पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ के खिलाफ अदालत में एक ताजा याचिका दायर की गई हे जिसमें ईशनिंदा कानून के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है जबकि मुशर्रफ ने इनकार किया है कि उन्होंने 2007 में लाल मस्जिद कार्रवाई का कोई आदेश दिया था।
तीन सदस्यों वाली एक संयुक्त जांच टीम (जेआईटी) ने सोमवार को चक शहजाद फार्महाउस में 70 वर्षीय मुशर्रफ से पूछताछ की। तीन सदस्यों में से दो ने पहले जेआईटी में शामिल होने से इनकार किया था।
पूर्व सैन्य शासक से दोहरी हत्या मामले में पूछताछ की गई जिसे 2007 में मस्जिद में सैन्य अभियान में मारे गए लाल मस्जिद के उप प्रमुख अब्दुल रशीद गाजी के बेटे हारून रशीद की शिकायत पर आबपारा पुलिस ने पंजीकृत की थी।
हारून ने आरोप लगाया कि मुशर्रफ ने सैन्य अभियान का आदेश जारी किया था जिसमें उसके पिता और दादी सबीहा खातून मारे गए।
दैनिक डॉन ने सूत्रों के हवाले से बताया कि पूर्व राष्ट्रपति ने जांच टीम से कहा कि अभियान का आदेश उस वक्त की निर्वाचित सरकार ने दिया था और उससे उनका कोई लेना-देना नहीं है।
सूत्रों के अनुसार मुशर्रफ ने कहा, ‘मुझे गलत तौर पर फंसाया गया है। मैंने अभियान के संबंध में कोई लिखित आदेश जारी नहीं किए।’ उन्होंने कहा कि तत्कालीन राजधानी प्रशासन ने मदद के लिए सेना तलब की थी जिसके बाद अभियान चला। उन्होंने प्राथमिकी में अपने खिलाफ दर्ज अन्य आरोपों से भी इनकार किया।
अभियान के दौरान एक सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे। मृतकों में 10 सैन्यकर्मी और एक रेजेंर्स भी शामिल थे।
इस बीच, एक पाकिस्तानी वकील ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर लाल मस्जिद अभियान के दौरान धार्मिक किताबों के कथित अपमान के संबंध में विवादस्पद ईशनिंदा कानून के तहत पूर्व राष्ट्रपति के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
नवगठित शुहदा फाउंडेशन ऑफ पाकिस्तान के वकील तारिक असद ने दलील दी है कि मुशर्रफ अभियान छेड़ने के लिए जिम्मेदार हैं और इस अभियान के दौरान ‘ना सिर्फ बड़ी तादाद में आम नागरिक मारे गए बल्कि मुकद्दस कुरान, मजहबी किताबें और शोध सामग्रियां भी बरबाद हुईं।'
वरिष्ठ अधिवक्ता अहमद रजा कसूरी ने डान को बताया कि लाल मस्जिद अभियान एक सरकारी कार्रवाई थी और इसे किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
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