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ह्वेनसांग कौन हैं? जानिए चीन से भागकर PM मोदी के गांव आने और फिर XI से कनेक्शन की कहानी

PM Modi's To XI Jinping Village Connection: ह्वेनसांग (Hiuen Tsang) ने भारत की यात्रा तब की थी, जब भारत सही मायनों में सोने की चीड़िया था. नालंदा विश्वविद्यालय का वैभव दुनिया को चकाचौंध किए हुए था. जानिए उन्होंने क्या लिखा था भारत के बारे में...

ह्वेनसांग कौन हैं? जानिए चीन से भागकर PM मोदी के गांव आने और फिर XI से कनेक्शन की कहानी
PM Modi's To XI Jinping Village Connection: ह्वेनसांग को चीन का होते हुए भी भारत के एक मित्र के रूप में देखा जाता है.

PM Modi's To XI Jinping Village Connection: ह्वेनसांग (Hiuen Tsang) का चीन में बड़ा मान है. कारण उन्होंने चीन से भारत की यात्रा की थी. मगर इसमें क्या बड़ी बात है? दरअसल, 16 साल की अपनी भारत यात्रा में ह्वेनसांग ने न सिर्फ भारत में पढ़ाई की, बल्कि इसके कई राज्यों में घूमे. फिर जब चीन पहुंचे तो अपनी भारत यात्रा के अनुभवों पर लिखने लगे. इसे चीन में भारत के बारे में सबसे प्रमाणिक शोध के रूप में देखा जाता है. साथ ही जब ह्वेनसांग ने भारत की यात्रा की थी, तब राजा हर्षवर्धन का दौर था. राजा हर्षवर्धन के दौर के बारे में जानने के लिए भारत में उनके लिखे को प्रमाणिक माना जाता है.

ह्वेनसांग से पीएम मोदी और शी का नाता

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अचानक ह्वेनसांग के बारे में हम क्यों बात कर रहे? दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जेरोधा के को-फाउंडर निखिल कामथ संग पहला पॉडकास्ट शो किया और इसमें बताया, "साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद मैं प्रधानमंत्री बना तो चीन के राष्ट्रपति का फोन आया और उन्होंने मुझे शुभकामनाएं दीं. तब उन्होंने खुद कहा था कि मैं भारत आना चाहता हूं. इस पर मैंने उन्हें कहा कि आप बिल्कुल आइए. उन्होंने गुजरात आने की इच्छा जाहिर की और मेरे गांव वडनगर आने की बात भी कही थी. इस पर मैंने उनसे पूछा कि आपने इतना कुछ तय कर लिया है तो उन्होंने बताया कि मेरा और उनका (शी जिनपिंग) एक स्पेशल नाता है और वह चीनी फिलॉस्फर ह्वेनसांग से जुड़ा है.उन्होंने बताया कि ह्वेनसांग आपके (पीएम मोदी) गांव में सबसे अधिक समय तक रहे थे और इसके बाद वह जब चीन वापस लौटे तो उनके (जिनपिंग) गांव में रहने के लिए आए थे. हम दोनों का यही कनेक्शन है.”

ह्वेनसांग कौन हैं?

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ह्वेनसांग एक चीनी यात्री थे. ह्वेनसांग का जन्म लगभग 602 ई में चीन के लुओयंग स्थान पर हुआ था और मौत 5 फरवरी 664 में हुई थी. वह एक दार्शनिक, घुमक्कड़ और अनुवादक भी थे. ह्वेनसांग का चीनी यात्रियों में सर्वाधिक महत्व है. उन्हें 'प्रिंस ऑफ ट्रैवलर्स' कहा जाता है. ह्वेनसांग को मानद उपाधि सान-त्सांग से सुशोभित किया गया. उन्हें मू-चा ति-पो भी कहा जाता है. ह्वेनसांग अपने चारों भाई-बहनों में सबसे छोटा था.सन 629 में 27 साल के लंबे-तगड़े शख़्स ने चीन के शहर चांगआन से भारत के लिए अपना सफर शुरू किया. उस समय चीन में गृह युद्ध छिड़ा हुआ था और वहां की सड़कों पर डाकुओं और लुटेरों का बोलबाला था. चीन के नागरिकों के देश छोड़ने पर पाबंदी लगी हुई थी.उसी समय तंग वंश और तुर्कों का युद्ध चल रहे थे. इस कारण राजा ने विदेश यात्राएं निषेध कर रखीं थीं. ह्वेनसांग का इरादा नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने का था. उस समय नालंदा में दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध पुस्तकालय हुआ करता था. चांगआन से नालंदा की दूरी साढ़े चार हजार किलोमीटर के करीब थी. 

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वो पैदल ही चल पड़ा और भारत के कई राज्यों से होते हुए नालंदा पहुंचे. इस बीच वो पीएम मोदी के गांव वडनगर भी पहुंचे. जब वो वापस चीन पहुंचे तो उन्होंने वडनगर का उच्चारण ओ-नान-टू-पु-लो किया है, जिसका अनुवाद आनंदपुर होता है. ये वडनगर के प्राचीन शहर का नाम है. ह्वेनसांग के शब्दों में, "वडनगर में लगभग दस संघाराम हैं, जिनमें 1,000 से कम भिक्षु हैं. वे बौद्ध धर्म के हीनयान संप्रदाय का पालन करते हैं और सम्मतीय संप्रदाय के अनुसार अध्ययन करते हैं. यहां कई बड़े देव मंदिर हैं, और विभिन्न प्रकार के संप्रदाय के लोग वहां आते हैं."

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ह्वेनसांग के लिखे का अंग्रेजी अनुवाज सैमुअल बेल ने अपनी किताब 'Buddhist Records Of The Western World' में किया है. ये किताब भारत सरकार के https://indianculture.gov.in पर भी उपलब्ध है. इसमें भी इस बात का जिक्र है. इसमें हर्षवर्धन काल के वैभव का भरपूर जिक्र किया गया है. साथ ही नालंदा के वैभव का भी वर्णन किया गया है. ह्वेनसांग ने बताया है कि उस समय नालंदा में दाखिला हो पाना बहुत ही मुश्किल होता था, इसके लिए कड़ी परीक्षा ली जाती थी.मैं नालंदा की धरती पर स्थानीय नियमों का पालन करते हुए अपने घुटनों के बल घुसा. मैं शीलभद्र के पास सम्मान दिखाते हुए अपने घुटनों और कोहनियों के बल रेंगता हुआ पहुंचा. उनको देखते ही मैंने उनके पैर चूमे और उनके सामने दंडवत लेट गया.

नालंदा विश्वविद्यालय का जमकर बखान

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नालंदा विश्वविद्यालय के परिसर को छह राजाओं ने बनवाया था. इसका एक प्रवेश द्वार था ,लेकिन इसके अंदर अलग-अलग चौक थे जिन्हें आठ विभागों में बांटा गया था.नालंदा में छात्रों की प्रतिभा और क्षमता उच्चतम स्तर की थी. इस विश्वविद्यालय के नियम बहुत कड़े थे और छात्रों को उनका पालन करना होता था. सुबह से लेकर शाम तक वो वाद-विवाद में व्यस्त रहते थे जिसमें वरिष्ठ और युवा बराबरी से भाग लेते थे. हर रोज़ करीब 100 अलग अलग कक्षों में व्याख्यान दिए जाते थे और छात्र बिना एक क्षण गंवाए बहुत मेहनत से पढ़ा करते थे. 

चीन और भारत के जोड़े संबंध

ह्वेनसांग जब चीन लौटने लगे तो उन्हें राजा हर्षवर्धन ने कई सारे उपहार दिए और चीन व उसके राजवंश के बारे में भी जानकारी ली. चीन पहुंचने से पहले ह्वेनसांग ने पत्र लिखकर अपने राजा से बगैर इजाजत देश छोड़ने की माफी मांगी और आने की अनुमति मांगी. राजा ने उन्हें अनुमति दे दी और मिलने के लिए भी बुलाया. सबसे पहले उन्हें होंगफ़ू मठ ले जाया गया और फिर सम्राट ताएज़ुन ने ल्योयेंग के अपने महल में उनसे मुलाकात की.इन मुलाकातों का सिलसिला जारी रहा और सम्राट ने उनसे उनकी भारत यात्रा के अनुभव, वहां के मौसम, उत्पाद और रीति-रिवाजों के बारे में कई सवाल पूछे.  फिर राजा ने उन्हें अपनी सरकार में शामिल होने का न्योता भी दिया लेकिन ह्वेनसांग ने मना कर दिया. वो चांगआन के एक शाही मठ में रहने चले गए और भारत के अपनी यात्रा के अनुभवों के बारे में लिखने लगे. इसी क्रम में वो चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग के गांव में रहे. बाद में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद किया गया. तो अब आप समझ गए होंगे पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी का कनेक्शन. दोनों ने इस यात्री के जरिए दोनों देशों के बीच मित्रवत संबंधों को अपने संबंधों की नींव के रूप में रखा है.  

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