वाशिंगटन:
अमेरिका में पाकिस्तान के एक पूर्व राजदूत ने कहा है कि पाकिस्तान को अब कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल नहीं है और उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से क्षेत्र में जनमत संग्रह कराने की मंजूरी मिलने की संभावना भी नहीं है।
अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने कहा , कश्मीर पाकिस्तान में एक भावनात्मक मुद्दा है। उसके नेता अपने लोगों को यह बताने में असफल रहे हैं कि पाकिस्तान को इस मुद्दे पर अब अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल नहीं है। हडसन इंस्टीट्यूट में दक्षिण एवं मध्य एशिया के मौजूदा निदेशक हक्कानी ने कहा कि पाकिस्तान वर्षों से इस बात के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन मांग रहा है कि कश्मीर के भविष्य संबंधी विवाद को भारत के साथ वार्ता के जरिये सुलझाया जाए और कश्मीरी लोगों के बीच जनमत संग्रह कराया जाए।
उन्होंने कहा कि भारत इस विवाद पर तब तक बात भी नहीं करना चाहता, जब तक पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद समाप्त नहीं हो जाता।
हक्कानी ने अमेरिकी थिंक टैंक हडसन इंस्टीट्यूट की वेबसाइट पर एक लेख में लिखा, अधिकतर पाकिस्तानी यह नहीं जानते हैं कि कश्मीर के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आखिरी प्रस्ताव 1957 में पारित हुआ था और यदि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में नए मतदान की बात करता है तो वह कश्मीर में जनमत संग्रह के लिए आज समर्थन हासिल नहीं कर सकता।
राजदूत के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान शक्तिशाली सेना के साथ टकराव की स्थिति में रहे हक्कानी ने कहा, यह स्वीकार करने के बजाए कि व्यापार बढ़ाकर और सीमा पार यात्रा के जरिये संबंधों को सामान्य करना बेहतर होगा, पाकिस्तानी कट्टरपंथी ‘पहले कश्मीर’ के मंत्र पर अटके हुए हैं, जो कि अवास्तविक है। उन्होंने कहा कि कश्मीर पर रुख पाकिस्तान को कहीं नहीं लेकर जाएगा, लेकिन इसके नेताओं को लगता है कि उन्हें अपने देश में इस्लामियों और सेना का समर्थन हासिल करने के लिए इस रुख पर बने रहना होगा।
हक्कानी के अनुसार, भारत में कट्टरपंथी 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार लोगों जैसे जिहादियों के लिए पाकिस्तान के समर्थन को लेकर भारतीयों की कुंठा का फायदा उठा रहे हैं।
उन्होंने कहा, इस बात को समझे बिना ‘पाकिस्तान को सबक सिखाने’ को लेकर केवल बातें होती हैं कि परमाणु हथियारों से सम्पन्न राष्ट्र को सैन्य सबक सिखाना कभी आसान नहीं होता। भारतीय उत्तर कोरिया को लेकर अमेरिकियों की कुंठा से सबक ले सकते हैं।
अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने कहा , कश्मीर पाकिस्तान में एक भावनात्मक मुद्दा है। उसके नेता अपने लोगों को यह बताने में असफल रहे हैं कि पाकिस्तान को इस मुद्दे पर अब अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल नहीं है। हडसन इंस्टीट्यूट में दक्षिण एवं मध्य एशिया के मौजूदा निदेशक हक्कानी ने कहा कि पाकिस्तान वर्षों से इस बात के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन मांग रहा है कि कश्मीर के भविष्य संबंधी विवाद को भारत के साथ वार्ता के जरिये सुलझाया जाए और कश्मीरी लोगों के बीच जनमत संग्रह कराया जाए।
उन्होंने कहा कि भारत इस विवाद पर तब तक बात भी नहीं करना चाहता, जब तक पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद समाप्त नहीं हो जाता।
हक्कानी ने अमेरिकी थिंक टैंक हडसन इंस्टीट्यूट की वेबसाइट पर एक लेख में लिखा, अधिकतर पाकिस्तानी यह नहीं जानते हैं कि कश्मीर के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आखिरी प्रस्ताव 1957 में पारित हुआ था और यदि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में नए मतदान की बात करता है तो वह कश्मीर में जनमत संग्रह के लिए आज समर्थन हासिल नहीं कर सकता।
राजदूत के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान शक्तिशाली सेना के साथ टकराव की स्थिति में रहे हक्कानी ने कहा, यह स्वीकार करने के बजाए कि व्यापार बढ़ाकर और सीमा पार यात्रा के जरिये संबंधों को सामान्य करना बेहतर होगा, पाकिस्तानी कट्टरपंथी ‘पहले कश्मीर’ के मंत्र पर अटके हुए हैं, जो कि अवास्तविक है। उन्होंने कहा कि कश्मीर पर रुख पाकिस्तान को कहीं नहीं लेकर जाएगा, लेकिन इसके नेताओं को लगता है कि उन्हें अपने देश में इस्लामियों और सेना का समर्थन हासिल करने के लिए इस रुख पर बने रहना होगा।
हक्कानी के अनुसार, भारत में कट्टरपंथी 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार लोगों जैसे जिहादियों के लिए पाकिस्तान के समर्थन को लेकर भारतीयों की कुंठा का फायदा उठा रहे हैं।
उन्होंने कहा, इस बात को समझे बिना ‘पाकिस्तान को सबक सिखाने’ को लेकर केवल बातें होती हैं कि परमाणु हथियारों से सम्पन्न राष्ट्र को सैन्य सबक सिखाना कभी आसान नहीं होता। भारतीय उत्तर कोरिया को लेकर अमेरिकियों की कुंठा से सबक ले सकते हैं।
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