पाकिस्तान की सेना और वहां की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (आईएसआई) एक खतरनाक रणनीति के तहत भारत तथा अपने ही प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर एक साथ निशाना साध रही हैं और अब अलकायदा के सरगना आयमन अल जवाहिरी के उस वीडियो टेप के सामने आने से हालात और अधिक जटिल हो गए हैं, जिसमें उसने भारत में आतंकी शाखाएं खोलने की घोषणा की है।
यह कहना है अमेरिका की खुफिया एजेंसी सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी (सीआईए) के पूर्व विश्लेषक ब्रुस रीडेल का, जो फिलहाल ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन में खुफिया परियोजना के निदेशक हैं। उन्होंने समाचार पत्र 'द डेली बीस्ट' में लिखे एक लेख में कहा है, 'इसमें कोई संदेह नहीं कि जवाहिरी ने पाकिस्तान में अपने गुप्त ठिकाने पर यह वीडियो बनाया और बहुत से भारतीयों को संदेह है कि आईएसआई उसे बचाने के लिए उसकी मदद कर रही है।'
रीडेल के मुताबिक, 'जवाहिरी के मुंबई में वर्ष 2008 में हमला करने वाले आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और इसके प्रमुख हाफिज सईद के साथ लंबे समय से संबंध हैं।'
रीडेल के अनुसार, अमेरिकी विदेश मंत्रालय भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ-ग्रहण से ठीक पहले अफगानिस्तान के हेरात में भारतीय दूतावास पर हुए हमले के लिए भी लश्कर को जिम्मेदार ठहरा चुका है। शपथ-ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए नवाज को भी न्यौता दिया गया था।
पूर्व खुफिया विश्लेषक के मुताबिक, लश्कर पाकिस्तानी सेना और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई के बहुत करीब है। उन्होंने अपने लेख में लिखा, 'लश्कर नेता हाफिज सईद पाकिस्तान में खुले तौर पर रहता है और अक्सर टेलीविजन पर खुलेआम अमेरिका की आलोचना करता है। वह आईएसआई को बहुत प्यारा है।'
उनके अनुसार, हेरात में भारतीय दूतावास पर किए गए हमले का एक उद्देश्य भारत की नजर में शरीफ की प्रतिष्ठा को धूमिल करना भी था, क्योंकि पाकिस्तान की सेना अपने पूर्व प्रमुख परवेज मुशर्रफ के खिलाफ मुकदमा चलाने के उनके फैसले से खफा है।
रीडेल के अनुसार, कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर भी हिंसा बढ़ी है। हालांकि नवाज भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता और दोनों देशों के बीच हथियारों की प्रतिस्पर्धा को कम करना चाहते हैं, लेकिन सेना की स्थिति इस मामले में उलट है।
रीडेल ने लिखा, 'संक्षेप में, पाकिस्तान की सेना और इसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई एक बार फिर भारत के साथ आग से खेल रही है। अमेरिका को भारत के साथ खुफिया सहयोग बढ़ाना चाहिए, ताकि मुंबई और हेरात जैसे हमले रोके जा सकें।'
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