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This Article is From Sep 21, 2014

अफगानिस्तान में साझा सरकार के लिए समझौता, ग़नी होंगे राष्ट्रपति और अब्दुल्ला बनेंगे सीईओ

अफगानिस्तान में साझा सरकार के लिए समझौता, ग़नी होंगे राष्ट्रपति और अब्दुल्ला बनेंगे सीईओ
अफगानिस्तान के नए राष्ट्रपति अशरफ घनी (चित्र : रायटर्स)
काबुल:

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों अब्दुल्ला अब्दुल्ला और अशरफ गनी अहमदजई ने चुनावी गतिरोध खत्म करने के लिए रविवार को राष्ट्रीय साझा सरकार बनाने के लिए समझौता किया।

समाचार एजेंसियों के अनुसार, यह समझौता दोनों उम्मीदवारों के बीच मुजाहिदीन के पूर्व नेताओं व पदाधिकारियों की मध्यस्थता और निवर्तमान राष्ट्रपति हामिद करजई की मौजूदगी में हुआ। इस समझौते का स्वागत करते हुए करजई ने अपने संक्षिप्त भाषण में अगली सरकार को शुभकामनाएं दीं।

समझौते के तहत दोनों में से एक उम्मीदवार राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी संभालेंगे और दूसरा राष्ट्रीय साझा सरकार में प्रधानमंत्री पद के समतुल्य मुख्य कार्यकारी का पद संभालेंगे।

अफगानिस्तान में तालिबान के प्रभुत्व की समाप्ति के बाद पांच अप्रैल को तीसरी बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव कराया गया, लेकिन सभी आठों उम्मीदवारों में से किसी को भी 50 फीसदी मत नहीं मिला। इसके बाद 14 जून को चुनाव कराए गए, जिसमें मुकाबला अब्दुल्ला और अशरफ गनी के बीच था।

समझौते पर दस्तखत हो जाने के बाद अफगानिस्तान के निर्वाचन आयोग के लिए चुनाव परिणाम की घोषणा करना आसान हो गया है।

दोनों उम्मीदवारों ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में एक दूसरे को गले लगाया और निवर्तमान राष्ट्रपति हामिद करजई ने भाषण दिया। इसके बाद दोनों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए।

देश के संविधान के तहत राष्ट्रपति के पास लगभग पूरा नियंत्रण होगा। लेकिन देश की सुरक्षा एवं आर्थिक हालात लगातार बिगड़ने की वजह से नए सरकारी तंत्र को एक कठिन परीक्षा से गुजरना होगा।

राष्ट्रपति हामिद करजई द्वारा देश में इस साल के बाद विदेशी सैन्य मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए एक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार के बाद अफगानिस्तान के अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो गठबंधन के साथ संबंध भी अधर में लटके हुए हैं।

नाटो के एक शीर्ष सैन्य कमांडर ने उम्मीद जताई कि एकता वाली नई सरकार समझौते को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया तेज करेगी।

अमेरिकी जनरल फिलिप ब्रिडलव ने कल कहा, 'हमें जल्द हस्ताक्षर होने की उम्मीद है। और यह महत्वपूर्ण होगा क्योंकि इससे हमारे निरंतर समर्थन के लिए बातचीत को ज्यादा स्थिरता मिलेगी।'

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