आईएसआईएस के कब्ज़े वाले इराक़ी शहर मोसुल के बाशिन्दों को बाहर जाने के लिए बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ रही है। इस्लामिक स्टेट बाहर जाने वालों से उनका मकान या कार ज़मानत के तौर पर जमा करने का कानून बना दिया है। शर्त यह भी है कि कार 20 हज़ार अमेरिकी डॉलर या उससे ज़्यादा क़ीमत की हो। यह हर किसी पर लागू है। कोई दिन प्रतिदिन की लड़ाई और ख़ौफ की वजह से मौसुल छोड़ना चाहता है, उसके लिए भी और जो इलाज या किसी और काम से इराक की सरकार के प्रभाव वाले किसी दूसरे शहर जाना चाहता है तब भी।
दरअसल इन आतंकवादियों को इस बात का डर है कि कहीं मोसुल जो कि इराक़ का दूसरा सबसे बड़ा शहर है, से आम शहरी बिल्कुल ही न ख़त्म हो जाएं। फिर वह किस पर हुकुम चलाएंगे।
बड़ी तादाद में शहरी आईएस के कब्ज़े के पहले ही शहर छोड़ कर भाग गए। अब जो आबादी बची है वह भी कहीं सुकून की ज़िंदगी चाहती है। कुछ लोग काम के बहाने मोसुल से गए तो फिर लौट कर नहीं आए। इसलिए आईएस उनके घर के कागज़ात या गाड़ी जमा कराया जा रहा है। अगर कोई 10 दिन के लिए बाहर गया और 10 दिन में नहीं लौटा तो उसका घर या उसकी गाड़ी आईएस की हो जाएगी। ऐसा कर आईएस अफ़ग़ानिस्तान और चेचेन्या से आए आतंवादियों को रहने के लिए दे देता है। गाड़ी भी अमूमन आईएस के आतंकवादी ही इस्तेमाल करते हैं।
एक ऐसा भी मामला सामने आया है, जिसमें एक शख्स ऑपरेशन के लिए बग़दाद गया। वहां डाक्टर ने उसके ऑपरेशन की तारीख आगे बढ़ा दी। फिर उस आदमी को अपने परिजन को सिर्फ इसलिए मोसुल भेजना पड़ा, ताकि वह आईएस से वापस लौटने की मोहलत 2-3 हफ्तें आगे बढ़ा सके। वरना वक्त पर नहीं लौटने पर उसका पुश्तैनी घर छिन जाता।
जिन सेवानिवृत लोगों को पेंशन लेने या इस तरह के दूसरे काम से इराक़ के दूसरे शहर जाना होता है, आईएसआईएस उन सब पर भी यही शर्त रखता है। पूर्व सैनिकों और पुलिसवाले तो मोसुल से बाहर निकल ही नहीं सकते। उन पर शहर छोड़ने पर पूरी तरह पाबंदी है। आईएस को डर है कि कहीं ये इराक़ी सेना के साथ मिल आईएस के ख़िलाफ लड़ाई में न शामिल हो जाएं।
इस तरह की स्थिति का फ़ायदा उठा कर वहां कुछ ऐसे लोग भी सक्रिय हो गए हैं, जो आईएस के कब्ज़े वाले इलाक़े से बाहर निकालने के लिए मोटी रकम वसूल रहे हैं। कुछ टैक्सी वालों ने भी मोसुल से चोरी छिपे बाहर निकालने का धंधा ही शुरू कर दिया है। इसके लिए वह हज़ारों डॉलर वसूल रहे हैं। हां इस रास्ते निकलने में मोसुलवासी को घर या कार की मिल्कियत जाने का ख़तरा नहीं लगता है। शांति लौटने पर वह अपने घर लौट सकते हैं।
दरअसल लोग अपने ही शहर में क़ैद महसूस कर रहे हैं। इस्लामिक स्टेट के इस्लामी कानून की व्याख्या इतनी कठोर है कि लोगों को डर रहता है, पता नहीं कब उसे इस्लामी कानून न मानने का दोषी करार दे दिया जाए और फिर कड़ी सज़ा से गुज़रना पड़े। जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है।
इराक़ी सेना और शिया मिलिशिया के तिरकित शहर में घुसने की ख़बर मोसुलवासियों के लिए उम्मीद की किरण लेकर आई है। ये बुधवार को हुआ है, हालांकि पूरा शहर हासिल करने में अभी भी बहुत चुनौती है और इसमें कुछ और दिन लग सकते हैं। मोसुल के बाशिंदों को लगता है कि एक दिन उनका शहर भी आईएस के कब्ज़े से छूटेगा और वे आज़ाद हवा में सांस ले सकेगें।
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