वाशिंगटन:
दुनिया के उत्तरी ध्रुव पर आर्कटिक सागर में इस साल 1970 के बाद सबसे कम बर्फ जमी है। साल 1970 में उपग्रह से इसकी निगरानी शुरू की गई थी। विशेषज्ञों के मुताबिक इसका कारण जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वॉर्मिंग है।
समाचार एजेंसी एफे ने अमेरिका के नेशनल ओसिनोग्राफिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के उपग्रह अनुसंधान केंद्र के प्रमुख जेफ की के हवाले से कहा, 'अन्य साल की तुलना में इस साल जाड़े में आर्कटिक में कम बर्फ दर्ज की गई।'
एनओएए द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 1970 के बाद से इस साल मार्च महीने में औसतन 2.6 फीसदी प्रति दशक की दर से बर्फ में कमी देखी गई। उन्होंने कहा, 'सर्वाधिक बर्फ 25 फरवरी को जमी, जबकि सामान्य रूप से मार्च के मध्य में सर्वाधिक बर्फ जमती है। सामान्य से दो से तीन सप्ताह पहले ही आर्कटिक में सर्वाधिक बर्फ देखी गई।'
यह प्रवृत्ति समुद्री मार्गों, मछली पकड़ने, स्थानीय जीवों जैसे पोलर बीयर के लिए परेशानी वाली बात है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आर्कटिक में इस तरह से बर्फ में आई कमी का असर केवल आर्कटिक तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे ग्रह की जलवायु पर इसका असर पड़ेगा।
समाचार एजेंसी एफे ने अमेरिका के नेशनल ओसिनोग्राफिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के उपग्रह अनुसंधान केंद्र के प्रमुख जेफ की के हवाले से कहा, 'अन्य साल की तुलना में इस साल जाड़े में आर्कटिक में कम बर्फ दर्ज की गई।'
एनओएए द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 1970 के बाद से इस साल मार्च महीने में औसतन 2.6 फीसदी प्रति दशक की दर से बर्फ में कमी देखी गई। उन्होंने कहा, 'सर्वाधिक बर्फ 25 फरवरी को जमी, जबकि सामान्य रूप से मार्च के मध्य में सर्वाधिक बर्फ जमती है। सामान्य से दो से तीन सप्ताह पहले ही आर्कटिक में सर्वाधिक बर्फ देखी गई।'
यह प्रवृत्ति समुद्री मार्गों, मछली पकड़ने, स्थानीय जीवों जैसे पोलर बीयर के लिए परेशानी वाली बात है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आर्कटिक में इस तरह से बर्फ में आई कमी का असर केवल आर्कटिक तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे ग्रह की जलवायु पर इसका असर पड़ेगा।