चिन्मय कृष्ण दास वह नाम है जो आजकल बांग्लादेश की मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है. इस साल जुलाई में बांग्लादेश के युवा सड़कों पर उतर गए थे. युवा बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार की आरक्षण नीति के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. इसके दवाब में शेख हसीना को इस्तीफा देकर भारत में शरण लेनी पड़ी थी. हसीना के इस्तीफे के बाद बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा भड़क उठी थी. इसमें हिंदू और हिंदुओं की संपत्तियों को निशाना बनाया गया. इसके बाद से चिन्मय दास बांग्लादेश में हिंदुओं के अधिकारों और उनके उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने लगे. इसका परिणाम यह हुआ कि पिछले चार महीनों में 38 साल के चिन्मय कृष्ण दास बांग्लादेश में एक जाना-पहचाना नाम बन गए हैं.आज वो बांग्लादेश में हिंदुओं के सबसे बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं.
चिन्मय कृष्ण दास का जीवन परिचय
संन्यास लेने से पहले चिन्मय कृष्ण दास का नाम चंदन कुमार धर था. उनका जन्म चटगांव के तहसील सतकानिया के करियानगर गांव में मई 1985 में हुआ था.उनका मन बचपन से ही धार्मिक कामों में लगता था.उन्होंने 12 साल की उम्र में 1997 में संन्यास ले लिया था.संन्यास लेने के बाद उन्हें चिन्मय प्रभु के नाम से जाना जाने लगा. चिन्मय दास जब लोगों से मिलते हैं तो 'प्रभु प्रणाम' कहकर उनका अभिवादन करते हैं. वो इस्कॉन चटगांव के पुंडरीक धाम के प्रमुख हैं. पुंडरीक धाम बांग्लादेश में हिंदुओं के लिए पवित्र माने जाने वाले दो स्थानों में से एक है. बांग्लादेश के आठ शहरों में इस्कॉन के 50 से अधिक मंदिर और केंद्र हैं. वो बांग्लादेश सनातन जागरण मंच और बांग्लादेश सम्मिलित शंख लघु जोत के विलय से बने बांग्लादेश सम्मिलित सनातन जागरण जोत के प्रवक्ता भी हैं. वो हिंदू बच्चों के लिए स्कूल चलाने के साथ-साथ कई दूसरी सामाजिक-धार्मिक गतिविधियों में भी शामिल रहते हैं.
चिन्मय दास भगवान श्रीकृष्ण को मानने वाली संस्था इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस से जुड़े हैं. इस संगठन को इस्कॉन के नाम से जाना जाता है. बांग्लादेश पुलिस की खुफिया शाखा ने सोमवार दोपहर उन्हें उस समय गिरफ्तार कर लिया था, जब वे ढाका से चटगांव जा रहे थे.उन्हें गिरफ्तार करने वाले पुलिसकर्मी सादे कपड़ों में आए थे. बाग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के प्रेस सेक्रेटरी ने सोमवार रात एक बयान जारी कर चिन्मय दास के गिरफ्तारी की पुष्टि की थी.
चिन्मय कृष्ण दास पर आरोप क्या हैं
दरअसल चिन्मय कृष्ण दास और 18 अन्य लोगों पर चटगांव के कोतवाली पुलिस स्टेशन में देशद्रोह का केस दर्ज है. इसमें इन लोगों पर 25 अक्तूबर को चटगांव के न्यू मार्केट इलाके में बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने का आरोप लगाया गया है. जिस दिन यह मामला दर्ज कराया गया, उस दिन बांग्लादेश सम्मिलित सनातन जागरण जोत ने अपनी आठ सूत्रीय मांगों को लेकर एक बड़ी रैली का आयोजन किया था. गिरफ्तारी के बाद चिन्मय दास को चटगांव की एक अदालत में पेश किया गया. इसके बाद उन्हें ढाका की मेट्रोपॉलिटन पुलिस को सौंप दिया गया. उन्हें ढाका के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट काजी शरीफुल इस्लाम की अदालत में पेश किया गया. इस अदालत ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी.इसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया.चिन्मय दास के वकीलों ने उनकी गिरफ्तारी को आधारहीन बताया है.
चिन्मय दास के खिलाफ देशद्रोह की यह शिकायत खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनिलस्ट पार्टी (बीएनपी) के एक स्थानीय कार्यकर्ता फिरोज खान ने दर्ज कराई थी. इस मामले में कोई पुख्ता आधार न देखते हुए बीएनपी ने फिरोज खान को पार्टी से निकाल दिया है.
चिन्मय कृष्ण दास को जेल भेजे जाने की खबर के सामने आने के बाद बाग्लादेश में हिंसा भड़क उठी. लोग सड़कों पर उतर आए.इस बीच चटगांव में 32 साल के वकील सैफुल इस्लाम नाम के एक वकील की हत्या कर दी गई.इससे बांग्लादेश में हालात बेकाबू हो गए हैं.चिन्मय दास के मामले में भारत सरकार ने गहरी चिंता जताई है.चिन्मय की गिरफ्तारी पर विश्व हिंदू परिषद समेत आर्ट ऑफ लिविंग जैसी संस्थाओं ने चिंता जताते हुए उनकी तत्काल रिहाई की मांग की है.
हिंदू अधिकारों की मुखर आवाज
शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमलों के विरोध में चिन्मय दास ने दो-तीन बड़ी रैलियों का आयोजन किया था. इन रैलियों में लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए थे. इसके साथ ही चिन्मय दास इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर भी आ गए.
वहीं जब इस्कॉन को लगा कि चिन्मय दास का संभालना मुश्किल है तो उसने उनसे अपने सारे संबंध तोड़ लिए. बांग्लादेश में इस्कॉन भी मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर रहा है.गुरुवार को ही बांग्लादेश के शिबचर में स्थित इस्कॉन के एक केंद्र को स्थानीय लोगों के विरोध की वजह से बंद करना पड़ा है. हालात ऐसी हो गई थी कि इस्कॉन के इस केंद्र में फंसे लोगों को निकालने के लिए सेना को बुलाना पड़ा.
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