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This Article is From Dec 22, 2016

'सद्दाम हुसैन को इराक़ पर शासन करने के लिए छोड़ देना चाहिए था' : पूर्व अमेरिका खुफिया एजेंट

'सद्दाम हुसैन को इराक़ पर शासन करने के लिए छोड़ देना चाहिए था' : पूर्व अमेरिका खुफिया एजेंट
सद्दाम हुसैन एक बार फिर चर्चा में है. मीडिया के पन्ने पर उन्हें जगह मिल रही है. 2006 में सद्दाम हुसैन को फांसी दिए जाने के बाद उन्हें लेकर चर्चा लगभग बंद हो गयी थी लेकिन एक बार फिर वह सुर्खियों में हैं क्योंकि 2003 में सद्दाम हुसैन से पूछताछ करने वाले अमेरिका के सीआईए एजेंट जॉन निक्सन ने अपनी किताब 'डीब्रीफिंग द प्रेसिडेंट' में कई खुलासे किए हैं.

इस खुलासे में ऐसे कई बातें सामने आई हैं जो अमेरिका के नियत के ऊपर सवाल उठाती हैं. इसमें कोई दोराय नहीं कि सद्दाम हुसैन एक तानाशाह के रूप में लोगों के बीच जाने जाते थे, लेकिन फिर यह सवाल भी उठता है कि अमेरिका ने सद्दाम हुसैन और इराक के साथ जो किया वह कितना सही था. जॉन निक्सन ने अपने किताब में ऐसे कई बात कही है जिसे सद्दाम और इराक के प्रति लोगों की सहानुभूति बढ़ रही है.

सद्दाम हुसैन के उतार चढ़ाव की कहानी : 
सद्दाम हुसैन इराक का सबसे तानाशाह राष्ट्रपति था. सद्दाम हुसैन ने 24 साल तक इराक पर शासन किया, एक तानाशाह के रूप में लोगों के बीच एक ख़ौफ़ पैदा किया. सद्दाम का जन्म किसान परिवार में हुआ. 20 साल की उम्र में वह अरब बाथ पार्टी के सदस्य बने और 1959 में सद्दाम हुसैन उस वक्त के राष्ट्रपति अब्दुल करीम क़ासिम पर गोली मारकर हत्या करने की कोशिश में विफल रहे. जवाबी कार्रवाई में सद्दाम हुसैन के बाएं पैर में गोली लगी थी (गोली के घाव 2003 में सद्दाम हुसैन की पहचान में मददगार साबित हुए थे). सद्दाम हुसैन के कई साथी पकड़ गए थे और उन्हें फांसी दी गई थी लेकिन वह देश छोड़कर भागने में कामयाब हुए. 1963 में कासिम सरकार गिर जाने के बाद सद्दाम हुसैन इराक वापस लौटे लेकिन 1964 में गिरफ्तारी हो गई. करीब एक साल के बाद सद्दाम हुसैन जेल से भागने में कामयाब रहे.

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राष्ट्रपति बनते ही सद्दाम हुसैन ने ईरान पर किया था हमला :
1976 में सद्दाम की मदद से अहमद हस्सन अल-बक़र इराक के राष्ट्रपति बने और सद्दाम हुसैन उनके डिप्टी लेकिन वह इराक के राष्ट्रपति बनाना चाहते थे. फिर 1979 में अल बक़र को ज़बरदस्ती इस्तीफ़ा दिलाते हुए सद्दाम हुसैन इराक के राष्ट्रपति बने. सद्दाम हुसैन हमेशा से डरते थे कि उनकी पार्टी के लोग उनके खिलाफ षडयंत्र न रच दें. सद्दाम हुसैन ने अपनी पार्टी के कई नेताओं को निकाल दिया और कइयों को फांसी भी दी. सद्दाम हुसैन सुन्नी समुदाय से थे और इराक में इस समुदाय की जनसंख्या बहुत कम थी. सद्दाम के सामने बहुत बड़ी चुनौती यह भी थी कि 60 प्रतिशत शिया लोग कभी भी सद्दाम हुसैन के खिलाफ आवाज़ उठा सकते थे, षडयंत्र रच सकते थे.

राष्ट्रपति बनने के कुछ महीने बाद सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला कर दिया. इस हमले के पीछे सबसे बड़ी वजह थी ईरान में शिया सरकार. सद्दाम हुसैन को यह डर लग रहा था कि कहीं ईरान की शिया सरकार उनके खिलाफ कोई षडयंत्र न रच दे. इराक और ईरान दोनों देशों के बीच कई सालों तक लड़ाई चली. रसायनिक अस्त्र का भी इस्तेमाल हुआ जिसकी वजह से कई लाख लोगों की जानें गईं. फिर 1988 में दोनों देशों के बीच युद्धविराम संधि हुई.

अमेरिका का इराक पर हमला :
इस युद्ध के बाद इराक़ की आर्थिक हालात ख़राब हो गई थी. अपनी आर्थिक दशा ठीक करने के लिए सद्दाम हुसैन कुवैत पर कब्ज़ा करना चाहते थे. 1990 में इराक ने अपने पड़ोसी राज्य कुवैत पर हमला किया. इस हमले के बाद युनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल ने इराक के ऊपर आर्थिक प्रतिबंध लगाया और कुवैत से अपने सैनिक वापस लेने के लिए कहा गया लेकिन इराक नहीं माना. फिर यूनाइटेड नेशन ने अमेरिका में मदद से इराक़ पर हमला कर दिया. फिर दोनों के बीच युद्धविराम की संधि हुई.

सद्दाम हुसैन को फांसी दी गई : 
2002 में अमेरिका ग़लतफहमी में था की इराक के पास सामूहिक विनाश के हथियार है और इराक इसका इस्तेमाल अपने पड़ोसी देश के खिलाफ कर सकता है. अमेरिका यह भी मानता था की सद्दाम हुसैन का ओसामा बिल लादेन और अल-क़ायदा के साथ रिश्ता है और इराक आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है. फिर मार्च 20 2003 में अमेरिका ने इराक के ऊपर हमला बोल दिया. एक महीने के अंदर अमेरिका ने बग़दाद पर कब्ज़ा कर लिया और सद्दाम हुसैन अंडर ग्राउंड होने की खबर आई लेकिन दिसम्बर 13, 2003 को सद्दाम हुसैन पकड़ा गया. तीन साल तक इराक़ के जेल में रहने के बाद सद्दाम हुसैन को 30 दिसंबर 2006 को फांसी दी गई. सबसे बड़ी बात यह है कि जिस सीआईए ने 1959 में सद्दाम हुसैन को क़ासिम पर हमला करने और देश से भागने में मदद की थी, उसी सीआईए ने 2003 में सद्दाम हुसैन को ख़त्म कर दिया.

जॉन निक्सन ने उठाये कई सवाल :
2003 में जॉन निक्सन इराक में थे, निक्सन सद्दाम हुसैन के ऊपर पूरी जानकारियां जुटा रहे थे. उस वक्त के लिए जॉन निक्सन ने अपनी किताब में लिखा है कि सद्दाम हुसैन ने पूछताछ के दौरान बताया था कि ओसामा बिन लादेन या अल-क़ायदा के साथ कोई रिश्ता नहीं था. सद्दाम हुसैन ने यह भी बताया था कि 9 /11 हमले के पीछे उनका दिमाग नहीं था. निक्सन ने अपनी किताब में लिखा है कि सद्दाम को अमेरिका के राष्ट्रपति बुश से डर नहीं लगता था. सद्दाम ने अमेरिका के खिलाफ कभी सामूहिक विनाश के हथियार के इस्तेमाल के बारे में नहीं सोचा था लेकिन फिर भी अमेरिका को ग़लतफहमी थी जिसकी वजह से वह सद्दाम को पूरी तरह ख़त्म कर देना चाहते थे. अपनी किताब में जॉन निक्सन ने अमेरिका और सीआईए पर कई सवाल उठाये हैं. निक्सन का कहना है सीआईए सिर्फ अमेरिका के राष्ट्रपति को खुश करना चाहता था और इराक और सद्दाम हुसैन को लेकर कई गलत जानकारी दे रहा था.

सद्दाम हुसैन को इराक़ का शासन करने के लिए छोड़ देना चाहिए था :
अमेरिका अपने प्लान में कामयाब भी हुआ. सद्दाम की मौत के बाद लोग एक नए इराक़ की उम्मीद कर रहे थे. यह उम्मीद की जा रही थी कि इराक में शांति लौटेगी और लोकतांत्रिक तरीके से इराक़ आगे बढ़ेगा लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. सद्दाम हुसैन ने जॉन निक्सन के सामने जो भविष्यवाणी की था वह सच हुई. पूछताछ के दौरान सद्दाम हुसैन ने जॉन निक्सन को बताया था कि अमेरिका तो इराक़ पर शासन करने में कभी सफलता नहीं मिल पाएगी. अब इराक़ का हाल क्या है सब को पता है. इराक़ एक इस्लामिक स्टेट बनता जा रहा है.

आईएसआई का खौफ बढ़ता जा रहा है. यह सब देखने के बाद जॉन निक्सन को एहसास हो रहा की सद्दाम हुसैन सही थे. इराक पर शासन करना इतना आसान नहीं है. सबसे बड़ी बात यह है कि जॉन निक्सन ने अपनी किताब में लिखा है कि अब उन्हें लगता है सद्दाम हुसैन को इराक को शासन करने के लिए छोड़ देना चाहिए था. अगर सद्दाम हुसैन होते तो शायद इराक़ का अब जो हाल है वह नहीं होता. निक्सन लिखते हैं कि सद्दाम हुसैन निर्दयी राष्ट्रपति ज़रूर थे लेकिन इराक़ जैसे राष्ट्र का शाषन करने के लिए उन्हीं के जैसा राष्ट्रपति होना चाहिए था. निक्सन मानते है अगर सद्दाम हुसैन होते तो आज इराक में आईएसआईएस का खौफ नहीं होता.

निक्सन ने अपने किताब में लिखा है कि 2003 में सद्दाम हुसैन राष्ट्रपति ज़रूर थे लेकिन सरकार के रोज़ के कामकाज में उसका कोई लेना देना नहीं था. सरकार चलाने में उनका कोई हाथ नहीं था और ज्यादा से ज्यादा समय वह एक किताब लिखने में बिताते थे. उन्हें पता नहीं था कि इराक़ के अंदर क्या चल रहा है.

निक्सन ने अपनी किताब में लिखा है कि सद्दाम हुसैन ने उन्हें बताया था कि अमेरिका के सैनिक उनसे किताब लिखने की सामग्री उठा ले गए थे जिसकी वजह से वह अपनी किताब पूरी नहीं कर पाए थे. निक्सन ने लिखा कि सद्दाम हुसैन ज़रूर एक तानाशाह थे लेकिन वह इस मिशन के साथ आगे नहीं बढ़ रहे थे कि दुनिया को ख़त्म कर दिया जाए. फिर भी अमेरिका ने इस सोच के साथ इराक़ पर हमला बोल दिया था कि सद्दाम हुसैन पूरी दुनिया के लिए खतरा है.

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