
- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा नियमों में बदलाव कर आवेदन शुल्क एक लाख डॉलर कर दिया है
- नए नियम के तहत H-1B वीजा धारकों को गैर-इमिग्रेंट वर्कर के रूप में सीधे प्रवेश नहीं मिलेगा
- यह बढ़ी हुई फीस खासकर छोटे टेक फर्मों और स्टार्टअप्स के लिए वित्तीय दबाव बढ़ा सकती है
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा के नियम बदल दिए हैं. नए नियम के मुताबिक अब कुछ H-1B वीजा धारक अमेरिका में गैर-इमिग्रेंट वर्कर के रूप में सीधे एंट्री नहीं ले पाएंगे. नए आवेदन के साथ 100,000 डॉलर यानी भारतीय रुपये में 88 लाख से ज्यादा की फीस देना जरूरी होगा. 88 लाख रुपये की नई फीस रकंपनियों के लिए खर्च काफी बढ़ा सकती है. हालांकि, कहा जा रहा है कि इस फैसले के बाद बड़ी टेक कंपनियों के लिए यह एक बड़ी समस्या नहीं होगी. ऐसा इसलिए भी क्योंकि वे टॉप प्रोफेशनल्स के लिए भारी खर्च करती रहती हैं, लेकिन इससे छोटे टेक फर्म और स्टार्टअप दबाव में आ सकते हैं.
.@POTUS signs a Proclamation to restrict the entry of certain H-1B aliens into the U.S. as nonimmigrant workers, requiring a $100,000 payment to accompany or supplement H-1B petitions for new applications.
— Rapid Response 47 (@RapidResponse47) September 19, 2025
AMERICA FIRST! pic.twitter.com/AzAUJzXawV
व्हाइट हाउस के स्टाफ सेक्रेटरी विल शार्फ ने कहा कि H-1B नॉन इमिग्रेंट वीजा प्रोग्राम उन वीजा सिस्टम में से एक है जिसका सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ है. इस वीजा का मकसद यही है कि ऐसी हाईली स्किल्ड लोग अमेरिका में आकर काम कर सकें. यह प्रोक्लेमेशन कंपनियों द्वारा H-1B आवेदकों को स्पॉन्सर करने की फीस को 100,000 डॉलर कर देगा. इससे यह सुनिश्चित होगा कि जो लोग अमेरिका आ रहे हैं. वे वास्तव में बहुत ही उच्च योग्य हैं और उन्हें अमेरिकी कर्मचारियों से बदला नहीं जा सकता है.
आखिर क्या है ये H-1B वीजा?
चलिए आपको जिस एच-1बी वीजा के नियम को बदला गया है, वो आखिर है क्या उसके बारे में बताते हैं. डीएचएस के अनुसार एच-1बी नॉन-इमिग्रेंट वीजा प्रोग्राम अमेरिकी नियोक्ताओं को विशेष व्यवसायों में अस्थायी रूप से विदेशी श्रमिकों को नियुक्त करने की अनुमति देता है. ऐसे व्यवसायों को कानून इस रूप में परिभाषित करता है कि उनके लिए अत्यधिक विशिष्ट ज्ञान और विशिष्ट विशेषता में स्नातक (बैचलर) या उच्च डिग्री या इसके समकक्ष योग्यता की आवश्यकता होती है.
ऐसा देखा जाता है कि प्रमुख तकनीकी कंपनियां हर साल भारत और चीन जैसे देशों से हजारों कर्मचारियों को लाने के लिए इस कार्यक्रम पर बहुत ज्यादा निर्भर करती हैं. अमेरिकी कर्मचारियों से बदला नहीं जा सकता है.
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