गांधीवादी परंपरा के कैलाश सत्यार्थी 'बचपन बचाओ' अभियान से जुड़े रहे है और अभी तक करीब 80 हजार बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त करवा चुके हैं। सत्यार्थी लंबे समय से बच्चों को बाल मजदूरी से हटाकर उन्हें शिक्षा अभियान से जोड़ने की मुहिम चलाते रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए चुने जाने पर बधाई दी।
दूसरी ओर, पाकिस्तान के स्वात घाटी की मलाला ने सिर्फ 14 साल की उम्र से ही लड़कियों की शिक्षा के पक्ष में आवाज उठाई थी, क्योंकि तब स्वात पर तालिबान के कब्जे के बाद सारे स्कूल बंद कर दिए गए थे। इतना ही नहीं मलाला को आवाज उठाने की कीमत अदा करनी पड़ी और स्कूल से लौटते समय आतंकियों ने उन पर हमला कर दिया। आतंकियों ने मलाला के सिर में गोली मार दी, जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए लंदन लाया गया और अब वह लड़कियों की शिक्षा को लेकर पूरे दुनिया का चेहरा बन चुकी हैं।
इस बार के शांति पुरस्कारों को लेकर नोबेल कमेटी ने खासतौर से यह बात कही है कि एक हिन्दू और एक मुस्लिम, एक हिन्दुस्तानी और एक पाकिस्तानी दोनों ही बच्चों की पढ़ाई और उनके हक के लिए कट्टरपंथ से संघर्ष कर रहे हैं। कैलाश सत्यार्थी ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि यह दुनिया भर के बच्चों का सम्मान है...आखिरकार करोड़ों बच्चों की आवाजें सुन ली गईं। कैलाश सत्यार्थी ने कहा, मैं इस आधुनिक युग में पीड़ा से गुजर रहे लाखों बच्चों की दुर्दशा पर काम को मान्यता देने के लिए नोबेल समिति का शुक्रगुजार हूं।
वर्ष 1954 में 11 जनवरी को जन्मे कैलाश सत्यार्थी बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता हैं। वह '90 के दशक से ही भारत में बालश्रम के खिलाफ आंदोलनरत हैं। उनके संगठन 'बचपन बचाओ आंदोलन' ने अब तक 80,000 से ज़्यादा बालश्रमिकों को मुक्त कराया है।
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