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बुरी तरह पीटा, केरोसिन डालकर आग लगा दी, बांग्लादेश में मारे गए दीपू के पिता ने बताई बर्बरता की कहानी

बांग्लादेश में अल्पसंख्यक अधिकारों को लेकर चिंता जता रहे भारत में भी इस भीड़ द्वारा की गई लिंचिंग पर तीखी प्रतिक्रिया हुई. विपक्ष की प्रमुख नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने इसे "बेहद चिंताजनक" बताया और केंद्र सरकार से बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा का संज्ञान लेने का आग्रह किया. शशि थरूर ने भी इस पर सवाल उठाए हैं.

बुरी तरह पीटा, केरोसिन डालकर आग लगा दी, बांग्लादेश में मारे गए दीपू के पिता ने बताई बर्बरता की कहानी
  • बांग्लादेश में कट्टरपंथी हिंसा के कारण हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमले और लिंचिंग की घटनाएं बढ़ गई हैं
  • दीपू चंद्र दास को इस्लाम का अपमान करने के आरोप में पीट-पीटकर मारने के बाद आग के हवाले किया गया
  • सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई और पीड़ित परिवार को अपने बेटे की मौत की जानकारी फेसबुक से मिली
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भारत-विरोधी कट्टरपंथी नेता हादी की मौत के बाद बांग्लादेश में नए सिरे से हिंसा भड़क उठी है. इस्लामी कट्टरपंथी लगातार हिंदूओं को टारगेट कर रहे हैं. एक हिंदू ने अपने बेटे की पीट-पीटकर हत्या करने का खौफनाक मंजर एनडीटीवी को बताया है. उनकी बातें सुनकर किसी भी इंसान की रुह कांप उठ जाएगी. बांग्लादेश में रहनेवाले अल्पसंख्यकों के लिए चिंताएं फिर से बढ़ा दी हैं.

मयमनसिंह की एक कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले दीपू चंद्र दास को गुरुवार रात इस्लाम का कथित तौर पर अपमान करने के आरोप में पीट-पीटकर मार डाला गया. दास की हत्या करने के बाद, उनके बेजान शरीर को एक पेड़ से बांधकर आग लगा दी गई, और दर्जनों लोग इस बर्बरता का जश्न मनाते नजर आए.

पिता ने बताया कैसे हुई घटना

पीड़ित के पिता रविलाल दास ने एनडीटीवी को घटना के बारे में बताया कि सरकार की तरफ से किसी ने कोई बात नहीं की. उन्हें अपने बेटे की हत्या की खबर सबसे पहले फेसबुक से मिली. दास ने बताया, "हमें फेसबुक से खबरें मिलनी शुरू हुईं, फिर और भी लोग इसके बारे में बात करने लगे. हमें तब पता चला जब किसी ने मुझे बताया कि उसे बुरी तरह पीटा गया है. आधे घंटे बाद मेरे चाचा आए और मुझे बताया कि कट्टरपंथी मेरे बेटे को ले गए और उसे एक पेड़ से बांध दिया. फिर उन्होंने उस पर केरोसिन डालकर आग लगा दी. उसका जला हुआ शरीर बाहर छोड़ दिया गया. उन्होंने जले हुए धड़ और सिर को बाहर बांध दिया. यह बहुत भयानक था. हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि वे छात्र शिविर से थे या जमात-ए-इस्लामी से. कोई भी निश्चित रूप से नहीं कह सकता; यह सब लोगों की कही-सुनी बातें हैं.”

आतंकवादियों को मिल रहा शह

शेख हसीना सरकार में पूर्व सांसद और सूचना मंत्री मोहम्मद अली अराफात ने कहा है कि हादी की मौत के विरोध प्रदर्शनों की आड़ में कट्टरपंथी इस्लामी ताकतें बांग्लादेश की सड़कों पर कब्जा कर रही हैं. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट में कहा, “हादी के समर्थकों ने शुक्रवार (19 दिसंबर) को शाहबाग में शरीफ उस्मान हादी की हत्या के लिए न्याय की मांग करते हुए धरना दिया. बाद में यह कार्यक्रम जिहादी और कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों के प्रभुत्व वाले जमावड़े में बदल गया, जिसमें तौहीदी जनता के जसीमुद्दीन रहमानी और अताउर रहमान बिक्रमपुरी जैसे नेता शामिल थे. अन्य चरमपंथी समूहों के सदस्य भी मौजूद थे और उन्होंने भड़काऊ भाषण दिए.”

अली अराफात ने पोस्ट में आगे कहा, "जशीमुद्दीन रहमानी (जो एक जिहादी और अल-कायदा से जुड़े अंसारुल्लाह बांग्ला टीम का प्रमुख है) को पहले अवामी लीग सरकार के दौरान बांग्लादेश के आतंकवाद विरोधी अधिनियम के तहत 2013 और 2016 के बीच मारे गए नास्तिक ब्लॉगरों की हत्याओं का समर्थन करने के आरोप में हिरासत में लिया गया था. उसे वर्तमान यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार के तहत रिहा कर दिया गया है और उसने सार्वजनिक रूप से उन हत्याओं के लिए अपने समर्थन को दोहराया और उसका औचित्य साबित किया है."

पुलिस दे रही साथ

अराफात ने यह भी आरोप लगाया कि धानमंडी के 32 नंबर घर पर इमारत के अवशेषों को नष्ट करने के लिए पहुंचे भीड़ के पास आईएसआईएस के झंडे थे. उन्होंने कहा, "कट्टरपंथी इस्लामी समूहों ने एक बार फिर धानमंडी 32 स्थित आवास के अवशेषों को ध्वस्त करने का प्रयास किया और खुलेआम आईएसआईएस के झंडे लहराए. जब ​​इन चरमपंथियों ने पहली बार घर पर हमला किया, तो यूनुस ने न तो इसकी सुरक्षा के लिए कोई कदम उठाया और न ही दोषियों को सजा दिलवाई. इसके बजाय, उन्होंने भीड़ की हिंसा को कम करके आंका और यहां तक ​​कि शेख हसीना को दोषी ठहराते हुए दावा किया कि उनके भाषणों ने भीड़ को उकसाया था."

बांग्लादेश में अल्पसंख्यक अधिकारों को लेकर चिंता जता रहे भारत में भी इस भीड़ द्वारा की गई लिंचिंग पर तीखी प्रतिक्रिया हुई. विपक्ष की प्रमुख नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने इसे "बेहद चिंताजनक" बताया और केंद्र सरकार से बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा का संज्ञान लेने का आग्रह किया. शशि थरूर ने भी इस पर सवाल उठाए हैं.
 

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