वाशिंगटन:
एक दस्तावेज में इस बात की संभावना जताई गई है कि चीन ने 1970 के दशक के अंतिम वषरें में अपने करीबी सहयोगी पाकिस्तान को परमाणु हथियारों के डिजाइन का व्यापक पैकेज मुहैया कराया और सीआईए को इसकी जानकारी थी। इस दस्तावेज का खुलासा हाल ही में किया गया है।
सूचना की स्वतंत्रता कानून के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा अभिलेखागार (एनएसए) से हासिल किए गए इन दस्तावेजों के अनुसार, सीआई के पास साक्ष्य थे, जो पाकिस्तान-चीन के बीच करीबी परमाणु सहयोग की ओर इशारा करते हैं।
इस दस्तावेज के अनुसार, पहले भी ऐसे आरोप लगे हैं, जैसे विदेश मंत्रालय के एक दस्तावेज में और कई बड़ी खबरों में, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि सीआईए ने अपनी कुछ सूचनाएं सार्वजनिक जारी की हैं।
इसमें कहा गया है, इस अनुमान में कुछ मुख्य गतिविधियों की ओर इशारा किया गया है, जिनमें वर्ष 1974 में पाकिस्तान को एक परमाणु विस्फोट की क्षमता विकसित करने में मदद देने को ‘मौखिक सहमति’, वर्ष 1976 में परमाणु हथियार तकनीक मुहैया कराने जैसे घटनाक्रम हैं। साथ ही कुछ ऐसी सूचनाएं हैं, जिनसे यह संभावना बनती है कि चीन ने परमाणु हथियार के डिजाइन संबंधी व्यापक सूचना मुहैया कराई।
सीआईए द्वारा वर्ष 1983 के राष्ट्रीय स्तर के एक खुफिया अनुमान में कहा गया है, चीन की मदद के बिना भी पाकिस्तान एक परमाणु हथियार बनाने में सक्षम है, लेकिन चीन के हथियार डिजाइन और परीक्षण आंकड़े बगैर परीक्षण वाली क्षमता में इस्लामाबाद का आत्मविश्वास बढ़ाने में काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। इसमें कहा गया है कि सूचनाओं का यह प्रवाह शायद एकतरफा नहीं था और पाकिस्तान के परमाणु संवर्धन कार्यक्रम में चीन की ‘‘संलिप्तता’’ शायद गैस सेंट्रिफ्यूज तकनीक से संबंधित थी, जो पाकिस्तान ने चीन से ली।
दस्तावेज में कहा गया है कि परमाणु प्रसार जिमी कार्टर के प्रशासन की नीति का एक प्रमुख हिस्सा था और पाकिस्तान एवं चीन द्वारा परमाणु हथियारों से संबंधित साझेदारी की संभावना से अमेरिकी सरकार के अधिकारी चिंतित हो उठे थे, लेकिन सीआईए के पास को ठोस सबूत नहीं थे।
सूचना की स्वतंत्रता कानून के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा अभिलेखागार (एनएसए) से हासिल किए गए इन दस्तावेजों के अनुसार, सीआई के पास साक्ष्य थे, जो पाकिस्तान-चीन के बीच करीबी परमाणु सहयोग की ओर इशारा करते हैं।
इस दस्तावेज के अनुसार, पहले भी ऐसे आरोप लगे हैं, जैसे विदेश मंत्रालय के एक दस्तावेज में और कई बड़ी खबरों में, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि सीआईए ने अपनी कुछ सूचनाएं सार्वजनिक जारी की हैं।
इसमें कहा गया है, इस अनुमान में कुछ मुख्य गतिविधियों की ओर इशारा किया गया है, जिनमें वर्ष 1974 में पाकिस्तान को एक परमाणु विस्फोट की क्षमता विकसित करने में मदद देने को ‘मौखिक सहमति’, वर्ष 1976 में परमाणु हथियार तकनीक मुहैया कराने जैसे घटनाक्रम हैं। साथ ही कुछ ऐसी सूचनाएं हैं, जिनसे यह संभावना बनती है कि चीन ने परमाणु हथियार के डिजाइन संबंधी व्यापक सूचना मुहैया कराई।
सीआईए द्वारा वर्ष 1983 के राष्ट्रीय स्तर के एक खुफिया अनुमान में कहा गया है, चीन की मदद के बिना भी पाकिस्तान एक परमाणु हथियार बनाने में सक्षम है, लेकिन चीन के हथियार डिजाइन और परीक्षण आंकड़े बगैर परीक्षण वाली क्षमता में इस्लामाबाद का आत्मविश्वास बढ़ाने में काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। इसमें कहा गया है कि सूचनाओं का यह प्रवाह शायद एकतरफा नहीं था और पाकिस्तान के परमाणु संवर्धन कार्यक्रम में चीन की ‘‘संलिप्तता’’ शायद गैस सेंट्रिफ्यूज तकनीक से संबंधित थी, जो पाकिस्तान ने चीन से ली।
दस्तावेज में कहा गया है कि परमाणु प्रसार जिमी कार्टर के प्रशासन की नीति का एक प्रमुख हिस्सा था और पाकिस्तान एवं चीन द्वारा परमाणु हथियारों से संबंधित साझेदारी की संभावना से अमेरिकी सरकार के अधिकारी चिंतित हो उठे थे, लेकिन सीआईए के पास को ठोस सबूत नहीं थे।
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