इमरान खान (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
एक कहावत है कि जात भी गंवाया और स्वाद भी न पाया. क्या पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने जा रहे इमरान खान पर ये कहावत फिट बैठती है. ये इसलिए क्योंकि इमरान खान पर नवाज़ शरीफ़ समेत तमाम विरोधी पार्टियों के आरोप हैं कि उन्हें सेना का समर्थन हासिल रहा है. सेना उनके लिए पर्दे के पीछे से काम करती रही है. सेना ने उनके लिए चुनाव में जमकर धांधली कराई है. सेना ने ही उन्हें सत्ता तक पहुंचाया है. तो इन आरोपों के मुताबिक़ जब सेना ने इतना कुछ किया फिर इमरान की पार्टी को अपने बूते बहुमत क्यों नहीं मिला. क्यों वह 137 सीट के जादुई आंकड़े से 21 दूर रह गई. जो 116 सीटें मिली हैं उनमें भी 5 ख़ुद इमरान खान ने जीती हैं. यानी उनमें से चार पर उप चुनाव होंगे. इसमें एकाध सीट और कम हो जाने का भी ख़तरा हो सकता है.
इमरान खान अब निर्दलीय सांसदों के साथ साथ पाकिस्तान मुस्लिम लीग (काफ़ लीग) और ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस और जैसी छोटी पार्टियों के समर्थन पर निर्भर हैं. इन सब को मिला कर इमरान ज़रूरी 21 सांसद आसानी से जुटा लेंगे. एमक्यूएम के भी साथ आने की पूरी संभावना है. तो इस तरह इमरान खान एक गठबंधन सरकार की कप्तानी कर रहे होंगे. यानी वे अपनी मनमरजी से नहीं चल पाएंगे. हर ज़रूरी और बड़े फैसेल के लिए उनको समर्थन देने वाली पार्टियों या साथ आए निर्दलियों का साथ लेना होगा. खेल यहीं है.
जब Imran Khan को टीम से हटाकर Nawaz Sharif ने खुद की क्रिकेट में कप्तानी, सभी रह गए थे हैरान
जैसा कि सेना बेशक इमरान के पीछे खड़ी हो लेकिन वह इमरान को इतना भी मज़बूत नहीं देखना चाहती है कि कप्तानी मिल जाने के बाद हर फैसला इमरान अपने बूते लेने लगें. इसमें टीम मैनेजर और कोच की भी भूमिका हो. गठबंधन की मजबूरी में दरअसल सेना की रणनीति छिपी है. कल को इमरान सेना के ब्रीफ से बाहर जाते दिखेंगे तो सेना को सीधे हस्तक्षेप नहीं करना पड़ेगा. बल्कि हो सकता है कि गठबंधन का कोई धड़ा नाराज़ हो जाए. समर्थन वापसी की धमकी देने लगे. और इमरान को कोई ख़ास फैसला लेने से रोक दिया जाए. या उनको अपने क़दम पीछे खींचने को मजबूर कर दिया जाए. ऐसे में सेना की बदनामी भी नहीं होगी और लोकतांत्रिक मूल्यों के नाम पर काम भी हो जाएगा.
VIDEO: सत्ता की पिच पर इमरान की मुश्किलें
एक क़ाबिल रणनीतिकार किसी भी हालत में हालात को अपने हाथ से निकलने नहीं देना चाहता है. चाहे वो व्यक्ति हो या संस्था. इसलिए वह अपनी रणनीति में तमाम चेक एंड बैलेंस रखता है. मरियम नवाज़ ने तो यहां तक बयान दे दिया था कि इमरान सेना के हाथ की कठपुतली हैं. नवाज़ शरीफ कहते रहे हैं कि उनकी डोरें खींचने वाले और हैं. मतलब कि कठपुतली खींची गई डोर के हिसाब से हरक़त करती है. इमरान की आधी अधूरी जीत के यही मतलब निकाले जा रहे हैं. यानी बल्ला चले तो लेकिन मैच फिक्स करने वाले के हिसाब से.
इमरान खान अब निर्दलीय सांसदों के साथ साथ पाकिस्तान मुस्लिम लीग (काफ़ लीग) और ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस और जैसी छोटी पार्टियों के समर्थन पर निर्भर हैं. इन सब को मिला कर इमरान ज़रूरी 21 सांसद आसानी से जुटा लेंगे. एमक्यूएम के भी साथ आने की पूरी संभावना है. तो इस तरह इमरान खान एक गठबंधन सरकार की कप्तानी कर रहे होंगे. यानी वे अपनी मनमरजी से नहीं चल पाएंगे. हर ज़रूरी और बड़े फैसेल के लिए उनको समर्थन देने वाली पार्टियों या साथ आए निर्दलियों का साथ लेना होगा. खेल यहीं है.
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जैसा कि सेना बेशक इमरान के पीछे खड़ी हो लेकिन वह इमरान को इतना भी मज़बूत नहीं देखना चाहती है कि कप्तानी मिल जाने के बाद हर फैसला इमरान अपने बूते लेने लगें. इसमें टीम मैनेजर और कोच की भी भूमिका हो. गठबंधन की मजबूरी में दरअसल सेना की रणनीति छिपी है. कल को इमरान सेना के ब्रीफ से बाहर जाते दिखेंगे तो सेना को सीधे हस्तक्षेप नहीं करना पड़ेगा. बल्कि हो सकता है कि गठबंधन का कोई धड़ा नाराज़ हो जाए. समर्थन वापसी की धमकी देने लगे. और इमरान को कोई ख़ास फैसला लेने से रोक दिया जाए. या उनको अपने क़दम पीछे खींचने को मजबूर कर दिया जाए. ऐसे में सेना की बदनामी भी नहीं होगी और लोकतांत्रिक मूल्यों के नाम पर काम भी हो जाएगा.
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एक क़ाबिल रणनीतिकार किसी भी हालत में हालात को अपने हाथ से निकलने नहीं देना चाहता है. चाहे वो व्यक्ति हो या संस्था. इसलिए वह अपनी रणनीति में तमाम चेक एंड बैलेंस रखता है. मरियम नवाज़ ने तो यहां तक बयान दे दिया था कि इमरान सेना के हाथ की कठपुतली हैं. नवाज़ शरीफ कहते रहे हैं कि उनकी डोरें खींचने वाले और हैं. मतलब कि कठपुतली खींची गई डोर के हिसाब से हरक़त करती है. इमरान की आधी अधूरी जीत के यही मतलब निकाले जा रहे हैं. यानी बल्ला चले तो लेकिन मैच फिक्स करने वाले के हिसाब से.
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