वेटिकन सिटी:
जो अब तक कोलकाता की मदर टेरेसा थीं, अब इस शहर की संत टेरेसा हो गई हैं. रविवार को इटली की वेटिकन सिटी के सेंट पीटर्स चौराहे पर पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि से सम्मानित किया. इस मौके पर भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ 12 सदस्यों का प्रतिनिधमंडल भी वेटिकन पहुंचा हुआ था. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी इसमें शामिल थे.
इस मौके पर वेटिकन सिटी में दुनिया भर से लाखों लोग आए थे, वहीं भारत भर के गिरिजाघरों में भी इस खास दिन विशेष प्रार्थना के लिए कई लोग मौजूद थे. इसके साथ ही आज मुंबई में मदर टेरेसा को मिली इस संत की उपाधि के मौके पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया है.
इस समारोह में पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को दयालु संत बताते हुए कहा कि वह बीमार और त्यागे हुए लोगों की जीवन रक्षक थीं जिन्होंने 'गरीबी का अपराध खड़ा करने वाले' विश्व नेताओं को शर्म से झुका दिया था. सेंट पीटर बेसालिका की सीढ़ियों से पोप फ्रांसिस ने कहा - 'संत टेरेसा ने दुनिया के ताकतवर लोगों तक अपनी आवाज़ पहुंचाई ताकि वह लोग गरीबी के उस अपराध के लिए खुद को दोषी महसूस कर सकें जिसे उन्होंने ही खड़ा किया है.'
दया और करुणा भाव
20वीं सदी के सबसे लोकप्रिय हस्तियों में से एक मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मैकेडोनिया गणतंत्र में हुआ था और 18 साल वहां रहने के बाद वह आयरलैंड आ गईं और वहां से भारत जहां उन्होंने अपनी जिंदगी का काफी बड़ा हिस्सा बिताया. इन्होंने 1950 में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी. कोलकाता समेत दुनिया भर में किसी भी धर्म विशेष को किनारे रखकर गरीबों की मदद और उनके प्रति करुणा भाव रखने के लिए मदर टेरेसा को जाना जाता है. 1979 में मदर टेरेसा को नोबल के शांति पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था.
दो चमत्कार
वेटिकन के नियम के अनुसार संत का दर्जा पाने के लिए कम से कम दो चमत्कार करना जरूरी है. 1997 में मदर टेरेसा का निधन हो गया था लेकिन उनके नाम से दो बीमारियों के चमत्कारिक ढंग से ठीक होने के बाद वेटिकन ने उन्हें संत बनाने का फैसला लिया. इनमें से एक दावा पश्चिम बंगाल के दक्षिण दिंजापुर जिले की आदिवासी मोनिका बसरा ने किया था जिनका कहना है कि उनके पेट में अल्सर था और 1998 में जब मदर टेरेसा की तस्वीर से निकली कुछ चामत्कारिक किरणों ने उन्हें छुआ तब वह बिल्कुल ठीक हो गईं.
इस दावे के बाद वह 2003 में पोप जॉन पॉल द्वितीय से रोम में मिलीं. वैटिकन ने मोनिका के दावे की पुष्टि की और मदर टेरेसा को 'धन्य' (बिटिफ़िकेशन) घोषित किया गया. इसके बाद अलबानिया में जन्मी यह नन संतवाद के थोड़ा और करीब पहुंच गईं. इसी साल पोप फ्रांसिस ने ब्राजील के इंजीनियर मार्सिलियो एंड्रीनो के उस दावे की पुष्टि की जिसके मुताबिक मदर टेरेसा के चमत्कार से उन्हें ब्रेन ट्यूमर से निजात मिली.एंड्रीनो का कहना था कि 2008 में उनके पादरी द्वारा मदर टेरेसा से प्रार्थना करने के बाद ही उनके दिमाग में मौजूद सभी ट्यूमर दूर हो गए.
मदर टेरेसा को भी अपने हिस्से की आलोचना भी झेलनी पड़ी हैं. आलोचक आरोप लगाते रहे हैं कि उनके द्वारा चलाए जा रहे अस्पतालों में सफाई की खासी कमी नजर आती है, साथ ही यह भी कि कल्याणकारी काम के लिए वह तानाशाहों से भी पैसे ले लेती थीं.
इस मौके पर वेटिकन सिटी में दुनिया भर से लाखों लोग आए थे, वहीं भारत भर के गिरिजाघरों में भी इस खास दिन विशेष प्रार्थना के लिए कई लोग मौजूद थे. इसके साथ ही आज मुंबई में मदर टेरेसा को मिली इस संत की उपाधि के मौके पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया है.
इस समारोह में पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को दयालु संत बताते हुए कहा कि वह बीमार और त्यागे हुए लोगों की जीवन रक्षक थीं जिन्होंने 'गरीबी का अपराध खड़ा करने वाले' विश्व नेताओं को शर्म से झुका दिया था. सेंट पीटर बेसालिका की सीढ़ियों से पोप फ्रांसिस ने कहा - 'संत टेरेसा ने दुनिया के ताकतवर लोगों तक अपनी आवाज़ पहुंचाई ताकि वह लोग गरीबी के उस अपराध के लिए खुद को दोषी महसूस कर सकें जिसे उन्होंने ही खड़ा किया है.'
दया और करुणा भाव
20वीं सदी के सबसे लोकप्रिय हस्तियों में से एक मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मैकेडोनिया गणतंत्र में हुआ था और 18 साल वहां रहने के बाद वह आयरलैंड आ गईं और वहां से भारत जहां उन्होंने अपनी जिंदगी का काफी बड़ा हिस्सा बिताया. इन्होंने 1950 में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी. कोलकाता समेत दुनिया भर में किसी भी धर्म विशेष को किनारे रखकर गरीबों की मदद और उनके प्रति करुणा भाव रखने के लिए मदर टेरेसा को जाना जाता है. 1979 में मदर टेरेसा को नोबल के शांति पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था.
दो चमत्कार
वेटिकन के नियम के अनुसार संत का दर्जा पाने के लिए कम से कम दो चमत्कार करना जरूरी है. 1997 में मदर टेरेसा का निधन हो गया था लेकिन उनके नाम से दो बीमारियों के चमत्कारिक ढंग से ठीक होने के बाद वेटिकन ने उन्हें संत बनाने का फैसला लिया. इनमें से एक दावा पश्चिम बंगाल के दक्षिण दिंजापुर जिले की आदिवासी मोनिका बसरा ने किया था जिनका कहना है कि उनके पेट में अल्सर था और 1998 में जब मदर टेरेसा की तस्वीर से निकली कुछ चामत्कारिक किरणों ने उन्हें छुआ तब वह बिल्कुल ठीक हो गईं.
इस दावे के बाद वह 2003 में पोप जॉन पॉल द्वितीय से रोम में मिलीं. वैटिकन ने मोनिका के दावे की पुष्टि की और मदर टेरेसा को 'धन्य' (बिटिफ़िकेशन) घोषित किया गया. इसके बाद अलबानिया में जन्मी यह नन संतवाद के थोड़ा और करीब पहुंच गईं. इसी साल पोप फ्रांसिस ने ब्राजील के इंजीनियर मार्सिलियो एंड्रीनो के उस दावे की पुष्टि की जिसके मुताबिक मदर टेरेसा के चमत्कार से उन्हें ब्रेन ट्यूमर से निजात मिली.एंड्रीनो का कहना था कि 2008 में उनके पादरी द्वारा मदर टेरेसा से प्रार्थना करने के बाद ही उनके दिमाग में मौजूद सभी ट्यूमर दूर हो गए.
मदर टेरेसा को भी अपने हिस्से की आलोचना भी झेलनी पड़ी हैं. आलोचक आरोप लगाते रहे हैं कि उनके द्वारा चलाए जा रहे अस्पतालों में सफाई की खासी कमी नजर आती है, साथ ही यह भी कि कल्याणकारी काम के लिए वह तानाशाहों से भी पैसे ले लेती थीं.
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