमीन को किसी भी तरह से भारत के हितों खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देंगे. भारत के साथ सहयोग निश्चित रूप से बढ़ेगा. मैं भारत के लिए अपने निरंतर समर्थन का आश्वासन देना चाहता हूं."

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देशों के रिश्तों में नई ऊर्जा का संचार होगा संचार- PM मोदी
वहीं, PM मोदी ने कहा, "मैं श्रीलंका के राष्ट्रपति का भारत में स्वागत करता हूं. मुझे खुशी है कि राष्ट्रपति बनने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए उन्होंने भारत को चुना है. इस यात्रा से दोनों देशों के रिश्तों में नई ऊर्जा का संचार होगा."

आपस में जुड़े हमारे सुरक्षा हित 
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "हम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि हमारे सुरक्षा हित आपस में जुड़े हुए हैं. हमने रक्षा सहयोग समझौते को जल्द ही अंतिम रूप देने का फैसला किया है."

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PM मोदी ने कहा, "हमने अपनी आर्थिक साझेदारी में इन्वेस्टमेंट लेड ग्रोथ और कनेक्टिविटी पर बल दिया है. डिजिटल, फिजिकल और एनर्जी कनेक्टिविटी हमारी भागीदारी के अहम पिलर्स होंगे. दोनों देशों के बीच इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड कनेक्टिविटी और मल्टी प्रोडक्ट पेट्रोल पाइप लाइन स्थापित करने पर फोकस किया जाएगा. दोनों देशों के बीच सोलर पावर प्रोजेक्ट पर भी जोर दिया जाएगा."

भारत ने अब तक श्रीलंका को दी 5 बिलियन डॉलर की मदद
PM मोदी ने श्रीलंका के विकास में भारत के मजबूत समर्थन पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, "भारत ने अब तक श्रीलंका को 5 बिलियन डॉलर की मदद दी है. श्रीलंका के सभी 25 जिलों में हमारा सहयोग है. हमारी परियोजनाओं का चयन हमेशा साझेदार देशों की विकास प्राथमिकताओं के आधार पर होता है."

दिसानायके के भारत दौरे के मायने?
-श्रीलंका अपनी विदेश नीति में गुटनिरपेक्ष नीति को फॉलो करता है. इस नीति पर टिके रहने के रूप में ही नए राष्ट्रपति एक अलिखित परंपरा के तौर पर अपने पहले विदेशी दौरे के लिए भारत का चुनाव करते हैं. जब सत्ता परिवर्तन होता है, तब भी ज्यादातर देशों में विदेश नीति में पूरी तरह बदलाव नहीं आता है. राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने भी इस ट्रेडिशन को आगे बढ़ाया है. 

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-अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने और संकट से उबरने के लिए श्रीलंका को अपने पड़ोसियों की दरकार है. श्रीलंका इसके लिए भारत की ओर देख रहा है. क्योंकि उसपर पहले से चीन का बहुत ज्यादा कर्जा है. कर्ज चुकाने के लिए श्रीलंका को अपनी कई चीजें चीन को या तो बेचनी पड़ी हैं या फिर गिरवी रखनी पड़ी हैं. ऐसे में श्रीलंका भारत से आर्थिक सहयोग की आस लगाए बैठा है.

-अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए श्रीलंका BRICS में शामिल भी होना चाहता है. श्रीलंका के विदेश मंत्री विजिता हेराथ ने अक्टूबर में बताया कि उनका देश जल्द ही ब्रिक्स और न्यू डेवलपमेंट बैंक की सदस्यता के लिए जल्द ही आवेदन करेगा. दिसानायके को उम्मीद है कि भारत से साथ दिया तो BRICS में उसकी एंट्री पक्की है.

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-अप्रैल 2022 में श्रीलंका को कड़े आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था. उस पर 83 अरब डॉलर का कर्ज था. तब देश में महंगाई 70% तक पहुंच गई थी. आर्थिक संकट के बीच राजनीतिक अस्थिरता भी पैदा हो गई थी. इस मुश्किल घड़ी में भारत ने नेबरहुड फर्स्ट का परिचय देते हुए श्रीलंका का साथ दिया था. भारत ने श्रीलंका को 4 अरब डॉलर का कर्ज दिया. साथ ही मानवीय सहायता पहुंचाई थी. ऐसे में श्रीलंकाई राष्ट्रपति को उम्मीद है कि भारत के दौरे से उन्हें श्रीलंका के कर्ज का पुनर्गठन करने में मदद मिलेगी. 

भारत ने श्रीलंका के नए नेतृत्व से कैसे बिठाया तालमेल?
दूसरी ओर, श्रीलंका की विदेश नीति में भारत की जितनी अहमियत है. उतनी ही अहमियत भारत की विदेश नीति में श्रीलंका की भी रही है. इसलिए जब श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन हुआ और भारत विरोधी नीति वाली जनता विमुक्ति पेरामुना पार्टी गठबंधन सरकार का हिस्सा बनी, तो विदेश मंत्री एस जयशंकर तुरंत एक्टिव हो गए. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अक्टूबर के पहले सप्ताह में श्रीलंका का दौरा किया था. इस दौरान उन्होंने श्रीलंका के नए प्रशासन से कई मुद्दों पर बात की थी. चुनाव से 8 महीने पहले फरवरी 2024 में जब दिसानायके भारत आए थे, तब भी उनकी जयशंकर से मुलाकात हुई थी. इससे श्रीलंका के नए नेतृत्व के साथ तालमेल बिठाने में काफी मदद मिली. 

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भारत-श्रीलंका की दोस्ती से चीन को क्या दिक्कत?
-भौगोलिक दृष्टि से, श्रीलंका भारत के दक्षिणी तट पर स्थित है, जो पाक जलडमरूमध्य (Palk Strait) से अलग होते हैं. भारत के लिए श्रीलंका हिंद महासागर में सामरिक महत्व रखने वाला द्वीपीय देश है. अगर भारत और श्रीलंका की नजदीकियां बढ़ीं, तो यह चीन के हिंद महासागर में बढ़ते प्रभाव को कमजोर कर सकता है.

-हिंद महासागर श्रीलंका का स्थान रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है. भारत के साथ उसकी दोस्ती चीन के इस क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव को रोकने में मदद कर सकती है.

-भारत-श्रीलंका की दोस्ती से चीन के आर्थिक हितों को भी नुकसान हो सकता है. श्रीलंका में चीन के कई आर्थिक प्रोजेक्ट हैं, और भारत के साथ उसकी दोस्ती चीन के इन प्रोजेक्ट्स को प्रभावित कर सकती है.

-दिसानायके के भारत विरोधी होने के नाते चीन और शी जिनपिंग को उम्मीद थी कि अब श्रीलंका में चीन का अलाइंमेंट बनेगा. लेकिन अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा पर दिसानायके के भारत जाने से अब चीन को अपना अलाइंमेंट बिगड़ने की चिंता सता रही होगी. 

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चीन का श्रीलंका पर कितना कर्ज
भारत के पड़ोसी श्रीलंका पर कुल कर्ज 61.7 बिलियन डॉलर है. विश्व बैंक के मुताबिक, चीन ने पिछले कुछ साल में श्रीलंका को 8.54 बिलियन डॉलर का लोन दिया है. चीन श्रीलंका में मटाला एयरपोर्ट समेत कई प्रोजेक्ट में पैसे लगा रहा है. 

कैसे चीन के मकड़जाल में फंसा था श्रीलंका?
श्रीलंका को 1948 में ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी. उसके 7 दशक बाद श्रीलंका के सामने पिछले साल सबसे बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया था. ये संकट विदेशी मुद्रा की भारी कमी की वजह से पैदा हुआ था. विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका में चीनी कर्ज का हिस्सा 1990 के दशक के अंत में सिर्फ 0.3% था. लेकिन 2000 के बाद से ही श्रीलंका के कर्ज में हिस्सेदारी लगातार बढ़ने लगी. 

2016 में चीन की हिस्सेदारी बढ़कर 16% हो गई. 2022 के आखिर होते-होते श्रीलंका में चीनी कर्ज का भंडार 7.3 अरब अमेरिकी डॉलर तक जा पहुंचा. ये राशि श्रीलंका के सार्वजनिक विदेशी ऋण का 19.6% हिस्सा था. इस मुश्किल घड़ी में तब भारत ने अपने पड़ोसी श्रीलंका की मदद की थी.

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