विज्ञापन
This Article is From Aug 18, 2022

Explainer : भारत में कहां से आए रोहिंग्या? अंग्रेजों के समय के भारत से क्या है संबंध?

रोहिंग्या (Rohingya) म्यांमार (Myanmar) से 1970 के दशक से ही पड़ोसी देशों में शरणार्थी बन कर पहुंचते रहे. रोहिंग्या शरणार्थियों का कहना था कि म्यांमार के सुरक्षा बलों ने उनपर पर बलात्कार, हत्या, आगजनी जैसे अत्याचार किए. अधिकार समूहों को संदेह है कि म्यांमार सरकार ने रोहिंग्याओं का नरसंहार (Genocide) किया लेकिन म्यांमार सरकार इससे इंकार करती है.  

Explainer : भारत में कहां से आए रोहिंग्या? अंग्रेजों के समय के भारत से क्या है संबंध?
रोहिंग्याओं को UN "दुनिया में सबसे प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय मानता है." (File Photo)

दिल्ली (Delhi) में रोहिंग्या मुसलमानों (Rohingya Muslims)  को फ्लैट देने के मामले पर बवाल मचा हुआ है, दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार पर राष्ट्रीय राजधानी में रोहिंग्या शरणार्थियों (Rohingya Refugee) को "स्थायी निवास" देने की "गुप्त रूप से" कोशिश करने का आरोप लगाया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कौन हैं रोहिंग्या?  नेशनल जियोग्राफिक की रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त राष्ट्र रोहिंग्याओं को "दुनिया में सबसे प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय मानता है."  

ब्रिटैनिका एनसाइक्लोपीडिया के अनुसार, रोहिंग्या म्यांमार के राखीन में रहने वाले मुस्लिम समुदाय को कहा गया.  अल जज़ीरा के अनुसार, कई इतिहासकार और रोहिंग्या समूह यह मानते हैं कि आज के म्यांमार में 12वीं शताब्दी से मुस्लिम समुदाय रहता आया है. काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स के अनुसार,  रोहिंग्या सूफी प्रभाव वाले सुन्नी इस्लाम को मानते हैं. आज दुनिया भर में करीब 35 लाख रोहिंग्या फैले हुए हैं. लेकिन 2017 के अगस्त से पहले करीब 10 लाख रोहिंग्या म्यांमार के राखीन राज्य में रहते थे. रोहिंग्या म्यांमार की जनसंख्या का लगभग एक तिहाई हिस्सा थे.

म्यांमार पहले अविभाजित भारत का हिस्सा था. ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार,  ब्रिटिश शासन के 100 सालों में ब्रिटिश सरकार को इस इलाके में बहुत से मजदूरों की ज़रूरत पड़ी.  भारत के बंगाल और आज के बांग्लादेश से बहुत से परिवार आज के राखीन में मजदूरों की तरह पहुंचे. राखीन म्यांमार का पश्चिमी तटीय प्रांत है. अविभाजित भारत में यह एक देश के भीतर माइग्रेशन का मामला था, इसलिए बिना रोकटोक मजदूरों का आना-जाना हुआ, लेकिन म्यामांर के स्थानीय लोगों की निगाहों में यह खटकता रहा. भारत के विभाजन के बाद म्यांमार की सरकार ने इस माइग्रेशन को अवैध घोषित कर दिया और इसी आधार पर रोहिंग्याओं को नागरिकता देने से मना कर दिया.  

म्यांमार में रोहिंग्या बने देशविहीन 

म्यांमार में 1962 में सैन्य तख्तापलट हुआ और रोहिंग्याओं के लिए हालात बिगड़े. म्यांमार के सैन्य शासन में सभी नागरिकों को नेशनल रजिस्ट्रेशन कार्ड लेना आवश्यक था लेकिन केवल रोहिंग्याओं को विदेशी पहचान पत्र दिए गए. इससे नौकरी और शिक्षा में उनके अवसर सीमित हो गए.   

इसके बाद म्यांमार में 1982 में एक नागरिकता कानून लागू किया गया, जिसके अनुसार 135 राष्ट्रीय जातीय समूहों को मान्यता दी गई लेकिन रोहिंग्याओं को नहीं. इसके कारण म्यांमार में लगभग सभी रोहिंग्या देशविहीन हो गए और उन्हें जन्म के आधार पर नागरिकता नहीं मिली. 

2014 में जब देश में 30 सालों बाद पहली बार जनसंख्या गणना हुई तो तत्कालीन सरकार ने 11 घंटे में फैसला लिया कि जनसंख्या गणना में उन लोगों को शामिल नहीं किया जाएगा जो खुद को रहिंग्या कहते हैं, केवल बंगाली पहचान बताने पर उन्हें जनसंख्या गणना में शामिल किया जाएगा. 

म्यांमार के बहुसंख्य बौद्ध समुदाय रोहिंग्या पहचान मानने से इंकार करते रहे, उनका कहना था कि वो खुद को बंगाली कहें. म्यांमार में रोहिंग्या शब्द पर काफी विवाद है. वहीं रोहिंग्या राजनैतिक नेता कहते रहे कि उनकी अलग जातीय, सांस्कृतिक और भाषाई पहचान है और उनके अनुसार वो 7वीं शताब्दी से अराकान साम्राज्य में रह रहे थे जो आज का राखीन है. 

"बलात्कार, हत्या, आगजनी"

अल जज़ीरा के अनुसार, 2016 में म्यांमार में बॉर्डर पुलिस के 9 सदस्यों की हत्या हुई और सरकार ने दावा किया कि यह हत्याएं रोहिंग्या के हथियार बंद समूह ने की हैं. इसके बाद राखीन राज्य के गांवों में म्यांमार की सेना घुसनी शुरू हुई.  

काउंसिल फॉर फॉरेन रिलेशन के अनुसार, म्यांमार की सराकर ने 2017 में रोहिंग्याओं के खिलाफ एक बड़ा सैन्य अभियान शुरू कया जिसके कारण  सात लाख रोहिंग्याओं को देश छोड़ कर भागना पड़ा. अधिकार समूहों को संदेह है कि म्यांमार सरकार ने रोहिंग्याओं का नरसंहार किया लेकिन म्यांमार सरकार इससे इंकार करती है.  संयुक्त राष्ट्र और कई दूसरे देशों ने म्यांमार के सैन्य अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए और पड़ोसी देशों में भाग कर पहुंचे रोहिंग्या शरणार्थियों को मदद दी. अलजज़ीरा के अनुसार, इससे पहले 1970 के दशक से ही रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश, मलेशिया, थाईलैंड और दक्षिण एशियाई देशों में पहुंचते रहे. रोहिंग्या शरणार्थियों का कहना था कि म्यांमार के सुरक्षा बलों ने उनपर बलात्कार, हत्या, आगजनी जैसे अत्याचार किए. 

आज भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश और अन्य देशों में रोहिंग्या समुदाय के रिफ्यूजी कैंप हैं. कुछ रोहिंग्या भागकर भारत भी पहुंचे.  संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग के अनुसार, रोहिंग्या संकट का सबसे बुरा असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ा है.  

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com