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Explainer : 2009 में हुए विद्रोह की जांच क्यों कर रहा बांग्लादेश... निशाने पर कौन?

शेख हसीना विद्रोह के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर पांच अगस्त को बांग्लादेश छोड़कर भारत आ गई थीं. इसके तीन दिन बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार बनी, जिसका प्रमुख मुहम्मद यूनुस को बनाया गया.

Explainer : 2009 में हुए विद्रोह की जांच क्यों कर रहा बांग्लादेश... निशाने पर कौन?
नई दिल्ली:

बांग्लादेश 2009 के विद्रोह नरसंहार की जांच करेगा. अंतरिम सरकार अर्द्धसैनिक बल बांग्लादेश राइफल्स (बीडीआर) में 2009 के विद्रोह की जांच और सुनवाई शुरू कर रही है. इसमें बल में सेवारत 57 सैन्य अधिकारियों समेत 74 लोग मारे गए थे. इस घटना के इन्क्वायरी प्रमुख ने कहा कि एक आयोग ने इसकी जांच के आदेश दिए हैं. इस नरसंहार में कथित 'विदेशी' समर्थकों की भूमिका भी शामिल थी.

घटना की जांच की मांग करने वाले लोगों ने इस साजिश में भारत के शामिल होने का आरोप लगाया है.

फरवरी 2009 में शुरू हुआ था विद्रोह

विद्रोह 25-26 फरवरी, 2009 को शुरू हुआ था, जब सेना के अधिकारियों ने बीडीआर जवानों की मांगों को पूरा करने से इनकार कर दिया था. विद्रोही सैनिकों ने ढाका में बीडीआर के पिलखाना मुख्यालय में विद्रोह किया और ये जल्द ही पूरे देश में फ्रंटियर फोर्स के सेक्टर मुख्यालयों और क्षेत्रीय इकाइयों तक फैल गया.

विद्रोह में अर्द्धसैनिक बलों के जवानों ने अपने कमांडरों की ओर बंदूकें तान दीं, उन्हें नजदीक से गोली मार दी या उन्हें धारदार हथियारों से हमला करके मार डाला, उनके शवों को सीवर में छिपा दिया और उनके डरे हुए परिवार के सदस्यों को बैरकों में बंधक बना दिया.

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नरसंहार के बाद हजारों लोगों पर मुकदमा चलाया गया

विद्रोहियों ने बैरक में हत्या का सिलसिला शुरू करने से पहले फरवरी 2009 में बांग्लादेश राइफल्स (बीडीआर) अर्धसैनिक दस्ते के मुख्यालय से हजारों हथियार चुरा लिए.

विद्रोह तेजी से फैल गया, सेना द्वारा इसे दबाए जाने से पहले हजारों सैनिकों ने हथियार जब्त कर लिए और विद्रोहियों के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की.

नरसंहार के बाद हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर विशेष सैन्य अदालतों में मुकदमा चलाया गया, क्योंकि हसीना की तत्कालीन नवनिर्वाचित सरकार नियंत्रण हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही थी.

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बाद में एक व्यापक पुनर्निर्माण अभियान के तहत, सरकार ने बीडीआर का नाम बदलकर बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) कर दिया और बल को विद्रोह के कलंक से मुक्त करने के लिए इसके लोगो, वर्दी, ध्वज और मोनोग्राम को भी बदल दिया.

हम न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध - अंतरिम सरकार के गृह सलाहकार

अंतरिम सरकार के गृह एवं कृषि मामलों के सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एम जहांगीर आलम चौधरी ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि एक नागरिक और एक पूर्व सैन्यकर्मी के रूप में वो इस दुखद घटना में न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

आलम पहले बीजीबी प्रमुख रह चुके हैं. उन्होंने कहा, 'न केवल एक सलाहकार के रूप में, बल्कि एक पूर्व सैन्यकर्मी और एक सामान्य नागरिक के रूप में, मैं बीडीआर हत्याकांड की न्यायोचित सुनवाई चाहता हूं.'

विद्रोह मामले की उठ रही थी जांच की मांग

बांग्लादेश में सरकार के तख्तापलट के बाद विशेष रूप से सोशल मीडिया पर इस घटना की फिर से जांच की मांग की जा रही थी. हालांकि 2017 में तीन न्यायाधीशों वाली उच्च न्यायालय की एक विशेष पीठ ने निचली अदालत में मुकदमे के बाद 139 बीडीआर सैनिकों की मौत की सजा को बरकरार रखा था.

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सैनिकों ने बांग्लादेश में हुए इस विद्रोह को कुचला

इस हिंसक विद्रोह ने दक्षिण एशियाई राष्ट्र बांग्लादेश को मुश्किलों में डाल दिया था. बाद में सेना ने इस विद्रोह को कुचला. कई लोगों को गिरफ्तार किया गया और मौत की सजा भी सुनाई गई.

विद्रोह की पिछली आधिकारिक जांच में कई लोगों की मौत के लिए आम सैनिकों के बीच सालों से दबे हुए गुस्से को कारण बताया गया. उनका कहना था कि वेतन वृद्धि और बेहतर इलाज की उनकी मांग को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा था.

हालांकि वो जांच शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान की गई थी, जिन्हें अगस्त में तख्तापलट के बाद प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया था. फिर उन्होंने अपने पुराने सहयोगी भारत में शरण ली.

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उनके पतन के बाद से, हिंसा में मारे गए सैनिकों के परिवार जांच को फिर से खोलने के लिए अभियान चला रहे थे. उन्होंने बार-बार शेख हसीना पर तख्तापलट की संभावना वाले देश में अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए सेना को कमजोर करने की योजना बनाने का आरोप लगाया.

शेख हसीना के खिलाफ 60 से ज्यादा मुकदमे

77 साल की शेख हसीना को इस साल जुलाई-अगस्त में विरोध प्रदर्शनों और उसके बाद हुए विद्रोह के दौरान नरसंहार व मानवता के खिलाफ अपराध के आरोपों में आईसीटी में दायर कम से कम 60 मुकदमों का सामना करना पड़ेगा.

हसीना भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के दौरान हुए विद्रोह के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर पांच अगस्त को बांग्लादेश छोड़कर भारत आ गई थीं. इसके तीन दिन बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार बनी, जिसका प्रमुख या मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस को बनाया गया.

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रची जा रही थी मेरी हत्या की साजिश - शेख हसीना

कुछ दिन पहले यूनुस ने कहा था कि हसीना को बांग्लादेश में और अधिक जन आक्रोश पैदा करने से बचने के लिए बोलना बंद कर देना चाहिए. न्यूयॉर्क में हुए एक कार्यक्रम में अपने समर्थकों को ऑनलाइन माध्यम से संबोधित करते हुए हसीना ने यह दावा भी किया था कि उन्हें और उनकी बहन शेख रेहाना को मारने की योजना बनाई जा रही है, ठीक उसी तरह जैसे 1975 में उनके पिता शेख मुजीब उर रहमान की हत्या की गई थी.

यूनुस को 'सत्ता का भूखा' बताते हुए फिलहाल भारत में रह रहीं हसीना ने आरोप लगाया कि बांग्लादेश में पूजा स्थलों पर हमले हो रहे हैं और मौजूदा सरकार इस स्थिति से निपटने में पूरी तरह विफल रही है.

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