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This Article is From Dec 14, 2020

Year Ender 2020 : साल की 6 बड़ी अंतरराष्ट्रीय घटनाएं, जो लगातार सुर्खियों में बनी रहीं

कोई वैक्सीन की घोषणा करता है तो कई इसके शोध में लगा है. किसी ने लॉकडाउन लगाया तो किसी ने अपनी आर्थिक गतिविधियों को शुरू किया. हर तरफ बस कोरोना ही कोरोना...

Year Ender 2020 : साल की 6 बड़ी अंतरराष्ट्रीय घटनाएं, जो लगातार सुर्खियों में बनी रहीं
प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:

साल 2020 जाने को है और अगर हम इस साल की तरफ पलट कर देखते हैं तो हमें सिवाय कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Pandamic) के कुछ नहीं दिखाई देगा. हम कहीं किसी देश को उससे जूझते देखते हैं तो किसी को उसके संकट से उबरते. कोई वैक्सीन की घोषणा करता है तो कई इसके शोध में लगा है. किसी ने लॉकडाउन लगाया तो किसी ने अपनी आर्थिक गतिविधियों को शुरू किया. हर तरफ बस कोरोना ही कोरोना. वहीं इस बीच कुछ देश ऐसे भी थे जहां से सत्ताएं बदलने और धार्मिक-नस्लीय हिंसा की खबरें भी आई. हम आपको साल 2020 में दुनिया के कैलेंडर पर दर्ज की हुई उन घटनाओं के बारे में विस्तार से बताते हैं जो कई दिनों तक मीडिया की सुर्खियों में बने रहने के साथ साथ आपके जहन में भी लंबे समय तक ताजा रहीं... 

चीन से कोरोना वायरस का प्रसार
साल 2020 की शुरुआत में ही दुनिया के सामने एक चीन से निकला एक वायरस चुनौती के रूप में सामने खड़ा दिखा. साल 2019 के अंत में चीन के वुहान शहर से निकले इस वायरस ने धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपनी जद में लिया. नवंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में इसका पहला मामला सामने आया था जिसके बाद दिसंबर महीने तक इसने पूरे वुहान समेत चीन के कई हिस्सों को अपनी चपेट में ले लिया. 30 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को लेकर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा की.

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चीन के बाद 31 जनवरी को इटली में चीन से आए दो पर्यटकों में संक्रमण पाया गया. 19 मार्च तक आते आते इटली में कोरोना से होने वाली मौत का आंकड़ा चीन से कहीं ज्यादा हो गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन यूरोप को कोरोना का एक्टिव सेंटर घोषित कर दिया. 26 मार्च तक अमेरिका ने चीन और इटली दोनों को पीछे छोड़ते हुए संक्रमितों की सबसे ज्यादा संख्या में पहला स्थान हासिल कर लिया था. रिसर्च के आधार पर ये पता चला कि न्यूयॉर्क में कोरोना का संक्रमण एशिया और चीन से आए लोगों की तुलना में यूरोप से आए पर्यटकों के जरिए अधिक फैला है. 

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अब तक दुनियाभर में 7 करोड़ 27 लाख 15 हजार 369 लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं. वहीं दुनियाभर में 16 लाख 20 हजार 351 लोगों की मौत हो चुकी है. लेकिन हैरानी की बात है कि जिस देश से वायरस निकला उसने दुनिया के अन्य देशों ज्यादा तबाही मचाई. क्योंकि चीन ने समय रहते इस पर नियंत्रण कर लिया और यही कारण है कि वहां अभी तक संक्रमण से मरने वाले लोगों की संख्या 4634 ही है. जबकि अमेरिका, भारत और ब्राजील जैसे देशों ये आंकड़ा लाख को पार कर चुका है. इटली यूरोप का पहला देश था जो कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था.साथ ही यहां दुनिया में सबसे पहले लॉकडाउन लगाया गया था.  फरवरी में लॉकडाउन लगाने की शुरुआत की गई और मार्च आते-आते पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया गया. साल खत्म होने तक इटली में कोरोना से अब तक 64 हजार 520 मौतें दर्ज की गई हैं. पर्टयन के लिए मशहूर इटली से इस वायरस को तेजी से दुनियाभर में फैलने में मदद मिली. जून-जुलाई तक आते आते इसने यूरोप, एशिया और अमेरिका तक को अपनी चपेट में ले लिया. अमेरिका में अब तक इस संक्रमण के 1 करोड़ 67 लाख मामले सामने आ चुके हैं और 3 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं ब्राजील में 69 लाख केस समाने आए हैं और 1 लाख 88 हजार से ज्यादा की मौत हुई है.

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भारत में इस संक्रमण का पहला मामला वैसे तो 30 जनवरी 2020 को सामने आया था लेकिन जानकार ऐसा मानते हैं कि इसकी शुरूआत नवंबर 2019 से ही हो चुकी थी. लेकिन पहले देश में बड़े पैमाने पर टेस्ट की सुविधा नहीं होने के कारण इसका पता नहीं चल सका था. 30 जनवरी को भी भारत में इस संक्रमण की पुष्टि चीन से आने वाले यात्री से ही हुई थी. भारत में 25 मार्च से लॉकडाउन लगाया जो पहले 21 दिन फिर 19 दिन और फिर 14-14 दिन के लिए बढ़ाया गया. यह प्रक्रिया 31 मई 2020 तक जारी रही. हालांकि इसके बाद सरकार ने पाबंदियों के साथ लॉकडाउन हटाया. भारत में कोरोना वायरस के अब तक 98 लाख 84 हजार 716 मामले सामने आ चुके हैं और संक्रमण से अब तक 1 लाख 43 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. 

बगदाद में ईरानी सेनाध्यक्ष  कासिम सुलेमानी की हत्या
3 जनवरी 2020 को इराक में बगदाद हवाई अड्डे पर अमेरिकी हवाई हमले में कासिम सुलेमानी (Qasem Soleimani)की हत्या कर दी थी. कासिम सुलेमानी ईरान का सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडर और खुफिया प्रमुख मेजर जनरल था. जनरल सुलेमानी ईरान के सशस्त्र बलों की शाखा इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स या कुद्स फोर्स (Islamic Revolutionary Guard Corps)की अध्यक्षता भी कर रहा था. ये फोर्स सीधे देश (ईरान) के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई को रिपोर्ट करती है. इस हत्या के बाद अमेरिका ने अपने इस फैसले को सही बताते हुए कहा कि, 'वह अमेरिकी प्रतिष्ठानों और राजनयिकों पर हमला करने की साजिश रच रहा था.' इसी के साथ यह अमेरिकी सैन्य कर्मियों की रक्षा के लिए निर्णायक रक्षात्मक कार्रवाई है.

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सुलेमानी ने 1980 के ईरान-इराक युद्ध की शुरुआत में अपना सैन्य करियर शुरू किया और साल 1998 से कुद्स फोर्स का नेतृत्व शुरू किया. इसे ईरान की सबसे ताकतवर फौज के रूप में जाना जाता है. कासिम सुलेमानी को पश्चिम एशिया में ईरानी गतिविधियों को चलाने का प्रमुख रणनीतिकार माना जाता था. अमेरिका ने कुद्स फोर्स को साल 2007 से आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया और इस संगठन के साथ किसी भी अमेरिका के लेनदेन किए जाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया. अमेरिका सुलेमानी को अपने सबसे बड़े दुश्मनों में से एक मानता था.  सुलेमानी को दूसरे देशों पर ईरान के रिश्ते मजबूत करने के लिए जाना गया, सुलेमानी ने यमन से लेकर सीरिया तक और ईराक से लेकर दूसरे मुल्कों तक रिश्तों का एक मज़बूत नेटवर्क तैयार किया. ट्रंप सरकार ईरान पर समय-समय पर प्रतिबंध लगाती रही.

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वहीं, अमेरिका के दवाब में काफी देश जैसे यूएई और इज़राइल का रुख भी ईरान के लिए अच्छा नहीं रहा है. लेकिन इन तमाम परिस्थितियों के बावजूद कासिम सुलेमानी ने ईरान के कवच के रूप में इसकी रक्षा की. कुद्स फोर्स ईरान के रेवॉल्यूशनरी गार्ड्स की विदेशी यूनिट का हिस्सा है. इसे ईरान की सबसे ताकतवर और धनी फौज माना जाता है. कुद्स फोर्स का काम है विदेशों में ईरान के समर्थक सशस्त्र गुटों को हथियार और ट्रेनिंग मुहैया कराना. कासिम सुलेमानी इसी कुद्स फोर्स के प्रमुख थे. लेकिन अमेरिका ने उन्हें और उनकी कुद्स फोर्स को सैकड़ों अमेरिकी नागरिकों की मौत का ज़िम्मेदार करार देते हुए 'आतंकवादी' घोषित किया हुआ था.  साल 2018 को सऊदी अरब और बहरीन ने ईरान की कुद्स फोर्स को आतंकवादी और इसके प्रमुख कासिम सुलेमानी को आतंकवादी घोषित किया था. 

जॉर्ज फ्लॉयड की मौत, अमेरिका में अश्‍वेतों का प्रदर्शन
25 मई को अमेरिका में मिनेसोटा स्थित मिनेपोलिस शहर में 46 साल के एक  रेस्टोरेंट के अश्वेत सिक्योरिटी गार्ड जॉर्ज फ्लॉयड (George Floyd) को जालसाजी से जुड़े एक मामले में पुलिस ने पकड़ा था. घटना का एक वीडियो वायरल हुआ था. वीडियो में साफ दिख रहा है कि जॉर्ज ने गिरफ्तारी के समय किसी तरह का विरोध नहीं किया. पुलिस ने उसके हाथों में हथकड़ी पहनाई और जमीन पर लिटा दिया. जिसके बाद एक पुलिस अधिकारी ने उसकी गर्दन को घुटनों से दबा दिया. जॉर्ज कहता रहा कि वह सांस नहीं ले पा रहा है और कुछ ही देर में वह बेहोश हो गया. अस्पताल में उसे मृत घोषित कर दिया.

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जॉर्ज की मौत से लोग आक्रोशित हो गए और रंगभेद की बात पर शहर में बवाल शुरू हो गया. शहर की कई दुकानों में लूटपाट की खबरें आईं. अमेरिका के कई शहरों में हुए इस हिंसक विरोध प्रदर्शन में 8 जून 2020 तक करीब 19 लोगों के मारे जाने की रिपोर्ट है. और इस हिंसा में 1400 से ज्यादा लोगों को अरेस्ट किया गया था. हिंसा के दौरान 500 मिलियन यूएस डॉलर की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था.  

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कई जगहों पर पुलिस ने लोगों को काबू में करने के लिए आंसू गैस और रबर बुलेट का इस्तेमाल किया. इस दौरान गोली लगने से एक शख्स की मौत हुई है. व्हाइट हाउस ने इस मामले में बयान जारी कर लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की. दुनिया के कई शहरों में इस घटना के विरोध में प्रदर्शनों की खबर आई. तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने संदेश में कहा था कि वे इस घटना से बेहद दुखी हैं और वह चाहते हैं कि जॉर्ज फ्लॉयड को इंसाफ मिले.

जापान में शिंजो आबे का सत्‍ता से हटना
जापान  (Japan) के प्रधानमंत्री शिंजो आबे (Shinzo Abe) ने 28 अगस्त को घोषणा की कि स्‍वास्‍थ्‍य कारणों (health problems) से अपने पद से इस्‍तीफा दे देंगे. उनके इस ऐलान से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में लीडरशिप को लेकर होड़ शुरू हो गई. आबे ने एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में एलान किया, "मैंने प्रधानमंत्री के पद से हटने का फैसला किया है," उन्होंने बताया कि वे अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative colitis) की समस्‍या का सामना कर रहे हैं. आबे ने कहा कि अब उनका नए सिरे से इलाज चल रहा है जिसके नियमित रूप से निगरानी की जरूरत है, ऐसे में वे अपने कर्तव्‍यों के निर्वहन में पर्याप्‍त समय नहीं दे पाएंगे. आबे ने कहा "अब ऐसे समय जब मैं विश्वास के साथ लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम नहीं हूं मैंने फैसला किया है कि मुझे अब प्रधानमंत्री पद से हट जाना चाहिए." सत्‍तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी जब तक उनके उत्‍तराधिकारी को नहीं चुनती. 

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14 सितंबर को मंत्रिमंडल के प्रमुख सचिव योशिहिदे सुगा को जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी का नया नेता चुना गया. वह आबे के काफी करीबी माने जाते हैं  और 2006 से उनके समर्थक रहे हैं. आबे के उत्तराधिकारी को चुनने के लिए हुए आंतरिक मतदान में सुगा को सत्तारूढ़ लिबरल डेमाक्रेटिक पार्टी में 377 वोट मिले और अन्य दो दावेदारों को 157 वोट हासिल हुए थे.

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Photo Credit: AFP

सुगा ने कहा कि वह आबे की नीतियों को ही आगे बढ़ाएंगे और उनकी प्राथमिकता कोरोना वायरस से निपटना और वैश्विक महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था बेहतर करना होगा. इसके बाद जापान की संसद में 16 सितंबर को हुए मतदान में योशिहिदे सुगा को औपचारिक तौर पर नया प्रधानमंत्री चुना गया. 

फ्रांस 'शार्ली हेब्दो' पत्रिका ने फिर छापा कार्टून, फिर हुई हिंसा
1 सितंबर को फ्रेंच व्यंग्य साप्ताहिक 'शार्ली हेब्दो' (Charlie Hebdo) ने कहा कि वह पैगंबर मोहम्मद (Prophet Mohammed) के बेहद विवादास्पद कार्टून को फिर से प्रकाशित कर रहा है ताकि हमले के कथित अपराधियों के इस सप्ताह मुकदमे की शुरुआत हो सके. मैगजीन के डायरेक्टर लौरेंट रिस सौरीस्यू ने लेटेस्ट एडिशन में कार्टून को फिर से छापने को लेकर लिखा, 'हम कभी झुकेंगे नहीं, हम कभी हार नहीं मानेंगे.' बता दें कि फ्रेंच व्यंग्य साप्ताहिक 'शार्ली हेब्दो' (Charlie Hebdo) के कार्यालय में  7 जनवरी, 2015 को दो आतंकी भाइयों ने अंधाधुंध गोलियां बरसाईं थीं. इस आतंकी हमले में 12 लोग मारे गए थे. इनमें से कुछ मशहूर कार्टूनिस्ट थे. हमलावरों ने एक सुपरमार्केट को भी अपना निशाना बनाया था. इस मामले में पेरिस में 2 सितंबर 2020 से ट्रायल शुरू होना था. मैगजीन के हालिया संस्करण में कवर पेज पर दर्जनभर कार्टून छापे थे. कवर पेज के बीच में पैगंबर मोहम्मद का कार्टून था. जीन काबूट ने इसे बनाया था. उन्हें काबू नाम से भी जाना जाता था. 2015 में हुए हमले में उनकी जान चली गई थी. इस सिंतबर 2020 अंक में फ्रंट पेज की हेडलाइन थी, 'यह सब, बस उसी के लिए.'

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इस कार्टून के फिर से प्रकाशित किए जाने के बाद फ्रांस में कई जगहों पर कट्टरपंथियों ने इसके विरोध में हिंसक घटनाओं का अंजाम दिया. सिंतबर महीने में ही कुछ हफ्ते बाद ही एक पाकिस्तानी युवक ने पत्रिका के पूर्व कार्यालय के बाहर दो लोगों को चाकू से घायल कर दिया. हमलावर ने एक टीवी प्रोडक्शन एजेंसी के दो कर्मचारियों को गंभीर रूप से घायल कर दिया, जिनके कार्यालय उसी ब्लॉक पर थे जहां शार्ली हेब्दो का ऑफिस था.

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इसके बाद 17 अक्टूबर को राजधानी पेरिस के पश्चिमी उपनगर कॉनफ्लैंस सेंट-होनोरिन में एक स्कूल के पास एक शिक्षक की सिर कलम कर हत्या हुई थी. इस मामले में नौ लोगों को गिरफ्तार किया है. हत्या 18 वर्षीय युवक द्वारा की गई थी, जिसे तब पेरिस के उत्तर-पश्चिम में कॉनफ्लैंस-सैंटे-होनोरिन में घटनास्थल के पास पुलिस ने गोली मार दी थी. पीड़ित 47 वर्षीय इतिहास के शिक्षक सैमुअल पैटी थे, जिन्होंने अपने विद्यार्थियों को पैगंबर मोहम्मद के कुछ कार्टून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विषय पर चर्चा के दौरान दिखाए थे.बता दें कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने इस घटना को इस्लामी आतंकवादी हमला करार दिया था. इसके बाद 29 अक्टूबर को फ्रांस (France) के शहर नीस (Nice) में गुरुवार को एक हमलावर ने चाकुओं से गोदकर तीन लोगों की जान ले ली. इनमें से एक महिला शामिल है, जिसका उसने सिर कलम कर दिया, जबकि कई अन्य हमले में घायल हो गए. पुलिस ने हमलावर को दबोच लिया है. नीस के मेयर ने इसे आतंकी हमला (Terrorist Attack) करार दिया है

ट्रंप की गई सत्ता, बाइडेन को मिली अमेरिकी की कमान
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव (US President Elections 2020) में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन (Joe Biden) ने 7 नवंबर को रिपब्लिकन पार्टी के अपने प्रतिद्वंद्वी डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को कड़े मुकाबले में हरा दिया. सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, पेन्सिलवेनिया राज्य में जीत दर्ज करने के बाद 77 वर्षीय पूर्व उपराष्ट्रपति बाइडेन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बनने के लिए रास्ता साफ हो गया. इस राज्य में जीत के बाद बाइडेन को 270 से अधिक ‘इलेक्टोरल कॉलेज वोट' मिल गये जो जीत के लिए जरूरी थे.

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पेन्सिलवेनिया के 20 इलेक्टोरल वोटों के साथ बाइडेन के पास अब कुल 273 इलेक्टोरल वोट हो गये. डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने से पहले बाइडेन पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में उपराष्ट्रपति पद पर रह चुके हैं. वह डेलावेयर के सबसे लंबे समय तक सीनेटर रहे हैं. भारतवंशी सीनेटर कमला हैरिस (Kamala Harris) अमेरिका में उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होने वाली पहली महिला हैं. 56 वर्षीय हैरिस देश की पहली भारतवंशी, अश्वेत और अफ्रीकी अमेरिकी उपराष्ट्रपति होंगी. बाइडेन और हैरिस अगले वर्ष 20 जनवरी को पद की शपथ लेंगे.

वर्ष 1992 में जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश के बाद ट्रंप ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जो पुन:निर्वाचन के प्रयास में विफल रहे. पेन्सिलवेनिया में ट्रंप के काफी पिछड़ जाने के बाद प्रमुख मीडिया संस्थानों ने बाइडेन को विजेता बताना आरंभ कर दिया था. पेनसिल्वेनिया, एरिजोना, नेवाडा और जॉर्जिया में मतगणना अभी भी चल रही है. इन चारों राज्यों में बाइडेन को अच्छी खासी बढ़त मिली थी. 
 

(इनपुट एजेंसी पीटीआई-भाषा, एएफपी से भी)

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