- रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4 दिसंबर को दो दिवसीय भारत दौरे पर आएंगे
- यह पुतिन का यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत का पहला दौरा है, जिसमें युद्ध समाप्ति पर चर्चा संभव है
- चीन और अमेरिका दोनों इस दौरे पर नजर बनाए हुए हैं, और अमेरिकी सुरक्षा विशेषज्ञ संभावित समझौतों पर ध्यान देंगे
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दो दिवसीय दौरे पर 4 दिसंबर को शाम 7 बजे के करीब भारत पहुंच रहे हैं. रूसी राष्ट्रपति के स्वागत के लिए दिल्ली तैयार है. भारत दौरे पर पुतिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात करेंगे. दोनों नेताओं की इस मुलाकात पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं. यह यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से पुतिन का पहला भारत दौरा है. उम्मीद की जा रही है कि युद्ध खत्म करने को लेकर भी दोनों नेताओं के बीच बातचीत हो सकती है. कई वजहों से मोदी-पुतिन के इस दौरे पर अमेरिका और चीन समेत दुनिया के तमाम देशों की निगाहें टिकी हैं.
एक तरफ, यूक्रेन के साथ युद्ध की वजह से अमेरिका और यूरोपीय देश रूस से व्यापार रोकने के लिए भारत पर लगातार दबाव बना रहे हैं. ताजा उदाहरण में ट्रंप की टैरिफ नीति है. अमेरिका भारत पर मनमाने टैरिफ लगाकर उस पर रूस से ऊर्जा निर्भरता को कम करने के लिए लगातार दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, भारत ने अपना पक्ष साफ रखा कि वह अपने देश और यहां की जनता का हित पहले देखेगा.
तमाम दबावों के बीच भारत ने रूस के साथ अपने सैन्य समझौते जारी रखे हुए हैं. भारत और रूस के बीच रक्षा समझौता काफी मजबूत है, जो पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय है. यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी पूरी तरह से रूस और पुतिन का विरोध कर रहे हैं. इस वजह से भारत में पुतिन और मोदी की इस मुलाकात से यूरोपीय देशों और अमेरिका को मिर्ची लगनी तय है. जिस तरह से अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने भारत पर रूस के साथ व्यापारिक संबंध खत्म करने का दबाव बनाया, इसे देखते हुए पुतिन का ये दौरा इस बात का संकेत है कि भारत अपनी नीतियों पर निर्णय खुद लेने में सक्षम है. दूसरे देश भारत को नहीं बता सकते कि उसे क्या करना है.
लीसा कर्टिस ने साफ कहा कि "अमेरिका को यह मीटिंग मददगार नहीं लगेगी, क्योंकि यह ऐसे समय में हो रही है जब राष्ट्रपति पुतिन यूक्रेन के खिलाफ अपनी लड़ाई बढ़ा रहे हैं और यहां तक कि यूरोप को ड्रोन घुसपैठ और साइबर-अटैक की धमकी भी दे रहे हैं."
लीसा कार्टिस ने पहले ट्रंप सरकार में काम किया था और अब सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी में इंडो-पैसिफिक सिक्योरिटी प्रोग्राम की डायरेक्टर हैं. अमेरिका ने हाल ही में जिस तरह से अमेरिका ने टैरिफ के जरिए भारत के ऊपर दबाव बनाने की कोशिश की है, उसे लेकर कार्टिस ने कहा कि यह मुलाकात वाशिंगटन के लिए एक कूटनीतिक इशारा है. भारत को परेशान नहीं किया जाएगा. भारत अमेरिका के दबाव में नहीं झुकेगा. ना ही नई दिल्ली अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता को छोड़ेगी.
कार्टिस ने अमेरिका को सावधानी बरतने की सलाह दी और कहा कि वॉशिंगटन को ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए, क्योंकि भारत और रूस के बीच पारंपरिक रूप से मजबूत संबंध रहे हैं. ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन में काम कर रही तन्वी मदान ने कहा कि वॉशिंगटन खास तौर पर समिट की दो बातों पर नजर रखेगा: एक- पुतिन को दिए जाने वाले सेरेमोनियल ट्रीटमेंट का लेवल और दूसरा- डिफेंस और एनर्जी पर फाइनल परिणाम.
उन्होंने आगे कहा कि अमेरिकी विशेषज्ञ यह देखेंगे कि कौन से सुरक्षा समझौते पर डील पक्की हुई है. मदान ने भारत की रूसी तेल खरीद पर फिर से ध्यान देने की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा, "लोग तेल इंपोर्ट की हालत के हिसाब से आंकड़ों पर भी नजर रखेंगे."
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं