पाकिस्तान में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार के प्रदर्शनकारियों के साथ गतिरोध के कारण बने देश के मौजूदा राजनीतिक हालात पर देश की शक्तिशाली सेना ने आज गंभीर चिंता जताई।
सेना के आला अधिकारियों के कोर कमांडर सम्मेलन का आयोजन रावलपिंडी में सैन्य मुख्यालय में किया गया। बैठक की अध्यक्षता सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ ने की। सेना ने लोकतंत्र के लिए समर्थन जताया लेकिन कल रात हुई हिंसा को लेकर निराशा भी प्रकट की।
सेना ने कहा, 'लोकतंत्र के प्रति समर्थन जताते हुए बैठक में मौजूदा राजनीतिक हालात और इसके हिंसक रूप लेने की गंभीर चिंता के साथ समीक्षा की गई, जिसमें बड़ी संख्या में लोग घायल हुए और कुछ जानें चली गईं।' सेना ने आगाह किया कि आगे भी बलों का इस्तेमाल करने से समस्या केवल और बढ़ेगी।
वर्ष 1947 के बाद से आधे से ज्यादा समय तक पाकिस्तान पर शासन करने वाली सेना के अधिकारियों ने कहा कि बिना समय गंवाए हालात से राजनीतिक तरीके से निपटना चाहिए और हिंसक तरीके नहीं अपनाये जाने चाहिए।
इमरान खान और ताहिर उल कादरी की अगुवाई में प्रधानमंत्री शरीफ के खिलाफ चल रही मुहिम में तटस्थ बने रहने का प्रयास करते हुए सेना ने कहा कि वह देश की सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रतिबद्ध है और राष्ट्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने में कमी नहीं छोड़ेगी।
सोमवार की जगह आज हुई बैठक में राजनीतिक नेतृत्व को स्पष्ट संदेश दिया गया कि सेना लोकतंत्र और देश के साथ है, किसी व्यक्ति के साथ नहीं। सेना ने संकेत दिया है कि वह दो कट्टर विरोधियों के खिलाफ लड़ाई छेड़ रहे प्रधानमंत्री शरीफ के बचाव में दखल नहीं देगी।
इस बयान में प्रधानमंत्री द्वारा राजनीतिक संकट से निपटने के तरीके और खासतौर पर बल के इस्तेमाल का समर्थन नहीं किया गया है। दरअसल बयान में सावधानी पूर्वक ऐसी नीति की बात की गयी है जो हालात नियंत्रण से बाहर होने पर सेना के हस्तक्षेप का विकल्प खुला छोड़ती है।
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