नई दिल्ली:
वर्ष 2015 के चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है, और इसे संयुक्त रूप से तीन लोगों को दिया गया है, जिनमें आधे की हकदार चीन की तू यूयू हैं, जिन्होंने मलेरिया के खिलाफ एक नए उपचार की खोज की, जबकि शेष आधा पुरस्कार कीड़े-मकोड़ों द्वारा पैदा होने वाले संक्रमणों के खिलाफ नया उपचार खोजने वाले विलियम सी. कैम्पबेल तथा सतोषी ओमुरा को दिया गया है। इस पुरस्कार की घोषणा स्टॉकहोम में चिकित्सा पर नोबेल कमेटी की सचिव अरबन लेन्डाल ने की।
मलेरिया की दवा के लिए तू यूयू को अवार्ड
30 दिसंबर, 1930 को जन्मी चीनी चिकित्सा विज्ञानी तथा शिक्षक तू यूयू (Tu Youyou) को सबसे ज़्यादा मलेरिया के खिलाफ कारगर दवा आर्टेमिसाइनिन (artemisinin) तथा डाईहाइड्रोआर्टेमिसाइनिन (dihydroartemisinin) की खोज के लिए जाना जाता है, और इसी के लिए उन्हें वर्ष 2015 का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize in Physiology or Medicine) भी दिया गया है। दक्षिण एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका के विकासशील देशों के लोगों के स्वास्थ्य सुधार की दिशा में इस दवा को 20वीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में शुमार किया जाता है। अपने कार्यों के लिए तू को वर्ष 2011 का लैस्कर पुरस्कार (Lasker Award) भी दिया गया था।
परजीवी से संक्रमण की उपचार पर जापानी बायोकैमिस्ट सतोषी ओमुरा को भी अवार्ड
वर्ष 2015 का नोबेल पुरस्कार पाने वाले दूसरे हैं जापानी बायोकैमिस्ट सतोषी ओमुरा (Satoshi Ōmura), जिनका जन्म 12 जुलाई, 1935 को हुआ था, और उन्हें दवाओं के क्षेत्र में कई माइक्रोऑर्गेनिज़्म विकसित करने के लिए जाना जाता है। इस वर्ष का नोबेल पुरस्कार उन्हें आयरिश बायोकैमिस्ट विलियम सी. कैम्पबेल के साथ संयुक्त रूप से दिया गया है और यह परजीवी (roundworm parasites) से होने वाले संक्रमणों के खिलाफ नई उपचार पद्धति विकसित करने के लिए मिला है।
बायोकैमिस्ट हैं विलियम सी. कैम्पबेल
वर्ष 2015 का चिकित्सा का नोबेल पाने वाले तीसरे हैं आयरिश बायोकैमिस्ट विलियम सी. कैम्पबेल, जिनका जन्म वर्ष 1930 में हुआ, और वह इस वक्त ड्रू यूनिवर्सिटी में सेवानिवृत्त रिसर्च फेलो हैं। विलियम सी. कैम्पबेल ने ग्रेजुएशन डबलिन (आयरलैंड) के ट्रिनिटी कॉलेज से किया था, और पीएचडी यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन से। वर्ष 1957 से 1990 तक वह मर्क इंस्टीट्यूट ऑफ थैराप्यूटिक रिसर्च से जुड़े रहे।
मलेरिया की दवा के लिए तू यूयू को अवार्ड
30 दिसंबर, 1930 को जन्मी चीनी चिकित्सा विज्ञानी तथा शिक्षक तू यूयू (Tu Youyou) को सबसे ज़्यादा मलेरिया के खिलाफ कारगर दवा आर्टेमिसाइनिन (artemisinin) तथा डाईहाइड्रोआर्टेमिसाइनिन (dihydroartemisinin) की खोज के लिए जाना जाता है, और इसी के लिए उन्हें वर्ष 2015 का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize in Physiology or Medicine) भी दिया गया है। दक्षिण एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका के विकासशील देशों के लोगों के स्वास्थ्य सुधार की दिशा में इस दवा को 20वीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में शुमार किया जाता है। अपने कार्यों के लिए तू को वर्ष 2011 का लैस्कर पुरस्कार (Lasker Award) भी दिया गया था।
परजीवी से संक्रमण की उपचार पर जापानी बायोकैमिस्ट सतोषी ओमुरा को भी अवार्ड
वर्ष 2015 का नोबेल पुरस्कार पाने वाले दूसरे हैं जापानी बायोकैमिस्ट सतोषी ओमुरा (Satoshi Ōmura), जिनका जन्म 12 जुलाई, 1935 को हुआ था, और उन्हें दवाओं के क्षेत्र में कई माइक्रोऑर्गेनिज़्म विकसित करने के लिए जाना जाता है। इस वर्ष का नोबेल पुरस्कार उन्हें आयरिश बायोकैमिस्ट विलियम सी. कैम्पबेल के साथ संयुक्त रूप से दिया गया है और यह परजीवी (roundworm parasites) से होने वाले संक्रमणों के खिलाफ नई उपचार पद्धति विकसित करने के लिए मिला है।
बायोकैमिस्ट हैं विलियम सी. कैम्पबेल
वर्ष 2015 का चिकित्सा का नोबेल पाने वाले तीसरे हैं आयरिश बायोकैमिस्ट विलियम सी. कैम्पबेल, जिनका जन्म वर्ष 1930 में हुआ, और वह इस वक्त ड्रू यूनिवर्सिटी में सेवानिवृत्त रिसर्च फेलो हैं। विलियम सी. कैम्पबेल ने ग्रेजुएशन डबलिन (आयरलैंड) के ट्रिनिटी कॉलेज से किया था, और पीएचडी यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन से। वर्ष 1957 से 1990 तक वह मर्क इंस्टीट्यूट ऑफ थैराप्यूटिक रिसर्च से जुड़े रहे।
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