पिछले तीन सालों से तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है
वाशिंगटन:
जलवायु परिवर्तन अपना असर दिखा रही है. धरती पर बढ़ती आबादी और प्रदूषण के चलते मौसम में आश्चर्यकारी बदलाव हो रहे हैं. आंकड़ों की मानें तो बीता हुआ वर्ष यानी 2016 धरती का सबसे गर्म वर्ष रहा है. पिछले 137 सालों में गर्म वर्ष का रिकॉर्ड बीते साल टूट गया.
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अमेरिकी जलवायु वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि वर्ष 2016 आंकड़ों के मुताबिक धरती का सबसे गर्म वर्ष था. यह लगातार तीसरा वर्ष है जब 137 सालों के तापमान का रिकॉर्ड टूटा है. अमेरिकी नेशनल ओशिएनिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) की रिपोर्ट स्टेट ऑफ क्लाइमेट इन 2016 के मुताबिक पिछले साल दीर्घकालिक ग्लोबल वार्मिंग और मजबूत अल नीनो की वजह से रिकॉर्ड गर्मी पड़ी थी.
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रिपोर्ट में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन के प्रमुख संकेतक लगातार धरती के गर्म होने की प्रवृत्ति को दर्शा रहे हैं. जमीन और समुद्र के तापमान, समुद्र तल और वातावरण में हरित गैसों की सांद्रता जैसे कुछ संकेतकों ने महज एक साल पहले स्थापित रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. यह रिपोर्ट दुनिया भर के 60 से ज्यादा देशों के करीब 500 वैज्ञानिकों के योगदान पर आधारित है.
VIDEO: भारत ने पेश किया आधुनिक शहर का मॉडल नासा का कहना है कि सितंबर 2016 ने सर्वाधिक तापमान का नया रिकॉर्ड बनाया है जब इसके तापमान में वर्ष 2014 के सर्वाधिक गर्म सितंबर माह की तुलना में 0.004 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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अमेरिकी जलवायु वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि वर्ष 2016 आंकड़ों के मुताबिक धरती का सबसे गर्म वर्ष था. यह लगातार तीसरा वर्ष है जब 137 सालों के तापमान का रिकॉर्ड टूटा है. अमेरिकी नेशनल ओशिएनिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) की रिपोर्ट स्टेट ऑफ क्लाइमेट इन 2016 के मुताबिक पिछले साल दीर्घकालिक ग्लोबल वार्मिंग और मजबूत अल नीनो की वजह से रिकॉर्ड गर्मी पड़ी थी.
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रिपोर्ट में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन के प्रमुख संकेतक लगातार धरती के गर्म होने की प्रवृत्ति को दर्शा रहे हैं. जमीन और समुद्र के तापमान, समुद्र तल और वातावरण में हरित गैसों की सांद्रता जैसे कुछ संकेतकों ने महज एक साल पहले स्थापित रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. यह रिपोर्ट दुनिया भर के 60 से ज्यादा देशों के करीब 500 वैज्ञानिकों के योगदान पर आधारित है.
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