वाशिंगटन:
एंगस डिटॉन को गरीब और संपन्न देशों में स्वास्थ्य के कारकों और भारत और दुनिया भर में गरीबी के आकलन के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया है। खपत के व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर अध्ययन के लिए ब्रिटेन में जन्मे प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के एंगस को अर्थशास्त्र में 2015 का यह नोबल पुरस्कार दिया गया है। एंगस के बयान के मुताबिक, 'अंत में किसी भी व्यक्ति का निजी हित ही अहम है।'
जब आप भारत की गरीबी दर या अमेरिका की मृत्यु दर को मापते हैं, तो आप जिन चीजों का आकलन करते हैं वे सभी समुच्चय होती हैं। लेकिन वास्तव में जब भी किसी की मृत्यु होती है तो वह एक व्यक्ति की होती है या गरीबी की बात हो तो एक व्यक्ति की गरीबी की ही बात होती है। मुझे लगता है कि इसे व्यक्तिगत तौर पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।’
दुनिया में असमानता की वजह
डिटॉन की किताब, 'द ग्रेट एस्केप : हेल्थ, वेल्थ एंड द ओरिजिन्स ऑफ इनइक्वेलिटी' में इस बात की व्याख्या की गई है कि 250 वर्ष पूर्व किस प्रकार दुनिया के कुछ हिस्सों में तरक्की होती गई, जिससे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अंतर के चलते, आज की दुनिया में असमानता की स्थिति पैदा हो गई।
पुरस्कार की घोषणा करते हुए नोबल पुरस्कार समिति ने खासतौर पर जॉन म्यूलब्योर और डिटॉन के 1980 के रिसर्च पेपर 'एन ऑलमोस्ट आइडियाल डिमांड सिस्टम' की भी बात की। रिसर्च पेपर में समाज में मांग के ढांचे की एक विश्वसनीय तस्वीर पेश की गई है। प्रिंसटन में सोमवार को एक समाचार सम्मेलन में डिटॉन ने दुनिया की बेशुमार तरक्की की भी बात की।
डिटॉन ने कहा, "पिछले 220 वर्षों में दुनिया में काफी बदलाव हुआ है और हममें से काफी लोगों की जिंदगी पहले से संपन्न हो गई है और हमारी तरक्की के मार्ग प्रशस्त हो गए हैं। लेकिन इस बारे में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।"
जब आप भारत की गरीबी दर या अमेरिका की मृत्यु दर को मापते हैं, तो आप जिन चीजों का आकलन करते हैं वे सभी समुच्चय होती हैं। लेकिन वास्तव में जब भी किसी की मृत्यु होती है तो वह एक व्यक्ति की होती है या गरीबी की बात हो तो एक व्यक्ति की गरीबी की ही बात होती है। मुझे लगता है कि इसे व्यक्तिगत तौर पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।’
दुनिया में असमानता की वजह
डिटॉन की किताब, 'द ग्रेट एस्केप : हेल्थ, वेल्थ एंड द ओरिजिन्स ऑफ इनइक्वेलिटी' में इस बात की व्याख्या की गई है कि 250 वर्ष पूर्व किस प्रकार दुनिया के कुछ हिस्सों में तरक्की होती गई, जिससे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अंतर के चलते, आज की दुनिया में असमानता की स्थिति पैदा हो गई।
पुरस्कार की घोषणा करते हुए नोबल पुरस्कार समिति ने खासतौर पर जॉन म्यूलब्योर और डिटॉन के 1980 के रिसर्च पेपर 'एन ऑलमोस्ट आइडियाल डिमांड सिस्टम' की भी बात की। रिसर्च पेपर में समाज में मांग के ढांचे की एक विश्वसनीय तस्वीर पेश की गई है। प्रिंसटन में सोमवार को एक समाचार सम्मेलन में डिटॉन ने दुनिया की बेशुमार तरक्की की भी बात की।
डिटॉन ने कहा, "पिछले 220 वर्षों में दुनिया में काफी बदलाव हुआ है और हममें से काफी लोगों की जिंदगी पहले से संपन्न हो गई है और हमारी तरक्की के मार्ग प्रशस्त हो गए हैं। लेकिन इस बारे में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।"
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