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This Article is From Jul 14, 2012

'सेना के पास नहीं पाकिस्तान की समस्याओं के जवाब'

इस्लामाबाद: पाकिस्तान की जनता में अप्रत्याशित रूप से सर्वसम्मति यह है कि सेना के पास 'देश की समस्याओं के जवाब नहीं हैं' और उसे शासन व राजनीति से दूरी बनाए रखनी चाहिए। यह बात शनिवार को एक प्रमुख समाचारपत्र में सामने आई है।

समाचारपत्र 'डॉन' के सम्पादकीय में कहा गया है कि "यह दौर क्रूर जटिलता और गलतफहमी, साधारण बयानों को बढ़ा-चढ़ा कर बार-बार दोहराने का है।"

कहा गया है, "सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को अस्थिरता और आशंकाओं वाले दौर में पहुंचा दिया। लोकतांत्रिक व्यवस्था एक बार फिर से बाधित हो रही है जिसे दूर किया जा सकता है।"

गौरतलब है कि प्रधान न्यायाधीश इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी ने सचेत किया है कि प्रत्येक व्यक्ति अतिरिक्त संवैधानिक उपायों के बारे में सोचे। अदालत वादा करती है कि वह संविधान का उल्लंघन करने वाले पर रहम नहीं करेगी।

समाचारपत्र में कहा गया है, "अदालत के हस्तक्षेप के दोनों पहलुओं में समान रूप से सच्चाई है। अदालत ने लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार को काफी दबाव में रखा। इस कारण विफल होती व्यवस्था का नया द्वार खुलना संभव हुआ, जबकि उसी समय अदालत प्रत्यक्ष सैन्य शासन के खिलाफ एक दीवार बन कर खड़ी हो गई। ठीक उसी तरह जैसे पूर्व राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ के समक्ष इसने झुकने से इंकार कर दिया था। उसने यह वाकया दोहराया है।"

कहा गया है कि जहां तक प्रत्यक्ष सैन्य शासन का सवाल है, "संयोगवश देश में अप्रत्याशित रूप से एक सर्वसम्मति बनी है कि सेना के पास देश की समस्याओं के जवाब नहीं हैं और उसे शासन व राजनीति से दूरी बनाए रखनी चाहिए।"

सम्पादकीय में कहा गया है, "इस कठिन मोड़ पर लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय के रूप में अपना एक हितैषी पाया। साबित किया जा सकता है कि इस ऐतिहासिक आकस्मिक घटना का प्रभाव लम्बे अरसे तक रहेगा।"

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