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This Article is From Sep 27, 2022

भारत में Diwali पर Luxury Products की बढ़ती मांग ने इस बार बढ़ाई चिंता, यह है कारण

कम आय वाले हाशिए पर हैं और वो महामारी से पहले के अपने स्तर पर नहीं खरीद पा रहे हैं. यह ऐसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए चिंता की बात है जो अपने विकास में 60% घरेलू खपत पर भरोसा करती है.

भारत में Diwali पर Luxury Products की बढ़ती मांग ने इस बार बढ़ाई चिंता, यह है कारण
भारत में महंगे सामान का बढ़ता बाजार एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करता है (Pic- रॉयटर्स)

भारत में त्यौहारों के मौसम से पहले खरेलू खर्चे के बढ़ने से एक नई चेतावनी मिल रही है. देश में महंगाई दर करीब 7 प्रतिशत के आस-पास है और बेरोज़गारी भी बढ़ रही है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार,  उपभोक्ता बाजार करीब $2,000 के सामानों में मजूबत मांग दिखा रहा है जबकि $100 डॉलर से नीचे के बजट फोन और ग्रामीण मांग को दर्शाने वाली मोटरसाइकल की ब्रिक्री में कमजोरी है.  चीन के हायर ग्रुप (Haier Group) की भारयती यूनिट किंगडाओ (Qingdao) के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट सतीश एन एस कहते हैं, "प्रीमियम प्रोडक्ट्स में ग्राहक है. फ्रंट लोड वॉशिंग मशीन और डबल डोर से फ्रिज जो करीब ₹ 150,000 या उससे अधिक कीमत पर बिकते हैं, वो निचले स्तर के प्रोडक्ट्स से अधिक बिक रहे हैं, जिससे हमें अपनी सप्लाई चेन को "सबसे बेहतर" की तरफ ले जाना पड़ रहा है". 

कम आय वाले हाशिए पर हैं और वो महामारी से पहले के अपने स्तर पर नहीं खरीद पा रहे हैं यह ऐसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए चिंता की बात है जो अपने विकास में 60% घरेलू खपत पर भरोसा करती है. भारत ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर ऊंची महंगाई दर से लड़ना चाह रहा है लेकिन इससे उपभोक्ता मांग में कटौती आने का खतरा है. 

ब्लूमबर्ग इकनॉमिक्स के अभिषेक गुप्ता कहते हैं, " जब अर्थव्यवस्ता बेहतर हो और फिर समग्र विकास असमानताओं की चिंताओं को ढंक लेता है."  आगे उन्होंने कहा, लेकिन फिलहाल आउटपुट का अंतर नकारात्मक है और अर्थव्यवस्था कई चुनौतियों से जूझ रही है, इसमें महंगाई दर, मंदी का खतरा शामिल है. इस कारण यह अर्थव्यवस्था में सुधार की गति पर अतिरिक्त भार डाल रहा है." 

पियू रिसर्च सेंटर के अनुसार परिभाषित किए गए कम आय वाले व्यक्ति ऐसे होते हैं जो प्रतिदिन $2.01-$10 कमाते हैं. भारत में 1.4 बिलियन की आबादी वाले देश में ऐसे लोगों की जनसंख्या 1.16 बिलियन है. 

यह संकेत है कि उनकी खर्चे की क्षमता जीवनयापन की बढ़ती कीमतों के कारण घटती जा रही है. बैंको सैनटेनडर एसए ( Banco Santander SA ) का आंकड़ा दिखाता है कि भारत में लोग अपनी आय का 30 प्रतिशत खाने जैसी ज़रूरतों पर खर्च करते हैं. चीन में जबकि यह प्रतिशत केवल 10 प्रतिशत है. इसमें बेरोज़गारी दर में बढ़त और चिंताएं बढ़ा रही है.  


एसएंडपी ग्लोबल की स्थानीय इकाई क्रिसिल लिमिटेड के चीफ इकॉनमिस्ट धर्मकीर्ती जोशी कहते हैं, अधिक कमाने वाले लोगों की आय में तेजी से बढ़ोतरी देश में K- आकार के खपत पैटर्न को दिखाती है.(K-shaped consumption pattern). इसकी जड़ें बढ़ती असमानता में होती हैं. इसके कारण खतरों से भरी गैरविविधता वाली विकास दर होती है.  

फिच रेटिंग (Fitch Ratings ) की लोकल यूनिट  इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च प्राइवेट लिमिटिड (India Ratings and Research Pvt) में चीफ इकॉनमिस्ट देवेंद्र पंत कहते हैं, " अर्थव्यवस्था में ऐसा सुधार जो मुख्यतौर पर शहरों में केंद्रित हो, यह चिंताजनक है, क्योंकि इसके बने रहने की संभावनाएं बेहद कम होती हैं. " 
 

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