
नई दिल्ली:
भारत और चीन ने सोमवार को अपने सम्बंधों का एक नया इतिहास लिखा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री ली केकियांग ने हाल के सीमा विवाद पर खुलकर चर्चा की और उस विवाद के जल्द समाधान के लिए कदम उठाने का निर्णय लिया, जिसके कारण 1962 में युद्ध हुआ था।
ली और मनमोहन इस बात पर भी सहमत हुए कि दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाले दोनों देशों और अर्थव्यवस्थाओं के बीच कुछ मतभेदों के बावजूद ढेर सारी समानताएं हैं।
इस बीच चीन में भारत के राजदूत एस. जयशंकर ने स्वीकार किया कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद एक जटिल मुद्दा है, और इसका व्यापक निरीक्षण-परीक्षण किए जाने की जरूरत है। लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई विवरण नहीं दिए।
ली रविवार शाम को यहां पहुंचे और मनमोहन सिंह के साथ दो चक्र बातचीत की। पहली बातचीत रविवार को एक निजी रात्रि भोज पर और दूसरी सोमवार को औपचारिक तौर पर। मनमोहन सिंह की राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मार्च में डरबन में हुई मुलाकात के बाद किसी चीनी नेता से पहली मुलाकात हुई है।
उल्लेखनीय है कि चीनी सैनिक 15 अप्रैल को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पार भारतीय क्षेत्र में 19 किलोमीटर घुस आए थे और वहां उन्होंने अपने शिविर लगा रखे थे। इस घटना के सामने आने के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था।
यह विवाद पांच मई को तब समाप्त हुआ, जब सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर कई दौर की चली बातचीत के बाद दोनों पक्ष 15 अप्रैल से पहले की स्थिति बहाल करने पर सहमत हो गए। उम्मीद के अनुरूप यह मुद्दा दोनों नेताओं के बीच बातचीत के दौरान उठा।
मनमोहन ने ली के साथ संवाददाताओं से कहा कि उनके बीच आपसी चिंता के विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत व स्पष्ट चर्चा हुई।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ली के साथ बातचीत में उन्होंने हाल ही में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय क्षेत्र में चीनी सेना की घुसपैठ का मुद्दा भी उठाया।
ली ने भी सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि भारत और चीन रणनीतिक साझेदार और अच्छे मित्र हैं। सीमा विवाद और नदी जल विवाद पर बतचीत पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देश साफगोई के साथ आपस में बात कर सकते हैं।
मनमोहन ने कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पर बातचीत के लिए जल्द ही विशेष प्रतिनिधियों की बैठक होगी। उन्होंने कहा, "हमने सीमा विवाद के निष्पक्ष, तार्किक एवं दोनों पक्षों के लिए स्वीकार्य समाधान निकालने के लिए विशेष प्रतिनिधियों की जल्द ही बैठक बुलाने पर सहमति जताई है।"
मनमोहन ने कहा कि भारत और चीन के बीच हालांकि मतभेद रहे हैं, लेकिन पिछले 25 वर्षो में दोनों देशों के संबंध नए सिरे से परिभाषित हुए हैं।
मनमोहन ने कहा कि दोनों नेताओं ने भारत-चीन सीमा के पश्चिमी सेक्टर में घटी हाल की घटना से सीखे सबक का जायजा लिया, और यह कि मौजूदा सीमा तंत्र अपने आप में कारगर साबित हुआ।
ली ने कहा कि चीन और भारत ने सीमावर्ती इलाकों में शांति एवं सौहाद्र्र बनाए रखने के लिए काम किया है। उन्होंने कहा कि हमें सीमा तंत्र में सुधार करने और उसे और प्रभावी बनाने तथा अपने मतभेदों को सुलझाने की जरूरत है।
मनमोहन सिंह ने भारत के व्यापार घाटे का मुद्दा भी उठाया। साथ ही तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने के बीजिंग के निर्णय पर भारतीय चिंता से भी ली को अवगत कराया। यह नदी तिब्बत से अरुणाचल प्रदेश और असम की ओर बहती है।
मनमोहन ने कहा कि उन्होंने चीन के प्रधानमंत्री के साथ व्यापार घाटे को पाटने पर भी चर्चा की। साथ ही भारतीय निवेशकों एवं निर्यातकों के लिए चीनी बाजार में पहुंच बढ़ाने की भी मांग की। साथ ही भारत की आधारभूत संरचना एवं विनिर्माण के क्षेत्र में चीनी भागीदारी बढ़ाने के लिए भी आमंत्रित किया।
भारत, चीन का व्यापार 2012 में 66 अरब डॉलर पहुंच गया। जबकि 2000 में यह मात्र तीन अरब डॉलर था। लेकिन व्यापार का पलड़ा चीन के पक्ष में झुका हुआ है। वर्ष 2012 में व्यापार घाटा 29 अरब डॉलर हो गया।
ली ने कहा, "हमारे बीच मित्रवत, गम्भीर और स्पष्टता के साथ बातचीत हुई। इन चर्चाओं का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह है कि दोनों देशों के नेता रणनीतिक सहमति पर पहुंचे हैं और हमारे बीच रणनीतिक विश्वास बढ़ा है।"
दोनों नेताओं ने भारत के पूर्वोत्तर को बांग्लादेश, म्यांमार, चीन और दक्षिण एशिया के अन्य देशों से जोड़ने के तरीकों पर चर्चा की।
मनमोहन ने कहा कि वह यथासम्भव जल्द से जल्द चीन का दौरा करने की आशा रखते हैं।
एक विशाल प्रतिनिधिमंडल के साथ आए ली अब यहां से मुम्बई जाएंगे और वहां से पाकिस्तान, स्विटजरलैंड और जर्मनी की यात्रा पर निकल जाएंगे।
ली और मनमोहन इस बात पर भी सहमत हुए कि दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाले दोनों देशों और अर्थव्यवस्थाओं के बीच कुछ मतभेदों के बावजूद ढेर सारी समानताएं हैं।
इस बीच चीन में भारत के राजदूत एस. जयशंकर ने स्वीकार किया कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद एक जटिल मुद्दा है, और इसका व्यापक निरीक्षण-परीक्षण किए जाने की जरूरत है। लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई विवरण नहीं दिए।
ली रविवार शाम को यहां पहुंचे और मनमोहन सिंह के साथ दो चक्र बातचीत की। पहली बातचीत रविवार को एक निजी रात्रि भोज पर और दूसरी सोमवार को औपचारिक तौर पर। मनमोहन सिंह की राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मार्च में डरबन में हुई मुलाकात के बाद किसी चीनी नेता से पहली मुलाकात हुई है।
उल्लेखनीय है कि चीनी सैनिक 15 अप्रैल को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पार भारतीय क्षेत्र में 19 किलोमीटर घुस आए थे और वहां उन्होंने अपने शिविर लगा रखे थे। इस घटना के सामने आने के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था।
यह विवाद पांच मई को तब समाप्त हुआ, जब सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर कई दौर की चली बातचीत के बाद दोनों पक्ष 15 अप्रैल से पहले की स्थिति बहाल करने पर सहमत हो गए। उम्मीद के अनुरूप यह मुद्दा दोनों नेताओं के बीच बातचीत के दौरान उठा।
मनमोहन ने ली के साथ संवाददाताओं से कहा कि उनके बीच आपसी चिंता के विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत व स्पष्ट चर्चा हुई।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ली के साथ बातचीत में उन्होंने हाल ही में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय क्षेत्र में चीनी सेना की घुसपैठ का मुद्दा भी उठाया।
ली ने भी सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि भारत और चीन रणनीतिक साझेदार और अच्छे मित्र हैं। सीमा विवाद और नदी जल विवाद पर बतचीत पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देश साफगोई के साथ आपस में बात कर सकते हैं।
मनमोहन ने कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पर बातचीत के लिए जल्द ही विशेष प्रतिनिधियों की बैठक होगी। उन्होंने कहा, "हमने सीमा विवाद के निष्पक्ष, तार्किक एवं दोनों पक्षों के लिए स्वीकार्य समाधान निकालने के लिए विशेष प्रतिनिधियों की जल्द ही बैठक बुलाने पर सहमति जताई है।"
मनमोहन ने कहा कि भारत और चीन के बीच हालांकि मतभेद रहे हैं, लेकिन पिछले 25 वर्षो में दोनों देशों के संबंध नए सिरे से परिभाषित हुए हैं।
मनमोहन ने कहा कि दोनों नेताओं ने भारत-चीन सीमा के पश्चिमी सेक्टर में घटी हाल की घटना से सीखे सबक का जायजा लिया, और यह कि मौजूदा सीमा तंत्र अपने आप में कारगर साबित हुआ।
ली ने कहा कि चीन और भारत ने सीमावर्ती इलाकों में शांति एवं सौहाद्र्र बनाए रखने के लिए काम किया है। उन्होंने कहा कि हमें सीमा तंत्र में सुधार करने और उसे और प्रभावी बनाने तथा अपने मतभेदों को सुलझाने की जरूरत है।
मनमोहन सिंह ने भारत के व्यापार घाटे का मुद्दा भी उठाया। साथ ही तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने के बीजिंग के निर्णय पर भारतीय चिंता से भी ली को अवगत कराया। यह नदी तिब्बत से अरुणाचल प्रदेश और असम की ओर बहती है।
मनमोहन ने कहा कि उन्होंने चीन के प्रधानमंत्री के साथ व्यापार घाटे को पाटने पर भी चर्चा की। साथ ही भारतीय निवेशकों एवं निर्यातकों के लिए चीनी बाजार में पहुंच बढ़ाने की भी मांग की। साथ ही भारत की आधारभूत संरचना एवं विनिर्माण के क्षेत्र में चीनी भागीदारी बढ़ाने के लिए भी आमंत्रित किया।
भारत, चीन का व्यापार 2012 में 66 अरब डॉलर पहुंच गया। जबकि 2000 में यह मात्र तीन अरब डॉलर था। लेकिन व्यापार का पलड़ा चीन के पक्ष में झुका हुआ है। वर्ष 2012 में व्यापार घाटा 29 अरब डॉलर हो गया।
ली ने कहा, "हमारे बीच मित्रवत, गम्भीर और स्पष्टता के साथ बातचीत हुई। इन चर्चाओं का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह है कि दोनों देशों के नेता रणनीतिक सहमति पर पहुंचे हैं और हमारे बीच रणनीतिक विश्वास बढ़ा है।"
दोनों नेताओं ने भारत के पूर्वोत्तर को बांग्लादेश, म्यांमार, चीन और दक्षिण एशिया के अन्य देशों से जोड़ने के तरीकों पर चर्चा की।
मनमोहन ने कहा कि वह यथासम्भव जल्द से जल्द चीन का दौरा करने की आशा रखते हैं।
एक विशाल प्रतिनिधिमंडल के साथ आए ली अब यहां से मुम्बई जाएंगे और वहां से पाकिस्तान, स्विटजरलैंड और जर्मनी की यात्रा पर निकल जाएंगे।
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