Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) ने साफ कहा है कि उनकी सरकार के कमज़ोर पड़ने के बाद तालिबान ने भले ही राजधानी काबुल पर कब्ज़ा कर लिया है, लेकिन वह समर्पण नहीं करने वाले. ऐसा प्रतीत होता है कि वह देश के अपने अंतिम ठिकाने, काबुल के पूर्वोत्तर में स्थित पंजशीर घाटी की ओर कूच कर गए हैं. अंडरग्राउंड होने के पहले सालेह ने रविवार को ट्विटर पर लिखा, 'मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा, जिन्होंने मुझे चुना. मैं तालिबान के साथ कभी भी नहीं रहूंगा, कभी नहीं.' एक अन्य ट्वीट में अफगानिस्तान के पूर्व उप राष्ट्रपति सालेह ने कहा, 'इस बारे में अमेरिका से बात करने का अब कोई मतलब नहीं है. हम अफगानों को साबित करना होगा कि अफगानिस्तान, वियतनाम नहीं है. अमेरिका और नाटो से अलग हमने अभी हौसला नहीं खोया है. '
I will never, ever & under no circumstances bow to d Talib terrorists. I will never betray d soul & legacy of my hero Ahmad Shah Masoud, the commander, the legend & the guide. I won't dis-appoint millions who listened to me. I will never be under one ceiling with Taliban. NEVER.
— Amrullah Saleh (@AmrullahSaleh2) August 15, 2021
It is futile to argue with @POTUS on Afg now. Let him digest it. We d Afgs must prove tht Afgh isn't Vietnam & the Talibs aren't even remotely like Vietcong. Unlike US/NATO we hvn't lost spirit & see enormous oprtnities ahead. Useless caveats are finished. JOIN THE RESISTANCE.
— Amrullah Saleh (@AmrullahSaleh2) August 17, 2021
समाजवादी पार्टी सांसद का 'अजीबोगरीब' बयान, 'अफगानिस्तान की आजादी के लिए लड़ रहा तालिबान'
एक दिन बाद सोशल मीडिया पर तस्वीरें सामने आने लगीं जिनमें पूर्व उप राष्ट्रपति अपने पूर्व संरक्षक (former mentor) और तालिबान विरोधी फाइटर अहमद शाह मसूद के बेटे के साथ पंजशीर में नजर आ रहे हैं. यह इलाका हिंदुकुश के पहाड़ों के पास स्थित है. सालेह ओर मसूद के बेटे, जो कि मिलिशिया फोर्स की कमान संभालते हैं, पंजशीर में तालिबान के मुकाबले के लिए गुरिल्ला मूवमेंट के लिए एकत्र हो रहे हैं.
"वायुसेना को धन्यवाद" : मुश्किल हालात में काबुल से सुरक्षित वापसी पर बोले भारतीय राजदूत
अपनी नैसर्गिंक सुरखा के लिए मशहूर पंचशीर वैली 1990 के सिविल वार में कभी भी तालिबान के हिस्से में नहीं आई और न ही इससे एक दशक पहले इसे (तत्कालीन) सोवियत संघ जीत पाया था. एक निवासी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा, 'हम तालिबान को पंजशीर में प्रवेश की इजाजत नहीं देंगे. हम पूरी ताकत के साथ उसका विरोध करेंगे और लड़ेंगे.' यह लड़ार्द एक तरह से तालिबान के खिलाफ सालेह के लंबे संघर्ष में से एक होगी. कम आयु में ही अनाथ हुए सालेह ने गुरिल्ला कमांडर मसूद के साथ 1990 के दशक में कई लड़ाइयां लड़ीं. उन्होंने सरकार में सेवाएं दीं. 1996 में तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया. सालेह बताते हैं कि उनका पता जानने और 'शिकार' के लिए कट्टरपंथियों ने उनकी बहन को भी टार्चर किया था. पिछले साल टाइम मैगजीन के संपादकीय में सालेह ने लिखा था, 'वर्ष 1996 में जो हुआ उसके कारण तालिबान के लिए मेरे विचार हमेशा के लिए बदल गए. '
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं