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This Article is From May 19, 2017

कुलभूषण जाधव मामला: जानिए, इंटरनेशनल कोर्ट के जजों के पैनल में शामिल भारतीय जज ने फैसले में क्‍या कहा

न्यायाधीश भंडारी ने कहा, 'मामला पाकिस्तान में अदालत की सुनवाई के लंबित रहने के दौरान वाणिज्य दूतावास पहुंच से वंचित किए जाने के जरिए बुनियादी मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित सवालों को जन्म देता है.

कुलभूषण जाधव मामला: जानिए, इंटरनेशनल कोर्ट के जजों के पैनल में शामिल भारतीय जज ने फैसले में क्‍या कहा
अंतरराष्ट्रीय अदालत ने गुरुवार को कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगा दी थी. (फाइल फोटो)
हेग: पाकिस्तान ने भारत को कुलभूषण जाधव तक वाणिज्य दूतावास पहुंच नहीं मुहैया कराकर उनके बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन किया. यह बात इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) की पीठ में शामिल भारतीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति दलबीर भंडारी ने मामले पर अपनी राय में कही.

यह घोषणा अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के सर्वसम्मति से किए गए फैसले के साथ जारी की गई थी. अंतरराष्ट्रीय अदालत ने गुरुवार को जाधव की फांसी पर रोक लगा दी थी. जाधव को जासूसी के आरोप में पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी.

न्यायाधीश भंडारी ने कहा, 'मामला पाकिस्तान में अदालत की सुनवाई के लंबित रहने के दौरान वाणिज्य दूतावास पहुंच से वंचित किए जाने के जरिए बुनियादी मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित सवालों को जन्म देता है. यह सुनवाई जाधव को मौत की सजा सुनाने में परिणत हुई'. भंडारी अप्रैल 2012 से आईसीजे के सदस्य हैं.

उन्होंने कार्यवाही शुरू करने के लिए भारत के आवेदन के साथ-साथ अस्थायी कदमों के लिए भारत के अनुरोध को रेखांकित किया.

उन्होंने अस्थायी कदमों के संकेत के लिए चार जरूरतें बताईं-प्रथम दृष्टया क्षेत्राधिकार हो, युक्तिसंगति, अपूर्णीय हानि का असली और आसन्न जोखिम और गुण-दोष के आधार किए गए अधिकारों के दावे के बीच संबंध और अस्थायी कदमों का अनुरोध हो.

न्यायमूर्ति भंडारी ने वाणिज्य दूतावास पहुंच पर 2008 के भारत-पाकिस्तान समझौते की भूमिका का उल्लेख किया.

उन्होंने अदालत से सहमति जताई कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो पहली नजर में संकेत देता है कि 2008 में समझौता करके पक्षकारों ने राजनयिक संबंधों से संबंधित वियना संधि के तहत पारस्परिक दायित्वों को सीमित किया या निरस्त किया.

उन्होंने कहा, 'बल्कि, 2008 का समझौता राजनयिक सहायता से संबंधित पक्षकारों के पारस्परिक दायित्वों को बढ़ाता है और उसकी पुष्टि करता है. वियना संधि उसके लिए एक ढांचा है.. इसलिए 2008 का समझौता अदालत के अधिकार क्षेत्र को मौजूदा मामले में खत्म नहीं करता'.

(इनपुट भाषा से)

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