
पाकिस्तान (Pakistan) में मॉनसून (Monsoon) के कारण आई बाढ़ (Flood) को “दानव मॉनसून” करार दिया गया है. इससे पता चलता है कि बारिश के कारण वहां किस हद तक तबाही हुई. द कन्वरसेशन मैगजीन के अनुसार, साइमन फ्रेजर विश्वविद्यालय के जफर अदली कहते हैं, "बीते दो महीने के दौरान आई इस आपदा से पहले देश को मार्च और अप्रैल के महीने में प्रचंड गर्मी का सामना करना पड़ा था. इस गर्मी के कारण पाकिस्तान के उत्तर में स्थित ग्लेशियरों के पिघलने की गति में वृद्धि हुई और जुलाई अगस्त के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में अप्रत्याशित बारिश हुई."
मानव जनित कारणों से जलवायु में हुए परिवर्तन की वजह से मौसम में इस तरह का बदलाव देखने को मिला. इस साल की गर्मी ने पिछले सौ वर्षों का कीर्तिमान ध्वस्त कर दिया और दक्षिण पूर्वी सिंध प्रांत में औसत से नौ गुना ज्यादा बारिश हुई.
जून के मध्य से अब तक 1,300 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और बाढ़ के कारण तीन करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हैं. वर्ष 2019 में पाकिस्तान द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की दर 43 करोड़ 30 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड प्रति वर्ष थी जो कि वैश्विक उत्सर्जन का 0.9 प्रतिशत था.
पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों का बेहद कम उत्सर्जन करता है लेकिन जलवायु परिवर्तन की मार उस पर सबसे ज्यादा पड़ी. इसलिए पाकिस्तान को इस आपदा से उबारने का जिम्मा अंतरराष्ट्रीय समुदाय का है.
मैंने उत्तरी अमेरिका में बाढ़ के आर्थिक प्रभावों का अध्ययन किया है और सिंधु नदी बेसिन में जल प्रबंधन के इतिहास को पढ़ा है इसलिए मैं यह कह सकता हूं कि वर्तमान में जो 10 अरब डॉलर की क्षति बताई जा रही है वह, इस विभीषिका से हुए नुकसान की वास्तविकता से कोसों दूर है.
पाकिस्तान में 2010 में भी बाढ़ आई थी जिसके कारण 1,985 लोगों की जान चली गई थी और 10 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ था. बार-बार होने वाली इन घटनाओं से भविष्य में आने वाली बाढ़ से निपटने के लिए बनाई जा रही रणनीति पर सवाल खड़े होते हैं.
यह स्पष्ट है कि बाढ़ प्रबंधन का मूल ढांचा पर्याप्त नहीं है और सरकारी विभागों द्वारा समय पर प्रतिक्रिया नहीं दी जाती जिससे समस्या और बढ़ जाती है.
पाकिस्तान में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने 28 जून को भारी बारिश का अलर्ट जारी किया था तब उसकी गंभीरता को नहीं समझा गया.
एनडीएमए ने अगस्त की शुरुआत में इन अलर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कार्रवाई की लेकिन प्राधिकरण की ओर से दी गई सहायता कुछ हजार लोगों के लिए थी जबकि आपदा से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या लाखों में थी. इसके बाद सेना को सहायता के लिए बुलाना पड़ा. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनियो गुतारेस ने अगस्त के अंत में 16 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता देने की अपील जारी की. कनाडा की संघीय सरकार ने भी मानवीय सहायता के लिए पचास लाख डॉलर जारी किए.
तात्कालिक तौर पर यह सहायता आवश्यक थी लेकिन पाकिस्तान की आगामी चुनौतियों के सामने यह बेहद कम है. भविष्य की आपदाओं से उबरने के लिए जिस तरह की तैयारी चाहिए, वह पाकिस्तान की विभिन्न एजेंसियों के बस की बात नहीं है.
जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली बाढ़ जनित समस्याओं से निपटने के लिए व्यवस्थित ढंग से पाकिस्तान की क्षमता में वृद्धि किये जाने की जरूरत है. इस सहायता में वित्तीय संसाधन, तकनीकी मदद और मानव क्षमता विकसित करने की आवश्यकता है.एनडीएमए और पाकिस्तान मौसम विज्ञान विभाग ने समय रहते चेतावनी जारी करने वाली प्रणाली विकसित करने में सफलता पाई है लेकिन सामुदायिक स्तर पर और काम करने की जरूरत है।
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