
- लश्कर-ए-तैयबा खैबर पख्तूनख्वां के लोअर दिर में एक विशाल आतंकवाद ट्रेनिंग सेंटर का निर्माण कर रहा है.
- यह ट्रेनिंग सेंटर अफगानिस्तान बॉर्डर से लगभग सैंतालीस किलोमीटर दूर मरकज जिहाद-ए-अक्सा नाम से विकसित हो रहा है.
- सेंटर की जिम्मेदारी आतंकवादी नस्र जावेद को दी गई है जो हैदराबाद ब्लास्ट का मास्टरमाइंड था.
पाकिस्तान किस तरह से सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा देने में लगा है, इससे जुड़े सबूत सामने आए हैं. ये सबूत ऐसे हैं जो किसी के भी होश उड़ा सकते हैं. ऑपरेशन सिंदूर से डर कर आतंकवादी तंजीमें में अपने ठिकाने बदल रही हैं. जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिद्दीन के बाद अब लश्कर ए तैयबा भी अपना प्रशिक्षण केंद्र खैबर-पख्तूनख्वा में शिफ्ट कर रहा है. इस कदम का उद्देश्य भारतीय हमलों से बचाव और निगरानी से बचना है.
अफगान बॉर्डर से 47 किलोमीटर दूर
लश्कर ने अपना नया ठिकाना खैबर पख्तूनख्वाह के लोअर दिर जिले के कुंबन मैदान इलाके को बनाया है. यहां लश्कर मरकज जिहाद-ए-अक्सा नाम से नया प्रशिक्षण एवं आवासीय केंद्र बना रहा है. यह जगह अफगानिस्तान सीमा से लगभग 47 किमी दूर है. सूत्रों के मुताबिक यह निर्माण कार्य जुलाई 2025 में शुरू हुआ और 22 सितंबर तक इसकी पहली मंजिल का ढांचा बनकर तैयार हो गया. यह केंद्र लश्कर की हाल ही में बनी ‘जामिया अहले सुन्नत' मस्जिद के करीब खाली पड़ी लगभग 4,643 वर्ग फुट जमीन पर बनाया गया है. साफ है कि लश्कर धार्मिक संस्थानों की आड़ में आतंकी ठिकानों का निर्माण कर रहा है.
किसको सौंपी कमान
नए केंद्र का नेतृत्व नस्र जावेद को सौंपा गया है, जो 2006 हैदराबाद बम धमाके का एक मास्टरमाइंड है.। नस्र जावेद 2004–2015 के बीच PoK में लश्कर का दुलाई कैंप चला चुका है. फिलहाल यह लश्कर की धन-उगाही करने वाली शाखा ‘खिदमत-ए-खल्क' का कामकाज संभाल रहा है. इसी को पहले फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन कहा जाता था जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने बैन कर दिया था.

साथ ही जिहाद की सैद्धांतिक शिक्षा की जिम्मेदारी मुहम्मद यासीन (उर्फ बिलाल भाई) को दी गई है. जबकि हथियार प्रशिक्षण का प्रभारी अनास उल्लाह खान को बनाया गया है. इस शिविर का स्थान जानबूझकर ‘मरकज जामिया अहले सुन्नत' के पास चुना गया है ताकि आतंकवादियों की भर्ती, रसद और धार्मिक गतिविधियों की आड़ में आतंकी गतिविधियां चलाई जा सकें.
लश्कर की फिदायीन इकाई
सूत्रों के अनुसार, मरकज़ जिहाद-ए-अक्सा में दो प्रमुख प्रशिक्षण पाठ्यक्रम — ‘दौरा-ए-खास' और ‘दौरा-ए-लश्कर' — संचालित किए जाएंगे. यह केंद्र लश्कर की ‘जान-ए-फ़िदाई' फ़िदायीन इकाई का स्थान लेगा. इससे पहले यह इकाई भीम्बर-बरनाला के ‘मरकज अहले हदीस' से संचालित होती थी जिसे 7 मई को भारतीय सेना ने नष्ट कर दिया था. हालांकि सेना से जुड़े सूत्रों ने कहा कि ज़रूरत पड़ने पर इतनी दूर भी निशाना साधा जा सकता है.

आतंकी समन्वय पर निगाहें
ग़ौरतलब है कि हाल ही में जैश ए मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिदीन ने भी अपने ठिकाने खैबर पख़्तूनख्वाह में शिफ्ट किए थे. लश्कर का नया ठिकाना भी इसी इलाके में होगा जिससे यह जाहिर होता है कि इसके पीछे आतंकवादी संगठनों की योजना बेहतर आपसी समन्वय रखने की है. इस पूरी मुहिम में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की प्लानिंग साफतौर पर दिखाई देती है. लश्कर ‘मरकज जिहाद-ए-अक्सा' के अलावा ‘मरकज-ए-खैबर गढ़ी हबीबुल्लाह' और बटरासी स्थित शिविरों का विस्तार भी कर रहा है. इसका मकसद पीओके और पाकिस्तान के पंजाब में नष्ट किए गए पुराने ठिकानों के बाद आतंकियों की भर्ती और प्रशिक्षण आदि का धंधा फिर से शुरू किया जा सके. मरकज जिहाद-ए-अक्सा के दिसंबर तक पूरा होने की संभावना है. आतंक का यह ठिकाना बड़ा खतरा पैदा कर सकता है. लश्कर ने नए सिरे से आतंकवादियों की भर्ती की तैयारियां शुरू कर दी हैं.
भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा
माना जा रहा है है कि अब लश्कर यहां से भारत -विरोधी आतंकी अभियानों को पाकिस्तान की आईएसआई के साथ मिलकर चलाने वाला है. आतंकी नेटवर्क को पूरी तरह से खत्म करने के नाम पर पाकिस्तानी सेना ने लोअर दीर से टीटीपी जैसे प्रतिद्वंद्वी संगठनों का सफाया कर दिया है. इससे लश्कर-ए-तैयबा के बढ़ने का रास्ता खुल गया है. पाकिस्तान एंटी-टेरर कैंप की आड़ में दुनियाभर से मदद चाहता है. साथ ही वह भारत के खिलाफ अपने प्रॉक्सी वॉर के लिए आतंकवादियों को बढ़ावा दे रहा है और यह क्षेत्रीय शांति के लिए एक गंभीर खतरा है.
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