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यूक्रेन में बढ़त के बाद पुतिन के तेवर बदले! बोले- 'लक्ष्य तो पाकर रहेंगे', यूरोप को दी सीधी चेतावनी

पुतिन की यह प्रेस कॉन्फ्रेंस महज एक सवाल-जवाब का सत्र नहीं है, बल्कि यह आने वाले सालों के लिए रूस की भू-राजनीतिक दिशा तय करेगी.

यूक्रेन में बढ़त के बाद पुतिन के तेवर बदले! बोले- 'लक्ष्य तो पाकर रहेंगे', यूरोप को दी सीधी चेतावनी
व्लादिमीर पुतिन की वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस शुक्रवार को: यूक्रेन युद्ध और शांति वार्ता पर रहेगा फोकस (फाइल फोटो)

Russia News in Hindi: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) अपनी सत्ता के 25वें साल में इस शुक्रवार को एक बार फिर अपनी पारंपरिक वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस (Annual Press Conference) करने जा रहे हैं. यूक्रेन के मोर्चे पर मिली हालिया सैन्य बढ़त और 4 साल से जारी युद्ध को खत्म करने के वैश्विक दबाव के बीच, पुतिन का यह संबोधन दुनिया भर की नजरों में है.

'बातचीत नहीं तो सैन्य बल ही सही'

जैसे-जैसे युद्ध एक और बर्फीली सर्दी में प्रवेश कर रहा है, पुतिन के हौसले बुलंद नजर आ रहे हैं. पुतिन ने साफ कर दिया है कि वह झुकने के मूड में नहीं हैं. उन्होंने हाल ही में यूरोपीय संघ (EU) के नेताओं को "पिगलेट्स" (सुअर के बच्चे) कहकर संबोधित किया और स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि कूटनीति विफल रही, तो रूस सैन्य बल के जरिए पूर्वी यूक्रेन के शेष हिस्सों पर कब्जा कर लेगा.

पुतिन ने हाल ही में रक्षा अधिकारियों से कहा, 'स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन के लक्ष्य निश्चित रूप से प्राप्त किए जाएंगे.'

रूस-यूक्रेन युद्ध: एक नजर में

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप के सबसे बड़े सैन्य संकट के रूप में उभरा यह युद्ध फरवरी 2022 में शुरू हुआ था. हजारों लोगों की जान लेने वाले इस संघर्ष ने न केवल रूस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का पहाड़ लाद दिया, बल्कि रूसी समाज के भीतर भी अभिव्यक्ति की आजादी पर सोवियत युग जैसी पाबंदियां लगा दी हैं.'

ट्रम्प फैक्टर और यूरोप की बेचैनी

यह प्रेस कॉन्फ्रेंस ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से शांति समझौते का दबाव बढ़ रहा है. यूरोपीय देशों को डर है कि ट्रम्प यूक्रेन को 'सरेंडर' करने पर मजबूर कर सकते हैं. वहीं, रूस वर्तमान में बातचीत के लिए बेहतर स्थिति (Upper Hand) में है और युद्धविराम से पहले एक स्थायी समझौता चाहता है.

आम रूसी जनता के मन में क्या है?

मॉस्को की सड़कों पर माहौल मिला-जुला है. लोग शांति तो चाहते हैं, लेकिन सरेंडर की कीमत पर नहीं. 55 वर्षीय अकाउंटेंट लिली रेशेतन्याक कहती हैं, 'मेरे अपने डोनबास में लड़ रहे हैं. मैं नहीं चाहती कि हम वहां से पीछे हटें. बस यही मेरी सबसे बड़ी चिंता है.' वहीं, 65 वर्षीय अन्ना ने कहा कि हम बस यह पूछना चाहते हैं कि शांति कब आएगी, लेकिन हम पुतिन के साथ खड़े हैं.

युद्ध की असली कीमत: महंगाई और दमन

युद्ध के चार सालों ने रूसी अर्थव्यवस्था को 'वॉर फुटिंग' (War Footing) पर ला खड़ा किया है. भारी प्रतिबंधों के कारण आम लोगों का जीना मुहाल हो रहा है. मॉस्को तो चमक रहा है, लेकिन छोटे शहरों की हालत खराब है. रूस में युद्ध की आलोचना करना प्रतिबंधित है. हजारों लोग जेलों में हैं या निर्वासन में. पुतिन के राजनीतिक विरोधी या तो जेल में हैं, या देश छोड़ चुके हैं या अब जीवित नहीं हैं.

12 टाइम जोन्स और एक सवाल

शुक्रवार को होने वाले इस लाइव टीवी शो में रूस के 12 टाइम जोन्स से सवाल पूछे जाएंगे. दुनिया यह देखना चाहती है कि क्या पुतिन शांति का कोई रास्ता खोलेंगे या फिर अपनी "सैन्य विजय" के संकल्प को और अधिक आक्रामक बनाएंगे.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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