देश की खुफिया एजेंसी आईएसआई और उसके प्रमुख को निशाना बनाने वाली खबरों से चिढ़कर पाकिस्तान के रक्षा मंत्रालय ने मीडिया निगरानी समूह में शिकायत कर देश के सबसे बड़े समाचार चैनल ‘जियो टीवी’ को बंद करने की मांग की है।
सेना इन खबरों को ‘झूठी रिपोर्ट’ बता रही है।
कराची में शनिवार को जियो टीवी के चर्चित एंकर मीर पर हमले के बाद विवाद पैदा हो गया था। हमले के ठीक बाद मीर के भाई ने चैनल पर आकर दोष मढ़ा था कि हमला आईएसआई के ‘कुछ तत्वों’ और उसके प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जहीरूल इस्लाम की कारस्तानी है। इस बयान से सभी आश्चर्यचकित रह गए थे।
चैनल लगातार आरोप लगाने वाले इस बयान को दिखाता रहा था, लेकिन बाद में उसने इससे दूरी बनाते हुए कहा कि यह परिवार का विचार है और मीर ने घटना से पहले जो गुप्त बातें बताई हैं, उसी पर आधारित है।
रक्षा मंत्रालय ने शाम चैनल के खिलाफ पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नियामक प्राधिकार (पीईएमआरए) के समक्ष शिकायत दर्ज कराई है।
खबर है कि मंत्रालय के अधिकारी शिकायत करने में हिचकिचा रहे थे, लेकिन सेना के दबाव के कारण उन्हें शिकायत करनी पड़ी।
‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट’ की वेबसाइट पर उपलब्ध शिकायत की प्रति के अनुसार, जियो न्यूज चैनल पर शुरुआती दिनों में अपमानजनक और कुत्सित प्रकृति का एक विद्वेषपूर्ण अभियान चलाया गया, जिसमें सरकारी प्राधिकार और उसके प्रमुख के खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए।
जियो टीवी के खिलाफ की गई शिकायत में आरोप लगाया गया है कि पूरे अभियान ‘का लक्ष्य सरकारी प्राधिकारों और उसके अधिकारियों को झूठे तरीके से आतंकवादी संगठनों..गतिविधियों से जोड़कर उनकी सम्प्रभुता को कमजोर करना और उनकी छवि धूमिल करना था। उसमें कहा गया है कि यह ‘प्रयास’ प्राधिकारों और देश के हितों के विरुद्ध है।
पीईएमआरए के प्रवक्ता फखरूद्दीन मुगल ने बताया कि रक्षा मंत्रालय ने टीवी चैनल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है और उसका कानूनी दल उसकी समीक्षा कर रहा है।
मुगल ने कहा, हां, हमें शिकायत मिली है। सभी मामलों की तरह हमारी कानूनी टीम इसकी समीक्षा कर रही है वह उसका अध्ययन करेंगे और अपनी सिफारिश भेजेंगे जो हमारे वर्तमान 11 बोर्ड सदस्यों को भेजी जाएगी। वह तय करेंगे कि कानूनी दल की सिफारिशों को मानना है या नहीं। यह पूछने पर कि ऐसी शिकायतों में सामान्य तौर पर कितना वक्त लगता है, उन्होंने जवाब दिया, सामान्य रूप से इसमें कुछ दिन लगते हैं। हमारे अधिनियम के तहत ऐसे मामलों का फैसला 100 दिन के भीतर होना अनिवार्य है।
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